2003 में बीएनए से डिप्लोमा लेने के बाद आरिफ शहडोली ने राजधानी लखनऊ को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। उन्होंने बच्चों को अभिनय के गुर सिखाये और बहुत से नाटकों में अभिनय के साथ निर्देशन भी किया। बीएनए से अभिनय सीखने वालों में से कम ही कलाकार होंगे जिनको विदेशी फिल्म में काम करने का मौका मिला होगा, लेकिन आरिफ अब वह हॉलीवुड के लिए निर्मित होने वाली अंग्रेजी फिल्म ‘एन अमेरिकन इन इण्डिया’ में मुख्य विलेन का किरदार निभा रहे हैं। इलाहाबाद में शूटिंग पूरी करने के बाद बुधवार को वह राजधानी में थे और बताया कि यह फिल्म अंग्रेजी भाषा में बन रही है, जिसके निर्देशक अक्सर इलाहाबादी है। फिल्म में हालीवुड के कलाकार एडर्वड मुख्य किरदार निभा रहे हैं। उन्होंने बताया कि बीएनए से डिप्लोमा लेने के बाद उनकी जिन्दगी में एक नया मोड़ आया, क्यों कि किसी भी अभिनय संस्थान में डिप्लोमा को महत्व ही नहीं दिया जा रहा था सभी लोग डिग्री मांगते थे। इस कारण बीएनए का डिप्लोमा बेकार हो गया। इसे लेकर उन्होंने आरटीआई के जरिये बीएनए से खूब सवाल जवाब भी किया, लेकिन अभिनय की क्षमता को बनाये रखा और संघर्ष जारी रहा, जिससे यह मुकाम मिला। आरिफ ने सुधाकर की फिल्म ‘धीर’, मणिरत्नम की फिल्म ‘रावण’ और राजा बुन्देला की फिल्म ‘सन आफ फ्लावार’ में महत्वपूर्ण किरदार निभाया है। उन्होंने बताया कि हालीवुड की फिल्म में महत्वपूर्ण किरदार करना उनकी जिन्दगी का एक पड़ाव है, जिससे निश्चित रूप से उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेगा। फिल्म की शूटिंग पूरी हो गयी है और अब तकनीक पक्ष पर काम बचा है, फिर कुछ ही महीनों में पूरी दुनिया में फिल्म प्रदर्शित की जाएगी(आरिफ शहडोली,राष्ट्रीय सहारा,लखनऊ,27.5.11)
इस ब्लॉग पर केवल ऐसी ख़बरें लेने की कोशिश है जिनकी चर्चा कम हुई है। यह बहुभाषी मंच एक कोशिश है भोजपुरी और मैथिली फ़िल्मों से जुड़ी ख़बरों को भी एक साथ पेश करने की। आप यहां क्रॉसवर्ड भी खेल सकते हैं।
Friday, May 27, 2011
Saturday, May 21, 2011
पहली बार भोजपुरी सिनेमा के लिए अवॉर्ड
भोजपुरी सिनेमा के 50 साल पूरे होने पर मुंबई की ‘भोजपुरी सिटी‘ पत्रिका ने पहली बार भोजपुरी सिनेमा के लिए हर श्रेणी में अवॉर्ड देने की घोषणा मुंबई मे एक प्रेस कांफ्रेंस में की। ‘भोजपुरी मीडिया’ के प्रकाशन का यह चौथा वर्ष है और इस बीच पत्रिका ने न सिर्फ भोजपुरी, वरन पूरी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बना ली है। उल्लेखनीय है कि 2 जून को होने वाले इस अवॉर्ड समारोह का मीडिया पार्टनर सहारा न्यूज नेटवर्क है। मंच से बोलते हुए समारोह के सव्रेसर्वा किशन खदरिया ने स्वीकार किया कि ‘सहारा इंडिया परिवार ने मुझे सही मायने में सहारा दिया है। आज मेरी खुशी का कोई ओर छोर नहीं है। हमारी पत्रिका प्रकाशन के चौथे वर्ष में प्रवेश कर गई है और आज भोजपुरी सिनेमा सौ करोड़ रुपए का कारोबार कर रहा है। वैसे तो मैं राजस्थानी हूं, लेकिन पता नहीं क्यों मुझे बिहार और भोजपुरी सिनेमा से प्यार हो गया है।’
मंच पर सहारा इंडिया परिवार का प्रतिनिधित्व श्री रूबल दत्ता ने किया। उन्होंने कहा, ‘सहारा इंडिया परिवार कामना करता है कि यह अवॉर्ड ट्रेंड सेटर बने।’ दीप प्रज्जवलन युवा अभिनेता आफताब शिवदासानी और अभिनेत्री अदिति गोवित्रीकर के हाथों संपन्न हुआ। इस मौके पर आफताब ने कहा, ‘मुझे पहली बार पता चला कि भोजपुरी सिनेमा को 50 वर्ष हो गए। आप पहली बार अवॉर्ड देने जा रहे हैं। मेरी कामना है कि भोजपुरी सिनेमा और आगे बढ़े। हिंदी में तो इतने सारे अवॉर्ड हैं कि हर अवॉर्ड का नाम भी याद नहीं रहता।’
भोजपुरी सिनेमा के लीजेंड कहे जानेवाले कलाकार राकेश पांडे ने भोजपुरी सिनेमा की यात्रा और दशा-दिशा पर अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि कैसे भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने चाहा था कि भोजपुरी सिनेमा का भी निर्माण हो। उनकी प्रेरणा से भारत की पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो’
सन् 1961 में बननी शुरू हुई और सन् 1962 में रिलीज हुई। इस फिल्म को बनाने में नजीर हुसैन साहब की महत्वपूर्ण भूमिका थी और उन्हीं की कहानी पर फिल्म बनी थी। इस फिल्म के निर्माता विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी और निर्देशक कुंदन कुमार थे। फिल्म में असीम कुमार, कुमकुम, हेलन और बेबी पद्मा खन्ना ने काम किया था। भोजपुरी की यह पहली ही फिल्म सुपर डुपर हिट हुई थी। कार्यक्रम समाप्त होने तक भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार मनोज तिवारी भी पहुंच गए। उन्होंने पहुंचते ही अपने दिलकश अंदाज में कहा, ‘मैं तो हूट का हकदार हूं, क्योंकि मैं इतनी देर से आया। इस पर भी मेरा स्वागत हो रहा है जिससे मैं खुश हूं। मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि भोजपुरी सिनेमा पर केंद्रित पत्रिका ‘भोजपुरी सिटी‘ को ही भोजपुरी सिनेमा के अवॉर्ड देने का हक है।’
‘भोजपुरी सिटी’ के संपादक अखिलेश ने बताया कि, ‘अब हम पूरी फिल्म इंडस्ट्री को रिप्रजेंट करने लगे हैं। हम दो प्रकार के अवॉर्ड देने जा रहे हैं। पहला जूरी अवॉर्ड और दूसरा पॉपुलर अवॉर्ड। यह अवॉर्ड जनवरी से दिसम्बर 2010 के बीच रिलीज हुई भोजपुरी फिल्मों में से प्रत्येक श्रेणी में दिया जाएगा।’
अंत में उदित नारायण, आफताब शिवदासानी, राकेश पांडे और अदिति गवित्रीकर के हाथों अवॉर्ड की ट्रॉफी का अनावरण किया गया। इस कार्यक्रम की सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि हिंदी फिल्मों के सफल गायक उदित नारायण ने अपना वक्तव्य शुद्ध भोजपुरी में दिया और उन्होंने एक पॉपुलर भोजपुरी गीत की दो पंक्तियां भी गाकर सुनाई जिस पर पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। इस कार्यक्रम में भोजपुरी सिनेमा के प्रमुख निर्देशक, कलाकार और निर्माता मौजूद थे(राष्ट्रीय सहारा,मुंबई,20.5.11)।
Friday, May 20, 2011
शाही शादी में गुम हुई के. बालाचंदर की ख़बर
एक और पुरोधा को पिछले दिनों भारतीय सिनेमा में अमूल्य योगदान के लिए फिल्म जगत के सबसे बड़े राष्ट्रीय सम्मान दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। दक्षिण सिनेमा के कई सितारों को जन्म देने वाले कैलासम बालाचंदर को बतौर निर्माता-निर्देशक तमिल सिनेमा के स्तर को उच्चकोटि का बनाने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने तमिल के अलावा कन्नड़, तेलुगू और हिंदी फिल्मों में भी निर्देशन किया। तमिलनाडु के तंजावुर में 1930 में जन्मे बालाचंदर रूपहले परदे के पीछे जलवा बिखेरने से पूर्व मद्रास में एकाउंटेंट जनरल के दफ्तर में नौकरी करते थे। फिल्म निर्माण से जुड़ने से पहले वह अपनी ड्रामा टीम श्रागिनी रीक्रिएशंस के साथ काफी समय तक नाट्य लेखन का काम किया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी बालाचंदर ने कई नाटक लिखे, जिन पर आगे चलकर कई फिल्में भी बनाई गई। इनमें प्रमुख हैं 1964 में कृष्णा पंजु की फिल्म सरवर सुंदरम और मेजर चद्रकांत पर आधारित हिंदी फिल्म ऊंचे लोग, जिसे निर्देशित करने का काम किया था फणी मजूमदार ने। बालाचंदर पिछले 45 सालों से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में सक्रिय हैं और जब उन्होंने इस सर्वोच्च सम्मान से खुद को नवाजे जाने की खबर सुनी तो इसे अपने जीवन का सर्वाधिक गौरवपूर्ण क्षण करार दिया। लीक से हटकर फिल्में बनाने के लिए अपनी अलग पहचान रखने वाले बालाचंदर को कई सुपर स्टारों को तराशने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने रजनीकांत, कमल हासन, प्रकाशराज, विवेक और जयाप्रदा, श्रीदेवी, सुजाता, सरिता व रति अग्निहोत्री के अलावा नए दौर के कई सितारों को दर्शकों से रू-ब-रू कराया। बालाचंदर महान फिल्मकार एमजी रामचंद्रन की फिल्म दीवाथाई1964 के लिए पटकथा लिखने के बाद उनकी सलाह पर निर्देशन के क्षेत्र में उतरे और 1965 में नीरकामुझी को निर्देशित किया। अपनी पहली ही फिल्म से उन्होंने दर्शकों के बीच खासी लोकप्रियता हासिल कर ली। मजेदार बात यह रही कि उन्होंने खुद की लिखी एक पुराने नाटक को फिल्म की कथावस्तु के रूप में ढाला। इसके बाद उन्होंने कलाकेंद्र नाम से एक प्रोडक्शन हाउस खोला और यहां से शुरू हो गई उनके फिल्मी सफर में सफलता की दास्तां। उन्होंने कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया जिसके लिए उन्हें कई श्रेणियों में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिए गए। पांच तमिल फिल्मों के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। अपने प्रोडक्शन के अलावा बालाचंदर ने दूसरे प्रोडक्शंस के लिए भी फिल्में बनाई। उन्होंने 1966 में एवीएम प्रोडक्शन के बैनर तले तमिल भाषा में मेजर चंद्रकांत का निर्माण किया। इसके बाद एक और बहुचर्चित फिल्म बनाई। यह सुंदरराजन और जयललिता बालाचंदर अभिनीत तमिल फिल्म भामा विजयम थी जो 1967 में बनाई गई थी। बाद में इसी फिल्म को तेलुगू में भाले कुडालू नाम से रिमेक किया गया। इस फिल्म की लोकप्रियता को देखते हुए 1968 में हिंदी में भी तीन बहुरानियां के नाम से फिल्म बनाई गई। बालाचंदर की ज्यादातर फिल्में शहर में रहने वाले मध्यम वर्गीय समाज में घटित घटनाओं पर आधारित होती थीं। साथ ही उनकी फिल्मों का समापन मध्य वर्ग के समाज की नैतिकता को स्वीकारते हुए होता था। सत्तर के दशक में उनकी कुछ कालजयी फिल्में काविया थालिआवी वर्ष 1970 में, अपूर्वा रागांगल, 1975 में, मनमाथा लीलाई, 1976 में, अवरगल वर्ष 1977 में और मारो चारिथरा वर्ष 1978 में आई। मारो चारिथरा एक तेलुगू फिल्म है जिसका नायक तमिल भाषी है जबकि नायिका तेलुगू बोलने वाली होती है। दोनों आपस में प्रेम करते हैं, लेकिन दोनों के घर वाले इस रिश्ते के खिलाफ होते हैं, लेकिन बाद में वे शर्त रखते हैं कि यदि प्रेमी-प्रेमिका एक साल तक आपस में नहीं मिलते हैं तो उनकी शादी करा दी जाएगी। इस फिल्म की अपार सफलता को देखते हुए बालाचंदर ने हिंदी में बनी एलवी प्रसाद की वर्ष 1981 में बनी फिल्म एक दूजे के लिए को निर्देशित किया। तमिल और पंजाबी रोमांस पर आधारित लव स्टोरी से कमल हासन और रति अग्निहोत्री ने हिंदी सिनेमा के रूपहले परदे पर पदार्पण किया। यह फिल्म बॉक्सऑफिस पर जबर्दस्त रूप से हिट रही। इसकी सफलता से रति अग्निहोत्री रातोंरात स्टार बन गई, लेकिन हासन को इसका खास फायदा नहीं मिला। बालाचंदर ने हासन के लिए एक और हिंदी फिल्म जरा सी जिंदगी बनाई पर यह बॉक्सऑफिस पर असफल ही साबित हुई। बालाचंदर ने सिर्फ रोमांस पर आधारित फिल्में ही नहीं बनाई, बल्कि अन्य विषयों पर भी फिल्में बनाई। राजनीति पर आधारित थानिर-थानिर फिल्म कोमल स्वामीनाथन और खुद की लिखी एक कहानी अच्चामिलाई-अच्चामिलाई पर आधारित थी, जो काफी सफल रही। इस फिल्म में पानी के लिए ग्रामीणों के संघर्ष को जिस तरह से दर्शाया गया है, वह काबिले तारीफ है। कैलासम बालाचंदर ने वर्ष 1985 में एक और फिल्म बनाई, जो संगीत प्रधान थी। यह फिल्म सिंधु भैरवी के नाम से बॉक्सऑफिस पर हिट हुई। इस फिल्म की नायिका सुहासिनी को बेहतरीन अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। इन फिल्मों में बालाचंदर के अंतर्मन को समझा जा सकता है जिसमें उनकी पीड़ा और दर्द झलकती है। एक फिल्मकार के रूप में उनका योगदान बहुत ज्यादा है जिसे भूला पाना शायद ही किसी के लिए संभव हो सके। ब्राह्मण परिवार में जन्मे बालाचंदर को तमिल सिनेमा कालीवुड में इयाकुनार सिकारम यानी शीर्ष निर्देशक के नाम से जाना जाता है। बड़े परदे के अलावा उन्होंने छोटे परदे पर भी सफल पारी खेली। 81 साल की उम्र में भी वह सक्रिय हैं। यह भाग्य बहुत कम लोगों को ही नसीब हो पाता है। उनकी प्रसिद्ध धारावाहिकों में छोटी सी आशा हिंदी फिल्म भी शामिल है। उन्होंने चार भाषाओं में 100 से ज्यादा सितारों को तैयार किया जिनमें कइयों ने सफलता के झंडे गाड़े। ढेरों सितारों को तराशने वाले बालाचंदर ने एमजी रामचंद्रन और शिवाजी गणेशन जैसी महान हस्तियों के साथ काम नहीं किया, लेकिन इससे शायद ही कोई फर्क उन पर पड़ता हो। बालाचंदर दक्षिण सिनेमा के एक महान हस्ताक्षर हैं। उम्र के आठवें दशक में भारतीय सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ सम्मान से नवाजे जाने वाले बालाचंदर ने देर से इस पुरस्कार के मिलने पर अफसोस जताने के बजाय इसे तहे दिल से स्वीकार किया है। हालांकि जिस दिन उन्हें इस सम्मान से सम्मानित करने की घोषणा की गई, उस दिन भारत की मीडिया ब्रिटेन के राजकुमार विलियम और कैट की शाही शादी में व्यस्त था और इस खबर पर किसी का ध्यान ही नहीं गया।
Thursday, May 19, 2011
टीवी पर बंद हो लता का मजाक: शिवसेना
शिवसेना ने टीवी सेंसरशिप के अपने एजेंडे को पुन: हवा दी है। इस बार पार्टी ने सभी टीवी चैनलों को फरमान जारी करते हुए कहा है कि उनके चैनलों पर आने वाले कॉमेडी सीरियलों में लता मंगेशकर का मजाक नहीं बनाया जाए।
शिव सेना की इकाई भारतीय चित्रपट सेना के अध्यक्ष अभिजीत पनसे की अगुवाई में पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने सोनी चैनल को इस संबंध में एक पत्र लिखा है। पत्र में चैनल पर प्रसारित होने वाले कॉमेडी शो ‘कॉमेडी सर्कस’ में मंगेशकर का मजाक बनाए जाने पर आपत्ति जताई है और तत्काल प्रभाव से उन एपिसोड पर रोक लगाने की मांग की है।
कार्यक्रम के प्रतिभागी सुदेश और कृष्णा ने सीरियल में मंगेशकर का मजाक बनाया था। पनसे ने कहा, ‘लता मंगेशकर भारतीय म्यूजिक इंडस्ट्री की आइकान हैं। भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति के खिलाफ हम ऐसी बेहूदी चीजें बर्दाश्त नहीं करेंगे।
फिलहाल यह चेतावनी केवल सोनी को ही दी गई है। लेकिन हम चाहते हैं कि दूसरे चैनल भी हमारी बात को समझें।’ साथ ही यह भी कहा कि अगर चैनल इन एपिसोडों पर रोक नहीं लगाता है तो उसे पार्टी अपने तरीके से समझाएगी।
मंगेशकर और शिवसेना का रहा पुराना रिश्ता:
लता मंगेशकर और शिवसेना के संबंधों का पुराना इतिहास रहा है। 90 के दशक में मंगेशकर ने खुद से शिव उद्योग सेना के लिए परफॉर्म कर धन इकट्ठा किया था। वहीं उनके भाई हृदयनाथ मंगेशकर 2009 में शिवसेना से जुड़े थे।
हालांकि इस बारे में पनसे ने कहा, ‘हमने यह मुद्दा इसलिए नहीं उठाया है क्योंकि उनसे हमारे रिश्ते अच्छे हैं। उनका अपमान करना देश के एक महान कलाकार का अपमान है(आलोक देशपांडे,दैनिक भास्कर,मुंबई,18.5.11)।’
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