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Tuesday, August 9, 2011

आरक्षण से खौफ़ज़दा हमारे नेता

दुनिया में शायद भारत ही एकमात्र ऐसा देश होगा जहां कुछ राजनेता कभी किसी फिल्म से डर जाते हैं तो कभी किसी नाटक के मंचन से। कभी कोई किताब या किसी चित्रकार का बनाया कोई चित्र उन्हें लोगों की भावनाएं आहत करने वाला लगता है तो कभी कोई गीत या कविता उन्हें आपत्तिजनक लगती है। फिलहाल कुछ राजनेता प्रकाश झा जैसे जिम्मेदार फिल्मकार की फिल्म "आरक्षण" से डरे हुए नजर आ रहे हैं। सबसे ज्यादा भयभीत उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार है और उसने तय किया है कि इस फिल्म को रिलीज होने से पहले उसकी बनाई एक कमेटी के सदस्य देखेंगे और वे ही फैसला करेंगे कि फिल्म को प्रदेश के सिनेमाघरों में दिखाए जाने की अनुमति दी जाए या नहीं। उधर महाराष्ट्र के लोकनिर्माण मंत्री छगन भुजबल और दलित नेता रामदास अठावले ने भी इसके प्रदर्शन का विरोध करने की चेतावनी दे रखी है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में बैठे कुछ राजनेताओं ने भी इस फिल्म को देखे बगैर ही फतवा दे दिया है कि यह दलित विरोधी फिल्म है। इसी तरह का विरोध कुछ दिनों पहले रिलीज हुई फिल्म "खाप" को लेकर भी हो रहा है, जो "ऑनर किलिंग" जैसे ज्वलंत मुद्दे पर बनी है। फिल्मों में क्या आपत्तिजनक है और क्या नहीं, यह तय करने के लिए हमारे यहां सेंसर बोर्ड नाम की एक संस्था है, जो अपना काम लगभग पूरी संजीदगी के साथ करती आ रही है। ऐसे में राजनेताओं को यह अधिकार देश के किस कानून ने दे दिया है कि वे यह तय करने लग जाएं कि कौन सी फिल्म प्रदर्शन के लायक है और कौन सी नहीं या फिल्म में क्या दिखाया जाए और क्या नहीं? अगर ऐसे अराजक सेंसर से ही यह सब कुछ तय होने लगेगा तो फिर सेंसर बोर्ड का औचित्य ही क्या रह जाएगा? बहरहाल पैसे के लेन-देन को लेकर एक विवाद के चलते मद्रास हाई कोर्ट ने १२ अगस्त को होने वाली "आरक्षण" की रिलीज पर रोक लगा दी है। लेकिन यह एक अलग मुद्दा है। सवाल उठता है कि जो राजनेता इन फिल्मों का विरोध कर रहे हैं क्या उन्होंने फिल्मों के बारे में कोई अकादमिक प्रशिक्षण ले रखा है या वे देश की जाति व्यवस्था और जातिवाद की समस्या को गहराई से जानते और समझते हैं? दरअसल, अपने घर की गंदगी को कालीन या चटाई के नीचे छिपा देने की प्रवृत्ति भारतीय समाज में काफी हद तक व्याप्त है। उसे साफ करने को लेकर हमारे मन में झिझक है या उसके उजागर होने में एक तरह का अपराध बोध होता है। यही झिझक और अपराध बोध कभी किसी फिल्म, किसी नाटक, किसी किताब या किसी कलाकृति के विरोध के रूप में उजागर होता रहता है(संपादकीय,नई दुनिया,दिल्ली,9.8.11)। 6 अगस्त के नवभारत टाइम्स का संपादकीय भी कहता है कि हमारे राजनेता फिल्मों से डरते हैं। अक्सर वे किसी किताब या नाटक के मंचन से भी डर जाते हैं। उनका ताजा डर प्रकाश झा की फिल्म 'आरक्षण' को लेकर है। महाराष्ट्र के लोकनिर्माण मंत्री छगन भुजबल और आरपीआई के अध्यक्ष रामदास अठावले ने इसके प्रदर्शन का विरोध करने की चेतावनी दे रखी है। पिछले दिनों रिलीज हुई फिल्म 'खाप' का भी विरोध हो रहा है। इसे खाप की राजनीति से जुड़े नेता हवा दे रहे हैं। एक जमाने में 'आंधी' फिल्म पर इसलिए पाबंदी लगा दी गई थी, क्योंकि उसमें सुचित्रा सेन के चरित्र में कुछ लोगों को इंदिरा गांधी की झलक दिखाई दे रही थी। और 'शूल' फिल्म का बिहार में प्रदर्शन तभी हुआ, जब आरजेडी के एक नेता ने उसे इजाजत दी। इसी तरह का विरोध अक्सर कुछ किताबों या नाटकों के मंचन के मामलों में भी नजर आता है। इस विरोध के पीछे कौन सा मनोविज्ञान काम करता है? एक कारण तो यह है कि पिछले कुछ समय से कंट्रोवर्सी और विरोध पब्लिसिटी का सबसे अच्छा तरीका साबित हो रहा है। आप खुद कुछ नहीं कर रहे हैं, पर यदि कहीं कुछ हो रहा है तो उसका विरोध कर आप खुद भी रोशनी में आ जाते हैं। या आप कुछ कर रहे हैं, मगर उसे कोई देख नहीं रहा, तो भी कंट्रोवर्सी आपको दूसरों की नजर में ला देती है। इसीलिए कंट्रोवर्सी आज की पीआर एजेंसियों का सबसे भरोसेमंद हथियार है। लेकिन राजनीतिज्ञों के मामले में इसका एक कारण उनके भीतर बसा असुरक्षा बोध भी होता है। हमारे अनेक राजनीतिज्ञ भयानक रूप से असुरक्षा बोध से ग्रस्त हैं। असल में वे अपनी निष्ठा या वैचारिक समझ के कारण जनता के बीच नहीं टिके होते, बल्कि एक सम्मोहन के कारण होते हैं, जो वे अपनी लफ्फाजी से पैदा करते हैं। वे जनता को भ्रमित कर उसे अपना अनुयायी या समर्थक बनाए रखना चाहते हैं। इसलिए जैसे ही कोई ऐसी ताकतवर चीज आती है, जो जनता की आंखें खोल सकती है, तो वे डर जाते हैं और किसी न किसी बहाने उसका विरोध शुरू कर देते हैं। वे नहीं चाहते कि लोग किसी मुद्दे पर दूसरे ढंग से भी सोचें। किताबें, फिल्में या थिएटर उन्हें दूसरे ढंग से सोचने का रास्ता दिखा देते हैं।

Saturday, August 6, 2011

गढ़वाली फिल्मों के निर्माण को बढ़े कदम

शिव आराधना स्टुडियोज एवं उज्जवल फिल्मस मुंबई जल्द ही उत्तराखंडी फिल्मों का निर्माण शुरू करेगा। इसके लिए 25 अगस्त से राज्य के प्रत्येक जिले में कलाकारों का टेस्ट लिया जाएगा। शुक्रवार को गांधी रोड स्थित एक होटल में आयोजित पत्रकार वार्ता में शिव आराधना स्टुडियोज के अजय मधवाल ने बताया कि तमिल फिल्मों में बतौर अभिनेता काम करने के बाद उन्होंने उत्तराखंडी फिल्म निर्माण की ओर कदम बढ़ाए हैं। उज्जवल फिल्मस के उज्वल राणा भी टेलीविजन धारावाहिकों व बॉलीवुड फिल्मों के निर्माण व निर्देशन से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि क्षेत्रीय भाषा की फिल्म निर्माण के लिए प्रदेश के जाने-माने गीतकार व संगीतकारों ने अपनी सहमति जतायी है। फिलहाल उन्होंने फिल्म से जुड़े अन्य पहलुओं का खुलासा करने से इनकार कर दिया है। अभी फिल्म की स्टार कास्ट व अन्य चीजें तय नहीं की गई हैं। गौरतलब है कि उज्जवल राणा मूलता टिहरी व अजय मधवाल मूलत पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले हैं। मधवाल दक्षिण भारत की तमिल फिल्मों में बतौर अभिनेता काम कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि फिल्म में सभी कलाकारों का चयन स्थानीय स्तर पर ही किया जाएगा। इसके लिए पचीस अगस्त से ऑडिशन की प्रक्रिया आरंभ कर दी जाएगी। स्टुडियोज की ऑडिशन टीम 23 अगस्त को देहरादून पहुंचेगी। सितम्बर तक ऑडिशन प्रक्रिया संपन्न होने के बाद ही फिल्म का निर्माण शुरू हो पाएगा(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,6.8.11)।

Monday, August 1, 2011

बड़े काम की है ये बॉडी

अभी कुछ साल पहले सैफ दिल के हाथों मजबूर हो कर अस्पताल में पहुंच गये थे। इसके बाद से उन्होंने अपने ट्रेनर चौरसिया के सुझाव पर ही अपनी बॉडी को मेंटेन कर रखा है। आमिर और सैफ अली खान जैसे कई हीरो के निजी ट्रेनर हैं।

सनी देओल, संजय दत्त, सलमान खान, इमरान हाशमी, आमिर खान और शाहरुख के बाद अब अजय देवगन की बारी है। सिंघम में अपने सिक्स पैक जिस्म के साथ जब वह परदे पर आराजक तत्वों को सबक सिखाते नजर आते हैं, तो स्वभाविक तौर पर उनकी जिस्मानी ताकत को दर्शकों का एक मौन समर्थन मिलता है। असल में हिंदी फिल्मों में नायक का जिस्म शुरू से ही बहुत अहम बना हुआ है। इसके लिए फिल्म के एक लोकप्रिय दृश्य का उदाहरण देना काफी होगा। रात्रि का पहला पहर। अचानक एक साया छत पर नजर आता है। दूर से एक ट्रेन आ रही है। जैसे ही ट्रेन एक घर के बगल से गुजरती है, वह साया छज्जे के सहारे लगे एक पटरे की मदद से छलांग लगाता है और पलक झपकते चलती ट्रेन में कूद पड़ता है। काफी देर से सांस रोक कर बैठी पब्लिक अब अपने आपको रोक नहीं पाती है। हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है। यह था फिल्म फूल और पत्थर का दृश्य। साया था धर्मेन्द्र का। वषरे पहले प्रदर्शित इस फिल्म का यह दृश्य आज भी दर्शकों के जेहन में एक रोमांच भर देता है।
यह उन गिनी-चुनी फिल्मों में से एक है, जिसमें नायक शाका (धर्मेन्द्र) के जिस्म की भरपूर नुमाइश मौजूद थी। सच तो यह है कि अभिनेता धर्मेन्द्र ही नहीं दूसरे कुछ अन्य नायकों ने वर्षों अपने इस जिस्मानी सौंदर्य के सहारे फिल्म इंडस्ट्री पर राज किया है। आज के कई नायक भी मौका मिलते ही अपने मसल्स दिखाने में पीछे नहीं हटते। पिछले दिनों दबंग और रेडी में सलमान ने अपना जिस्म खूब दिखाया। फिल्म ओम शांति ओम में किंग खान का सिक्स पैक एब्स भी खूब चर्चा में आया था। जोधा अकबर में अकबर बने हृतिक ने भी बहुत शानदार ढंग से अपनी शारीरिक शक्ति का प्रदर्शन किया।
अभी भी फिल्म गजनी में आमिर का सुगठित देह सभी के लिए जिज्ञासा का विषय बना हुआ है। ट्रेड पंडित आमोद मेहरा कहते हैं, ‘अब दर्शकों को यह कतई पसंद नहीं है कि उनका नायक सिर्फ नायिका को पटाने में ही अपना समय खर्च करे।’ ठीक भी है, मैंने प्यार किया से लेकर रेडी तक का नायक सलमान भी दर्शकों को इसलिए पसंद आता है, क्योंकि वह अपने शारीरिक शक्ति और क्षमता के सहारे नायिका को पाना चाहता है। फिल्म मैंने प्यार किया को याद कर इसके निर्देशक सूरज बड़जात्या बताते हैं, ‘इसके कई दृश्यों में सलमान को कसरत करते हुए दिखाकर मैं सिर्फ यह बताना चाहता था कि नायक अपनी जिस्मानी ताकत को बढ़ाने के लिए भी सजग है ताकि मारपीट के दृश्यों में उसकी करतबबाजियां कृत्रिम न लगें।’

सिगरेट छोड़नी पड़ेगी
अब यह अहम सवाल उठता है कि बेहद अनियमित जीवन जीनेवाले हमारे हीरो कैसे अपने शरीर को मेंटेन करते है। सितारों के शरीर का जो फिजिकल ट्रेनर ध्यान रखते हैं, उनकी भी एक लंबी सूची है। इनमें सत्यजित चौरसिया का नाम इन दिनों सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। उनके बाद विक्रम कपूर, दिलीप हेवले, मिकी मेहता, प्रशांत सावंत, नीलेश निखंज आदि कई व्यस्त ट्रेनर हैं। इनमें से प्रत्येक का मुंबई के विभिन्न अंचल में अपना जिम है। उनके जिम में पूरे दिन छोटे-बड़े फिल्मवालों के चेहरे नजर आ जाते हैं। सत्यजित चौरसिया का लोखंडवाला में स्थित जिम बारबेरियन सितारों के बीच काफी लोकप्रिय है। वह आमिर और सैफ अली खान जैसे कई हीरो के निजी ट्रेनर भी हैं। अभी कुछ साल पहले सैफ दिल के हाथों मजबूर हो कर अस्पताल में पहुंच गए थे। इसके बाद से चौरसिया के सुझाव पर ही अपनी बॉडी को मेंटेन कर रखा है।
चौरसिया बीमारी को एक साधारण सी बात मानते हैं। उनके मुताबिक यदि आप सही ढंग से व्यायाम करें, तो ता-उम्र आप हमेशा स्वस्थ रह सकते हैं। वह कहते हैं, ‘मेरे सितारों को डॉक्टर जो हिदायत देता है, मैं उसी के मुताबिक सितारों के व्यायाम में रद्दोबदल करता हूं। यह मेरा सौभाग्य है कि मेरे कई सितारे मेरे सारे सुझाव पर अमल करते हैं। अब जैसे कि सैफ ने सिगरेट पीना लगभग बंद कर दिया है। फिल्मवालों के एक और ट्रेनर विक्रम कपूर बताते हैं, ‘सितारों का लाइफस्टाइल, सोने और जागने का समय उनके अस्वस्थ होने की एक बड़ी वजह बन जाती है। किसी रोल के लिए अपनी बॉडी मेंटेन करने के लिए वह जिस तरह का बलिदान करते हैं, वह अत्यंत प्रशंसनीय है। इनमें से कई तो आउटडोर में शूटिंग में अपने फिटनेस का सामान ले जाते हैं। हां, कई बार फिल्म पूरी होने के बाद उनका यह नियम भंग होता है। कई बार दूसरे काम में उलझ जाने की वजह से भी होता है। कुछ उनकी खुद की अनियमितता भी होती है। पर जब स्टारडम का सवाल आता है, तो वह बहुत कुछ छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। हां, एक बात जरूर कहना चाहूंगा, शराब पीने के अगले दिन व्यायाम करके आप अतिरिक्त कैलौरी को बाहर निकाल सकते हैं। पर ज्यादा सिगरेट पीने से उत्पन्न बीमारी का मुकाबला किसी भी तरह के व्यायाम से संभव नहीं है। इसलिए मेरी यह पहली शर्त होती है कि यदि आपको अपना शरीर फिट रखना है, तो सिगरेट छोड़ना पड़ेगा।’

डोले शोले, धोबी पछाड़
वाकई में यह अटपटा लगता है, पर हिंदी फिल्मों में पतले-दुबले नायकों द्वारा दर्जन भर गुडों की पिटाई कोई नई बात नहीं है। सिंघम में जिस तरह से अजय देवगन कई गुडों को घोबी-पछाड़ लगाते हैं, आम जिंदगी में वह बहुत असहज लगता है। इसे सहज बनाने के लिए ही आमिर ने गजनी, सलमान ने बॉडीगार्ड, अजय ने सिंघम फिल्मों के लिए विशेष तैयारी की।
दूसरी और अक्षय कुमार, हृतिक रोशन जैसों की सफलता में उनकी कद-काया की अहम भूमिका है। ये दोनों ही अपने कठिन एक्शन दृश्यों को अंजाम देकर जिस्मानी करतब का एक नायाब उदाहरण पेश करते हैं। पचास के ऊपर हो चुके संजय दत्त इस चर्चा का विशेष हिस्सा हैं। कभी पहलवान नायक के तौर पर मशहूर और संजय दत्त के घनिष्ठ मित्र सुनील शेट्टी बताते हैं, ‘मेरी तरह बाबा भी अपने शरीर को लेकर बहुत गंभीर है। उसने भी अपनी बॉडी को बहुत मेहनत से बनाया है। शायद यह भी एक बड़ी वजह है कि एक्शन दृश्यों में वह खूब फबता है।’

गंभीर परिणाम ला सकती है लापरवाही
हृतिक बेहिचक मानते हैं कि करण अर्जुन की शूटिंग के समय से ही वह सलमान के कसरती जिस्म के प्रशंसक रहे हैं। बाद में एक-दो बार की बीमारी के बाद उन्होंने इस बात को अच्छी तरह से समझा है कि सेहत के प्रति लापरवाही कितने गंभीर परिणाम ला सकती है। वो कहते हैं, ‘मैं जबसे अपनी फिटनेस को लेकर सचेत हुआ, इसका सबसे बड़ा लाभ मुझे यह मिला कि किसी भी तरह के रोल को मैं आसानी से कबूल कर सकता हूं। इसके लिए मुझे कम-से-कम अपनी बॉडी की तैयारी नहीं करनी पड़ती। मेरा शरीर हर तरह के रोल के साथ फिट हो जाता है। यहां तक कि मैं किसी रोल के लिए यदि पांच-छह किलो वजन घटा भी लूं, तो मेरा शरीर उसे आसानी से एक्सेप्ट कर लेता है।’ मंहगे ट्रेनर और डॉयटिशियन के संरक्षण में रहकर यह बात और भी आसान हो जाती है।

कैसे करते हैं मेंटेन
सलमान की बॉडी की सबसे ज्यादा तारीफ होती है। उनके ट्रेनर सत्यजित चौरसिया बताते हैं, ‘सलमान कसरत अपने घर के जिम में ही करते हैं। इस मामले में वह बहुत सजग हैं। इसलिए वह जिस तरह की फिल्में करते हैं, उसके लिए उन्हें कुछ ज्यादा तैयारी करनी नहीं पड़ती है। वैसे वह कभी-कभी लोखंडवाला पर मेरे जिम में भी चले आते हैं। कार्डियो वस्कुलर व्यायाम में उनका जवाब नहीं। उनका शरीर इस कसरत को बहुत सहज ढंग से मैनेज करता है। मैंने उन्हें बहुत करीब से कसरत करते हुए देखा है। मैं उनकी बॉडी मेंटनेस का कायल हूं।’ इस प्रसंग में सबसे चौंकानेवाली बात यह है कि शाहिद, रणबीर कपूर, इमरान खान जैसे चॉकलेटी हीरो भी अब बॉडी को लेकर बहुत सचेत हैं। शाहिद बताते हैं, ‘मैं अपने ऊपर चॉकलेटी हीरो की कोई इमेज नहीं लादना चाहता। इन दिनों मैं नयमित रूप से जिम जाता हूं। अब मैं एक प्योर एक्शन फिल्म करना चाहता हूं।’ कमीने के बाद अपनी आने वाली फिल्म मौसम में भी उन्होंने कई एक्शन दृश्यों को अंजाम दिया है। वैसे कई नायक भले ही इस बात को स्वीकार न करें, पर सभी जानते है कि उनके प्रेरणास्रोत सनी देओल, सलमान खान, सुनील शेट्टी जैसे नायक रहे हैं।

धर्मेन्द्र और बिग बी भी
सलमान से थोड़ा ध्यान हटाएं तो 73 के गरम धरम आज भी हल्का-फुल्का व्यायाम नियमित करते हैं। लेकिन इस मामले में अमिताभ इस उम्र में भी अपने पुत्र से ज्यादा गंभीर हैं। उनके करीबी कर्मियों से मिली जानकारी के मुताबिक बहुत सुबह उठ कर वह अपने जुहू स्थित बंगले जलसा के पास मौजूद पंच सितारा होटल के हेल्थ कल्ब में या हॉली डे इन के स्पा में जाकर व्यायाम करते हैं। यदि ऐसा संभव नहीं हुआ तो वह प्राणायाम के साथ ही अपने बंगले के प्रांगण में थोड़ा टहल लेते हैं। नाना पाटेकर आज भी एक्शन दृश्यों में काफी परफेक्ट हैं। नाना बताते हैं, ‘कोई भी व्यायाम अपनी उम्र और शरीर को ध्यान में रखकर करना चाहिए।’

गलती सुधार सकते हैं जॉन
कई नायक गलत तरह की फिल्मों में उलझ कर अपनी अच्छी बॉडी का उपयोग नहीं कर पाते हैं। जॉन इसके एक अच्छे उदाहरण हैं। प्रसिद्घ एक्शन डायरेक्टर टीनू वर्मा कहते हैं, ‘जॉन के पास अब भी वक्त है, अक्की की तरह जॉन को भी अभिनय के साथ ही एक्शन दृश्यों में भी अपनी बॉडी का पूरा उपयोग करना चाहिए।’ अब लगता है कि अपनी आनेवाली फिल्म फोर्स में जॉन ने इस भूल को सुधारने की कोशिश की है। फोर्स में जॉन का पोस्टर शर्टलेस फिल्माया गया है, जिसमें वह गजब के लगते हैं।

शाहिद के सिक्स पैक्स
फिल्म कमीने की चर्चा के दौरान जब निर्देशक विशाल भारद्वाज ने शाहिद के सामने सिक्स पैक्स का आइडिया रखा तो वह एकदम चौंक गए। अंदर से वह काफी उत्सुक थे, लेकिन समस्या ये भी थी कि इससे पहले शाहिद जिम की कठिन प्रैक्टिस से कभी नहीं गुजरे थे। बस फिर क्या था। शाहिद के जिस्म को एक नया रंग-रूप देने में सब जुट गए। उनके ट्रेनर ने उन्हें सख्त निर्देशानुसार एक प्लान डाइट पर रखा(असीम चक्रवर्ती,हिंदुस्तान,दिल्ली,1.8.11)।