Sunday, January 30, 2011

बॉलीवुडःपरम्परा उगते सूर्य को नमस्कार करने की

पाठकों की स्मृति को टटोलने जा रहा हूं। ललिता पवार के निधन के कितने दिन बाद लोगों को उनके बारे में पता चला था? पूरे तीन दिन बाद। अभिनेत्री परवीन बाबी के देहांत के कितने दिन बाद लोग इस सच्चाई को जान पाए थे? तीन दिन बाद। अब जब बीते दिनों की अभिनेत्री नलिनी जयवंत का निधन हुआ, तो उनके पड़ोसियों को कितने दिन बाद इस बारे में पता चला है? तीन दिन बाद। फिल्म इंडस्ट्री में शोकाहत करने वाली किसी सूचना को फैलने में कम से कम तीन दिन लगते हैं। विगत दिनों के किसी स्टार की मृत्यु के बारे में तो यह सोलह आने सच है। जब आप चमकते स्टार होते हैं, तो आपके हर कदम का नोटिस लिया जाता है, आपके द्वारा उच्चारित हर शब्द को ब्रेकिंग न्यूज बनाया जाता है। इस तरह आपके निजी जीवन में गोपनीयता की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती। लेकिन एक बार लोकप्रियता की चोटी से गिरने के बाद विस्मृति के गटर में आपका समा जाना तय है। भारतीय फिल्मोद्योग चमकते हुए सूरज की ही पूजा करता है। हालांकि यह भी एक खर्चीला धंधा है और इन फिल्म कलाकारों को प्रशंसकों के बीच अपनी लोकप्रियता बनाए रखने के लिए काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। अतीत के महान कलाकारों को भुला दिए जाने की सूची बहुत लंबी है। ऐसे कलाकार दशकों तक विस्मृत रहते हैं, जब तक कि उनके निधन की सूचना न आ जाए। फिर उनके मृत्यु की वजह का पता लगाया जाता है और उसके बाद उन पर एक दोस्ताना श्रद्धांजलि लिख दी जाती है, ललिता पवार, परवीन बाबी और नलिनी जयवंत के मामले ऐसे ही हैं। निरूपा राय या अजित के निधन पर ऐसी बेरुखी देखने को नहीं मिली थी। इसकी वजह यह है कि उनके बारे में बताने के लिए उनके बेटी-बेटे मौजूद थे। ऐसा ही दुर्भाग्य भारतभूषण का था। बीते दिनों का इतना चर्चित कलाकार एक साधारण आदमी की मौत मरा। इस पर प्रसिद्ध संगीतकार ओ पी नैयर इतने दुखी हुए कि उन्होंने अपने शुभचिंतकों को आगाह कर दिया था कि उनकी मौत के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चलना चाहिए। वह नहीं चाहते थे कि उनके न रहने पर कोई उनकी तारीफ में कसीदे पढ़े। लिहाजा उनकी मृत्यु के लगभग एक महीने बाद जब यह सूचना सार्वजनिक हुई, तो उनके संगीत के प्रशंसकों ने श्रद्धांजलि देते हुए हिंदी फिल्म संगीत में उनके योगदान को भावुकता के साथ याद किया। कलाकारों की दुनिया में यह सब काफी त्रासद है। इस दुनिया में सबसे योग्य ही टिक सकता है, सबसे महान नहीं। क्या आपने हाल के दिनों में कभी चंद्रमोहन, अशोक कुमार या नरगिस को याद किया? फिल्म इतिहास के बारे में हमारी स्मृति काफी कमजोर है। खुद फिल्म इंडस्ट्री के पास भी इसका इतिहास लिखने या यादगार दृश्यों को सहेजने की कोई योजना नहीं है। कई बार कलाकार खुद एकांतवासी होना पसंद करते हैं और जनता के सामने नहीं आना चाहते। बीते दिनों की गायिका-अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित को मैं आज इसी सूची में रखता हूं। ऐसी ही एक और एकांतवासी अभिनेत्री कोलकाता में सुचित्रा सेन हैं। खासकर पुराने दिनों की अभिनेत्रियां लोगों से बचना चाहती हैं। दरअसल अपार्टमेंट संस्कृति में सब लोग अपने में ही जीते हैं। ऐसे में यह कानून बनना चाहिए कि हर आदमी सप्ताह में कम से कम एक बार अपने पड़ोसियों से जरूर मिले, ताकि उनके बारे में नियमित तौर पर जानकारियां मिलती रहें। नलिनी जयवंत पर श्रद्धांजलियों का अभाव दुर्भाग्यपूर्ण रूप से बताता है कि उनका गौरवशाली फिल्म कैरियर वाकई इतना पीछे छूट गया था कि लोग जीते-जी उन्हें भूल चुके थे!(महेश भट्ट,दैनिक जागरण,भोपाल,30.1.11)

2 comments:

  1. महाशय, उगते सूरज को सब सलाम करते हैं। यह दस्‍तूर है दुनिया का। कडवा सच भी यही है।

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  2. यही कटु सत्य है.

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