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Thursday, November 4, 2010

सिनेमा का जादू और 'गुज़ारिश'

संजय लीला भंसाली की ऋतिक रोशन और ऐश्वर्या राय बच्चन अभिनीत ‘गुजारिश’ फिल्म में मोनिकांगना दत्ता नामक असमिया मूल की मॉडल कन्या की छोटी, परंतु महत्वपूर्ण भूमिका है। खबर है कि कथा में थोड़ा-बहुत रस क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म ‘द प्रेस्टीज’ से भी लिया गया है। फिल्म का कथानक दो जादूगरों की मित्रता और दुश्मनी पर है।

जादू की दुनिया में हर करतब के तीन हिस्से होते हैं। पहला दर्शक को वस्तु या परिंदा दिखाना, दूसरा उसे गायब करना और तीसरा उसे पुन: प्रकट करना। इस तीसरे हिस्से को जादूगर की प्रेस्टीज अर्थात सम्मान कहा जाता है। फिल्म में शागिर्द जादूगर की चूक से पानी में हथकड़ी नहीं खुल पाने के कारण उस्ताद जादूगर की पत्नी की मृत्यु हो जाती है। इसका बदला उस्ताद कुछ इस तरह लेता है कि अपने हमशक्ल भाई की हत्या का आरोप शागिर्द पर लगाकर उसे फांसी के फंदे तक पहुंचा देता है।

यह अनुमान लगा सकते हैं कि ऋतिक की प्रेयसी की भूमिका मोनिकांगना कर रही हैं। ऋतिक के अपाहिज होने के बाद ऐश्वर्या उनकी नर्स बनती हैं और उनसे प्रेम करने लगती हैं। हालांकि इस पात्र को भंसाली ने विवाहित दिखाकर प्रेम त्रिकोण की शक्ल दी है और क्लाइमैक्स अपाहिज की मृत्यु कामना की कोर्ट सुनवाई के साथ है। भारत में असहनीय दर्द से छुटकारे के लिए मृत्यु को चुनने का अधिकार नहीं है। यह मर्सी किलिंग या यूथेनेशिया कुछ देशों में कानूनी तौर पर जायज है। भंसाली महोदय ने इस अजब कथा को पुर्तगाल शासित गोवा की पृष्ठभूमि पर रचा है। बहरहाल उन्होंने इस बार कालखंड और स्थान निश्चित कर दिया है, वरना उनकी विगत फिल्म ‘सावरिया’ में सबकुछ अनकहा और अपरिभाषित था।

अपनी फिल्मों को ऑपेरा नुमा शैली में रचने वाले भंसाली की ‘देवदास’ फिल्म में गीत-नृत्य की प्रस्तुति से प्रभावित पेरिस की एक कंपनी ने उनसे फ्रेंच भाषा में एक ऑपेरा का निर्देशन करवाया था। शायद अपने फ्रांस में बिताए दिनों की जुगाली की खातिर ही उन्होंने ‘गुजारिश’ में भी ऐश्वर्या को कुछ संवाद फ्रेंच भाषा में दिए हैं। इस बार उन्होंने अपना संगीत भी खुद ही रचा है।

संजय लीला भंसाली की सृजन प्रक्रिया में संभवत: यह पहलू नगण्य है कि दर्शक की प्रतिक्रिया क्या होगी। अधिकांश फिल्मकार सारे समय दर्शक की पसंद का अनुमान लगाते रहते हैं और दर्शक की पाचन क्रिया की सीमाओं के आधार पर फिल्म गढ़ते हैं। इस विचार शैली की सफलता का प्रतिशत भी उतना ही कम है, जितना उन फिल्मकारों का जो सृजन के समय दर्शक के बारे में नहीं सोचते। दर्शक और मतदाता का अवचेतन पढ़ना असंभव है।

क्या गुरुदत्त ने ‘प्यासा’ बनाते समय दर्शक की पसंद का ख्याल रखा होगा? फिल्म का सारा दारोमदार इस बात पर निर्भर है कि क्या दर्शक पात्रों से भावनात्मक लय स्थापित करता है। इस संबंध तथा संवाद का कोई फॉमरूला नहीं है। अत: भंसाली का तरीका गलत नहीं है। जादूगर के जीवन पर फिल्म रोचक विचार है क्योंकि यह माध्यम खुद ही जादू है।

यह जानना रोचक रहेगा कि भारत में कथा फिल्म के जनक धुंडिराज गोविंद फाल्के भी जादू का तमाशा करना जानते थे। उन्होंने कई ट्रिक्स सीखी थीं। इसी के प्रभाव से सिनेमा में ‘ट्रिक फोटोग्राफी’ करने का चलन फैला। बहरहाल ‘गुजारिश’ पर जनता की प्रतिक्रिया 19 नवंबर को ज्ञात होगी(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,3.11.2010)।

1 comment:

  1. दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं

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