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Tuesday, March 6, 2012

फिल्म इंडस्ट्री में कामकाजी जोड़े

घर की दहलीज से बाहर आकर अपने पति या पत्नी के साथ काम करना दुधारी तलवार साबित हो सकता है। एक ओर आपसी रिश्ते में तनाव तो दूसरी ओर प्रोफेशनल तरीके से काम न हो पाने का खतरा बना रहता है। इसके बावजूद बॉलीवुड के जोड़े व्यावसायिक साझेदार बनने में हिचकते नहीं हैं। सुपर स्टार आमिर खान और उनकी डायरेक्टर पत्नी किरण राव इस बात का आदर्श उदाहरण हैं कि घर और काम को कैसे बैलेंस किया जा सकता है। समीक्षकों द्वारा प्रशंसित, किरण की ‘धोबीघाट’ एक-दूसरे के सहयोग के कारण निर्बाध पूरी हो गई। हालांकि परफेक्शनिस्ट आमिर खान इस फिल्म के प्रोड्यूसर और एक्टर के साथ-साथ किरण के पति भी हैं, परंतु उन्हें किरण के भरोसे और नजरिए पर विश्वास था। इसीलिए वह फिल्म की परिकल्पना से लेकर प्रोडक्शन तक, किरण के कंधे से कंधा मिलाकर चले और किरण ने अंतत: उन्हें ड्रीम प्रोड्यूसर का खिताब दिया। उनके रिश्ते में एक बात साफ नजर आती है कि वे पर्सनल और प्रोफेशनल, दोनों ही स्तरों पर एक-दूसरे को समान मानते हैं। 

अपनी पत्नी कल्की को ‘देव डी’ और ‘दैट गर्ल इन येलो बूट्स’ में डायरेक्ट कर चुके राइटर-डायरेक्टर अनुराग कश्यप का मानना है कि उनकी वर्किंग रिलेशनशिप का आधार आपसी भरोसा, सम्मान और सहमति है। दूसरी ओर कल्कि स्वीकार करती हैं कि कई मौकों पर गहरे मतभेद भी उभरते हैं, पर वह उन्हें गंभीरता से नहीं लेतीं। वह मानती हैं कि लव और केयर की तरह तकरार भी मॉडर्न रिश्तों का जरूरी हिस्सा है। डायरेक्टर अब्बास टायरवाला ने भी अपनी पत्नी पाखी द्वारा लिखित स्क्रिप्ट पर अपनी पिछली फिल्म ‘झूठा ही सही’ बनाई थी, जिसमें हीरोइन भी पाखी थीं। अब्बास कहते हैं, पत्नी को कभी हल्का मत समझिए, कभी नहीं। 

ऐसे जोड़े आज इंडस्ट्री में बढ़ते वर्किंग कपल्स की संख्या पर आश्चर्य नहीं करते और अब हर काम की बागडोर पुरुषों के हाथों में ही नहीं है। डायरेक्शन, प्रोडक्शन, एडीटिंग आदि जो काम पुरुषों के माने जाते रहे हैं, उन्हें अब स्त्रियां भी करने लगी हैं। राकेश ओमप्रकाश मेहरा की सारी फिल्में उनकी पत्नी पीएस भारती एडिट करती हैं। इसके विपरीत फराह खान की सभी फिल्में उनके एडीटर पति शिरीष कुंदेर एडिट किया करते हैं। कभी इनकी ही तरह विधु विनोद चोपड़ा और रेणु सलूजा मिलकर काम किया करते थे। विशाल भारद्वाज भी अपनी गायिका पत्नी रेखा ‘नमक इश्क का’ फेम से कम से कम एक गाना अपनी हर फिल्म में जरूर गवाते हैं। आशुतोष गोवारीकर को मदद करने के लिए उनकी पत्नी सुनीता भी हमेशा उनके साथ सेट पर मौजूद रहती हैं।  

देखा जाए तो वर्किंग कपल्स का टे्रंड इंडस्ट्री में नया नहीं है। पहले भी देविका रानी-हिमांशु राय, कमाल अमरोही-मीना कुमारी, गुरुदत्त-गीता दत्त/ वहीदा रहमान, अमोल पालेकर-संध्या गोखले जैसे कपल्स ने कामकाज में साझेदारी को सफलतापूर्वक निभाया है। यह टे्रंड पूरी तरह भारतीय टे्रंड भी नहीं है। चार्ली चैप्लिन, सेसिल बी डेमिले, जीन रेनोइर, डीडब्ल्यू ग्रीफिथ, इडो ल्यूपिनो आदि बहुत-सी फिल्मी हस्तियों ने अपने पार्टनर के साथ कई फिल्मों में सफलतापूर्वक काम किया। 

हमारी फिल्म इंडस्ट्री में कपल्स की प्रोफेशनल साझेदारी का कारण पैसा और किफायत नहीं है। गोवारीकर की पत्नी सुनीता सफलतापूर्वक ‘आशुतोष गोवारीकर प्रोडक्शंस’ संभालती हैं और घर भी। उनकी सलाह है कि निजी हितों के टकराव से बचो। 

प्रोफेशनल साझेदारी का प्रमुख फायदा है कि कपल्स को अधिकांश समय साथ गुजारने का मौका मिलता है, निकटता का आनंद उठा पाते हैं। इससे आपसी बांडिंग और विश्वास भी बढ़ता है। ‘अग्निपथ’ के सिनेमाटोग्राफर किरण देवहंस की आत्मीयता अपनी पारसी डायरेक्टर पत्नी अबान से देखने लायक है। जोड़े वर्क प्लेस की यादें घर लेकर जाते हैं, जिससे उनका रिश्ता बड़ा संवेदनशील हो जाता है। फिल्म ‘अभिमान’ की तरह आपसी ईष्र्या और दुश्मनी का भी जोखिम रहता है। तलाकों की बढ़ती संख्या का एक कारण प्रोफेशनल साझेदारी भी है। एक जैसी रूचि रखना अलग बात है, एक साथ काम करना अलग बात। ज्यादातर पति अपनी पत्नी की सफलता को नहीं पचा सकते और सिनेमा के बिजनेस में कोई भी कुछ बन सकता है। रिश्ते को मजबूत रखने के लिए जरूरी है कि जोड़े भिन्न क्षेत्रों में काम करें(नरेन्द्र देवांगन,दैनिक ट्रिब्यून,26.2.12)।