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Tuesday, June 1, 2010

ताकि क़ायम रहे "गर्म हवा"

डिजीटल टैक्नोलॉजी नई फिल्मों के साथ पुरानी क्लासिक फिल्मों के लिए भी वरदान साबित हो रही है। हाल के दौर में हमारे देश में इसके उम्दा नतीजे सामने आए हैं। 'मुगल-ए-आजम' और 'नया दौर' जैसी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों में रंग भरे गए हैं, वहीं 'खंडहर' जैसी चर्चित कला फिल्म का रीस्टोरेशन करके इस बार कॉन फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर किया गया है। इसी सिलसिले को आगे बढाते हुए मुंबई के सुभाष छेडा ने राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म 'गर्म हवा' को रीस्टोर करने का प्रयास किया है।
आर्ट सिनेमा को मीनिंगफुल सिनेमा की संज्ञा देने वाले सुभाष भले ही इंडस्ट्री में कोई जाना-माना नाम न हो, पर सिनेमा के लिए उनका पैशन किसी पहचान का मोहताज नहीं है। वे अब तक पचास से भी ज्यादा मीनिंगफुल फिल्मों को डीवीडी में संजोकर होम वीडियो के बाजार में पहुंचा चुके हैं।
मौजूदा दौर में 'गर्म हवा' की प्रासंगिकता के बारे में सुभाष कहते हैं, 'एम. एस. सथ्यू की फिल्म 'गर्म हवा' आज भी हमारे लिए, हमारे समाज के लिए बहुत प्रासंगिक है, क्योंकि यह फिल्म पार्टीशन पर आधारित है। जब हम अपना घर बदलते हैं, तो हमारा हाल कितना बुरा होता है। जरा सोचिए कि जिन्हें देश बदलना पडा होगा, उनके दिल पर क्या गुजरी होगी। दुख की बात है कि उस वाकए से हमने कोई सबक नहीं लिया और आज राज्यों के नाम पर हम बंटवारे करते जा रहे हैं।'
बंटवारे की त्रासदी को फिल्मकारों और लेखकों ने काफी भुनाया है। इस पर कई फिल्में बनी, पर आज भी एम. एस. सथ्यू की 'गर्म हवा' इस सब्जेक्ट पर बेजोड और मील का पत्थर मानी जाती है। सुभाष इस फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर चर्चा का विषय बनाना चाहते हैं। यही वजह है कि फिल्म को रीस्टोर करके इसकी डीवीडी के साथ सत्येन बोर्डोले लिखित एक किताब और एक स्पेशल डीवीडी भी दी जाएगी, जिसमें 'गर्म हवा' के बारे में श्याम बेनेगल, गौतम घोष, जावेद अख्तर, शौकत आजमी जैसी कई हस्तियों के विचार होंगे।
फिल्म के रीस्टोरेशन के बारे में बताते हुए सुभाष कहते हैं, 'इस फिल्म को बने 30 साल से भी अधिक हो गए हैं, उसके काफी प्रिंट्स खराब हो गए हैं। हमने उन सब प्रिंट्स को बिना नुकसान पहुंचाए रीस्टोर किया। ऎसा हमारे देश में पहली बार किया गया है। 30 साल बाद भी इस फिल्म को लेकर निर्देशक एम. एस. सथ्यू और उनकी बीवी, फिल्म की राइटर और कॉस्ट्यूम डिजाइनर शमा जैदी का पैशन आज भी बरकरार है।' इस्मत चुगताई के अप्रकाशित उपन्यास 'गर्म हवा' पर 1973 में इसी नाम से बनी फिल्म को 1974 में न सिर्फ राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित गया, बल्कि इस फिल्म ने कॉन फेस्टिवल और ऑस्कर अवार्ड सेरेमनी में अपनी खास जगह और 1975 में तीन फिल्मफेअर पुरस्कार जीतकर लोगों के दिलों में गहरी पैठ बनाई थी। गौरतलब है कि सीबीएसई के 12वीं के कोर्स में पॉलिटिकल साइंस सब्जेक्ट में 'गर्म हवा' एक पाठ के रूप में शामिल है। सुभाष के मुताबिक, 'फिलहाल इमेज रीस्टोरेशन हो चुका है और साउंड रीस्टोरेशन का काम अमरीका में चल रहा है, जो इसी महीने के आखिर तक खत्म हो जाएगा।' अपने पैशन को अपनी जिम्मेदारी मानने वाले सुभाष 1983 में फिल्म सोसायटी मूवमेंट, 1991 में फिल्म्स डिवीजन के शॉर्ट फिल्म समारोह और 1995 में चिल्ड्रन फिल्म फेस्टिवल से भी जुड रहे। सुभाष का टार्गेट है कि वे अच्छी फिल्मों को उनके दर्शकों तक ले जाएं। यही वजह है कि थोडे-थोडे अंतराल से वे जिला और तहसील स्तर पर स्कूल और कॉलेज में फिल्म फेस्टिवल मनाते रहते हैं। अपने पैशन को ऊंची उडान देने के लिए ही उन्होंने सात साल पहले मुंबई में रूद्रा होम वीडियो पार्लर खोला और इसके जरिए उन्होंने कुछ फिल्मों के कॉपीराइट्स भी हासिल किए हैं, जिनमें राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता पहली फिल्म 'श्यामची आई'(मराठी) भी शामिल है(राजस्थान पत्रिका,29 मई,2010)।

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