क्या आप लोगों को कहानियां सुनाते हैं? दोस्तों के बीच बैठकर किस्से सुनाना आपको पसंद है? आपको मजा आता है किसी पुरानी घटना को मिर्च-मसाला लगाकर चटखारों में तब्दील करने में? अगर हां, तो आप फिल्म-मेकर बन सकते हैं। बस आपको अपने अंदर एक इच्छा पैदा करनी है कि मुझे फिल्म बनानी है। बाकी सब यहां है।
क्यों बनानी है फिल्म?
तो पहले इस क्यों का जवाब दीजिए। क्यों बनाना चाहते हैं आप फिल्म? एक - आपको किस्से-कहानियां सुनाने का शौक है और आप उन किस्सों को फिल्म के रूप में ढालना चाहते हैं। दूसरे - आप फिल्मों को लेकर गंभीर हैं और पूरी गंभीरता से ऐसी फिल्म बनाना चाहते हैं, जिसे दुनिया देखे। ये दोनों ही काम मजेदार हैं। दोनों के ही नतीजे बेहद दिलचस्प हो सकते हैं। और दोनों ही बहुत मेहनत मांगते हैं।
तो फर्क क्या है?
शौक के लिए: फिल्म बनाना एक खर्चीला काम है। अगर आप सिर्फ शौक के लिए फिल्म बनाना चाहते हैं तो आप कम खर्च में ऐसा कर सकते हैं। शौकिया फिल्म आप किसी अच्छे कैमरे वाले स्मार्ट फोन या हैंडिकैम से भी बना सकते हैं। ऐसा नहीं है कि इन फिल्मों की अहमियत कम होगी। मोबाइल से बनी फिल्में भी अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखाई जा रही हैं। इसलिए यह मत समझिए कि आप मोबाइल या किसी छोटे कैमरे से फिल्म बना रहे हैं तो कोई कमतर काम कर रहे हैं या उसके लिए कम गंभीरता की जरूरत होगी। बस आपका काम कम पैसों और कम संसाधनों से हो जाएगा। मोबाइल या छोटे कैमरे से बनाई जा रही फिल्म के लिए आप चाहें तो अपने दोस्तों से ही ऐक्टिंग करा सकते हैं। उनमें से ही कोई आपके लिए कोई म्यूजिक बना सकता है। और फिल्म को रिलीज करने या उसकी स्क्रीनिंग करने का भी 'झंझट' नहीं है।
प्रफेशनल फिल्म-मेकिंग:
यह थोड़ा बड़ा काम है। इसमें मेहनत ज्यादा है। सिर खपाई ज्यादा है। बजट ज्यादा है। पर इतना सारा काम क्या हम आप जैसा इंसान कर सकता है? बिना किसी प्रफेशनल फिल्म मेकिंग ट्रेनिंग के? बिना किसी पढ़ाई-लिखाई के? यह सवाल बहुत जरूरी है। और फिल्म बनाने की सोचते वक्त ही आपके जहन में यह बात आएगी कि मुझे तो फिल्म बनानी नहीं आती, मेरे पास कोई ट्रेनिंग भी नहीं है। फिर मैं कैसे फिल्म बना सकता हूं। जेम्स कैमरन, टाइटैनिक वाले, कभी किसी फिल्म स्कूल में नहीं गए। क्रिस्टोफर नोलन, बैटमैन वाले, का कॉलेज में छोटी-छोटी फिल्में बनाने से करियर शुरू हुआ था। मधुर भंडारकर, चांदनी बार वाले, विडियो लाइब्रेरी चलाते थे। फिल्म बनाना एक आर्ट है। उसकी ट्रेनिंग अगर आपके पास है तो आपका तकनीकी पक्ष बहुत मजबूत हो सकता है। लेकिन कहानी सुनाना, मजेदार ढंग से सुनाना, यह आपको कोई नहीं सिखा सकता।
अगर आप प्रफेशनल तरीके से फिल्म बनाना चाहते हैं, तब आपको बजट कुछ ज्यादा चाहिए होगा। जब बजट शब्द का इस्तेमाल हो तो समझिए फिलहाल हम 10-15 मिनट की एक छोटी-सी फिल्म की ही बात कर रहे हैं। इस फिल्म के लिए भी आपको कैमरा (अक्सर एक कैमरा कम होता है), ऐक्टर (अगर डॉक्युमेंट्री नहीं है तो), एडिटर और एडिटिंग सॉफ्टवेयर की जरूरत होगी। इसके लिए आपको पूरी एक टीम जुटानी होगी। फिल्म के लिए आपको कहानी, स्क्रिप्ट, शूटिंग, डायरेक्शन, ऐक्टिंग, एडिटिंग और म्यूजिक की जरूरत होगी। अब आप देखिए कि इनमें से कितने काम आप खुद कर सकते हैं। बाकी सबके लिए आपको साथियों की जरूरत होगी।
क्या बनाना चाहते हैं?
अब आप फिल्म बनाने का मन बना चुके हैं। तो यहां खुद से पूछिए कि आप क्या बनाना चाहते हैं। सिनेमा को कैटिगरी में डालना आसान तो नहीं है। फिर भी प्रॉडक्शन के लिहाज से मोटा-मोटा सोचें, तो आप दो तरह की फिल्में बना सकते हैं। डॉक्युमेंट्री व फीचर फिल्म।
दोनों ही कहानी कहने के तरीके हैं। डॉक्युमेंट्री फिल्म में आप दस्तावेजों के आधार पर सच्ची कहानी कहते हैं और फीचर फिल्म में अपने मन की कहानी कहते हैं। डॉक्युमेंट्री में एक विषय चाहिए, उसके लिए रिसर्च चाहिए, विषय के हिसाब से इंटरव्यू करने के लिए लोग चाहिए। यह इस पर निर्भर करेगा कि आप क्या कहानी कहना चाहते हैं? मसलन, अगर आप अपनी डॉक्युमेंट्री फिल्म में कॉलेज के उन बच्चों की कहानी सुनाना चाहते हैं, जो दिल्ली से बाहर से आते हैं पढ़ाई करने के लिए। तो सबसे पहले आपको जानना-समझना होगा कि उनकी जिंदगी कैसी होती है। फिर आप कुछ ऐसे लोग चुनेंगे, जिन्हें आप अपनी फिल्म के लिए इंटरव्यू करेंगे। आप उन जगहों को चुनेंगे, जहां-जहां आप शूट करेंगे। फीचर फिल्म में आपको कहानी, स्क्रिप्ट और ऐक्टर चाहिए। उसके बाद का काम दोनों के लिए एक जैसा है।
कैसे बनेगी फिल्म?
फैसले लेने का काम हो चुका है। अब फिल्म बनाने का काम शुरू किया जाए। फिल्म बनाने का काम तीन चरणों में बंटा है। आप छोटी फिल्म बनाएं या बड़ी, इन्हीं तीन चरणों से आपको गुजरना होगा। प्री-प्रॉडक्शन, शूट और पोस्ट प्रॉडक्शन।
प्री-प्रॉडक्शन
यह है तैयारी का दौर। बड़े-बड़े फिल्मकार एक ही बात कहते हैं, फिल्म कागज पर बनती है। आपको सारा काम कागज पर कर लेना होगा। प्लानिंग से लेकर कहानी तक, सब कुछ आपके पास लिखित में होना चाहिए। फिल्म बनाने के लिए जिन-जिन चीजों की आपको जरूरत है, वे सब आपको कागज पर उतारनी होंगी।
कहानी:
फिल्म कहानी कहने का जरिया ही तो है। इसलिए आपके पास कहने को कोई कहानी होगी, तभी आपने फिल्म बनाने के बारे में सोचा। लेकिन उस कहानी को लिख लेना बहुत जरूरी है। जब आप उसे कागज पर सिलसिलेवार उतार रहे होंगे, तब आपको उसकी खूबियां और खामियां नजर आएंगी। तब आप उसे बेहतर बना पाएंगे। और हम छोटी फिल्म के लिए कहानी तैयार कर रहे हैं, तो कुछ बातें हैं जिनका आपको ध्यान रखना होगा।
1. छोटी और चुस्त कहानी तैयार करें। हम 10-15 मिनट की फिल्म बना रहे हैं। इसके लिए आप कहानी में ज्यादा मोड़ और घुमाव रखने से बचें। कहानी जितनी छोटी होगी, उतनी चुस्त होगी। कहानी जितनी चुस्त होगी, फिल्म उतनी दिलचस्प होगी। और याद रखिए, आप जैसी मर्जी फिल्म बनाएं, बोरिंग फिल्म कभी न बनाएं। महान फिल्मकार फ्रैंक कापरा कहते हैं कि फिल्म मेकिंग में कोई नियम नहीं हैं, बस पाप हैं और सबसे बड़ा पाप है बोरिंग फिल्म बनाना।
2. अपनी कहानी में कम-से-कम किरदार रखें। छोटी फिल्म यानी कम वक्त में आपको पूरी कहानी कहनी है। फिल्म में आपको हर किरदार को बखूबी परिचित कराना होता है। अगर एक भी किरदार दर्शक को समझ नहीं आया, तो दर्शक बाकी किरदारों को छोड़कर उसके बारे में सोचता रहेगा और आपका मकसद यानी कहानी कहना, पूरा नहीं हो पाएगा। इसलिए आपको चाहिए कि कहानी लिखते वक्त ही कम-से-कम किरदार रखें। बहुत सारी शॉर्ट फिल्में, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अवॉर्ड मिले, दो-तीन किरदारों से ही बनी थीं। इसका एक फायदा यह भी है कि आपको कम-से-कम ऐक्टर लेने होंगे।
3. कहानी ऐसी हो कि उसके ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सों को एक ही जगह शूट किया जा सके। फिल्म ऐसा खूबसूरत मीडियम है कि आप पूरी दुनिया की कहानी को एक कमरे में दिखा सकते हैं। और सिर्फ एक कमरे में घटी घटना को दिखाने के लिए पूरी दुनिया भी छोटी पड़ जाएगी। इसलिए जब आप कहानी लिख रहे हैं तो सोचें, आपका बजट, आउटडोर शूटिंग की मुश्किलें, विषय का भटकाव। यह आपकी पहली फिल्म है। आपका पूरा ध्यान अच्छी फिल्म बनाने पर होना चाहिए। इसलिए शूटिंग के काम को फैलने से बचाएं। कम-से-कम जगह पर ज्यादा-से-ज्यादा शूट करने से आपके कई झंझट बचेंगे। ऐसी कई शॉर्ट फिल्में हैं, जो एक ही कमरे में शूट कर ली गईं और बेहतरीन बनीं।
स्क्रिप्ट: कहानी तैयार हो जाने के बाद आपको स्क्रिप्ट लिखनी होगी। नहीं, कहानी स्क्रिप्ट नहीं होती। स्क्रिप्ट का मतलब है कहानी को सीन-दर-सीन लिख लेना। यानी जब आपकी फिल्म स्क्रीन पर आएगी तो कैसे दिखेगी। पहले कौन-सा सीन होगा, उसके बाद कौन-सा। स्क्रीन पर कैसे-कैसे, क्या-क्या घटेगा। यह सब स्क्रिप्ट में होता है।
ऐसे समझिए: कहानी है - वह घर पहुंचा। पता चला कि चाबी उसके पास नहीं है। उसे याद आया कि घर की चाबी दफ्तर में ही भूल आया है। और उसका फुटबॉल मैच छूट गया।
रफ स्क्रिप्ट:
सीन 1- वह सीढ़ियां चढ़ रहा है। उसके एक हाथ में बैग और एक अखबार है। दूसरे से वह अपनी जेब में चाबी तलाश रहा है।
सीन 2- वह दरवाजे के सामने खड़ा है। उसने बैग जमीन पर रख दिया है। वह बहुत बेचैनी से दोनों हाथों से अपनी जेबें तलाश रहा है।
सीन 3- वह ताले को हाथ में पकड़े उसकी ओर देख रहा है।
सीन 4- वह दरवाजे के बाहर हताश होकर बैठ गया है। बैग उसके पास रखा है। पास ही में अखबार खुला पड़ा है। कैमरा उसके चेहरे से अखबार की हेडलाइन तक जाता है, जहां लिखा है - वर्ल्ड कप फुटबॉल का फाइनल आज शाम।
यह स्क्रिप्ट का बेहद रफ नमूना है। अच्छी स्क्रिप्ट में आप कहानी की सारी बारीकियां लिखते हैं। किरदारों के कपड़ों से लेकर कैमरे के मूवमेंट तक, सब कुछ। याद रखिए, स्क्रिप्ट कागज पर जितनी महीन होगी, फिल्म कैमरे से उतनी ही ज्यादा अच्छी शूट होगी।
टीम
आपकी फिल्म की कहानी और स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है। अब आपको पता है कि आपको कितने ऐक्टर चाहिए। चलिए अब फिल्म बनाने के लिए टीम बनाते हैं। चूंकि यह आपकी फिल्म है तो डायरेक्ट आप ही करना चाहेंगे। तो सोचिए इसके अलावा आपको क्या-क्या काम करने हैं : ऐक्टिंग, मेकअप, कॉस्ट्यूम, सेट डिजाइन, लाइटिंग कैमरा, एडिटिंग, म्यूजिक। इनके अलावा भी फिल्म बनाने में दर्जनों काम होते हैं। लेकिन ये बेसिक यानी ऐसे काम हैं, जिनके बिना फिल्म पूरी नहीं होगी। अब आप देखिए कि इनमें से कौन-कौन से काम आप खुद कर सकते हैं और किस-किस काम के लिए आपको साथियों की जरूरत होगी। उसी हिसाब से आप अपनी टीम चुनेंगे।
इक्विपमेंट्स
स्क्रिप्ट तैयार है। टीम तैयार है। अब आप शूटिंग के लिए उपकरण जमा कीजिए। इनमें सबसे जरूरी है कैमरा। आप अपनी कहानी और बजट के हिसाब से तय करें कि आपको कैसा कैमरा चाहिए। मोबाइल फोन से लेकर बड़े-बड़े कैमरे तक, सबसे फिल्म बनाई जा सकती है। आजकल मोबाइल फिल्म फेस्टिवल होते हैं, जहां मोबाइल फोन से शूट की गईं 3-4 मिनट की फिल्में दिखाई जाती हैं। फिर आजकल बाजार में ऐसे अच्छे हैंडिकैम उपलब्ध हैं, जिनसे आप ठीक-ठाक शूट कर सकते हैं। उनसे शूट की क्वॉलिटी अच्छी होती है और उनकी फिल्में बड़े पर्दे पर भी दिखाई जा सकती हैं। हैंडिकैम से बनाई गईं फिल्में दुनिया कई बड़े फिल्म फेस्टिवलों में जगह पा चुकी हैं। भारत में इस वक्त हैंडिकैम से खूब फिल्में बनाई जा रही हैं। ज्यादातर गैर-पेशेवर फिल्ममेकर ऐसे ही फिल्में बना रहे हैं। इसी हिसाब से तय होगा कि आपको किसी फॉर्मैट में शूट करना है। अगर आप प्रफेशनल कैमरे का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो आपको टेप लेनी होंगी। लेकिन आजकल डिजिटल फॉर्मैट ने फिल्म मेकिंग को इतना आसान कर दिया है कि कार्ड पर शूट करना काफी आसान रहता है। कैमरे के अलावा आपको माइक, लाइट, मेकअप, कॉस्ट्यूम्स वगैरह की जरूरत होगी, जो आप अपनी फिल्म के हिसाब से चुनेंगे। बस इतना ध्यान रखिए कि इन सबकी जरूरत फिल्म को और महीन, और बेहतर बनाने में पड़ती है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि इनके बिना फिल्म बनाई नहीं जा सकती। यानी आपके किरदार अगर खास कॉस्ट्यूम न पहनकर रोजमर्रा के कपड़े ही पहन लें, तो भी क्या फर्क पड़ता है, बस ऐक्टिंग अच्छी करें।
शूटिंग से पहले
अब सब तैयार है। शूटिंग शुरू कर सकते हैं। लेकिन रुकिए। शूटिंग की जल्दी मत कीजिए। एक काम बाकी है। यह ज्यादा बड़ा लगता नहीं, लेकिन इसकी अहमियत बाकी किसी भी काम से कम नहीं है। मीटिंग। शूटिंग शुरू करने से पहले अपनी पूरी टीम के साथ बैठें। एक-एक पहलू पर विस्तार से चर्चा करें। लोगों की राय लें। सबके नजरिये समझें। अपना नजरिया उन्हें समझाएं। उन्हें बताएं कि आप किस तरह की फिल्म बनाना चाहते हैं। यह बहुत जरूरी है कि जब शूटिंग शुरू हो, तब सबके जेहन में यह बात स्पष्ट हो कि बनने के बाद यह फिल्म कैसी दिखेगी क्योंकि तभी काम में एकरूपता आ पाएगी और फिल्म वैसी बन पाएगी, जैसी आप चाहते हैं।
अब शूटिंग
किसी फिल्म की शूटिंग देखी है आपने? यह बहुत बोरिंग काम होता है। डायरेक्टर और कैमरामैन के अलावा, बाकी सभी लोगों का हिस्सा थोड़ा-थोड़ा होता है। आपको उन सबको काम से जोड़े रखना होगा। शॉर्ट फिल्मों में यह आसान होता है। ज्यादातर लोग एक से ज्यादा काम कर रहे होते हैं। छोटी टीम होती है। सब लोगों को इन्वॉल्व करके काम किया जा सकता है। शूटिंग में कैमरे का काम बहुत अहम होता है। यही तय करता है कि आपकी कहानी पर्दे पर कैसी नजर आएगी। इसलिए बेहतर होगा कि आप शूटिंग पर जाने से पहले ही कैमरे के बारे में पढ़ें। जानें कि वह क्या-क्या कर सकता है। और उस जानकारी का शूटिंग में इस्तेमाल करें। शूटिंग में कुछ बातों का ख्याल रखें :
1. हर सीन को एक से ज्यादा बार शूट कर लेना अच्छा होता है।
2. वह भी शूट करें, जो आपको लगता है कि काम नहीं आएगा। जब आप एडिट करने बैठेंगे, तब आपको ऐसे बहुत-से शॉट्स की जरूरत होगी, जिनके बारे में आपने शूट करते वक्त सोचा भी नहीं था।
3. हर सीन को एक से ज्यादा एंगल्स से शूट करें। एडिट करते वक्त आपको पता चलेगा कि हर एंगल की अलग अहमियत हो जाती है, जब वे एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं। इसलिए शूट करते वक्त कंजूसी न बरतें। जितना हो सके, शूट करें। स्क्रिप्ट में आपने बहुत कुछ लिखा होगा। उसके अलावा भी कुछ सूझे तो उसे कैमरे में कैद कर लें। जैसे अगर आप डॉक्युमेंट्री शूट कर रहे हैं, तो इंटरव्यू करते वक्त उस पूरी जगह को शूट करें। जितनी ज्यादा फुटेज होगी, आपकी एडिटिंग में उतना ही तीखापन होगा। आप यूं समझिए कि 5 मिनट की फिल्म के लिए 3-4 घंटे के फुटेज की जरूरत होगी।
पोस्ट-प्रॉडक्शन
बधाई हो। शूटिंग पूरी हुई। बड़ा काम निपटा लिया आपने। लेकिन... अभी ज्यादा बड़ा काम बाकी है। जिसमें ज्यादा वक्त भी लगता है, ज्यादा मेहनत भी और ज्यादा झंझट भी।
एडिटिंग:
अगर आप खुद एडिटिंग कर सकते हैं, तो बहुत अच्छा। अगर आपको किसी से एडिट कराना है, तब आप सबसे पहला काम तो यह कीजिए कि इंटरनेट पर जाइए और एडिटिंग के बेसिक पढ़िए। बड़े फिल्मकार कहते हैं कि फिल्म एडिटिंग टेबल पर ही बनती है। इसलिए एडिटिंग को समझना बहुत जरूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि आप अपनी फिल्म को जानते हैं, पहचानते हैं। आप समझते हैं कि आपकी फिल्म स्क्रीन पर कैसी दिखेगी। अब अपनी यह सोच आपको एडिटर के दिमाग में डालनी है। और ऐसा आप तभी कर पाएंगे, जब आप खुद एडिटिंग को समझते हों। डिजिटल दुनिया ने एडिटिंग बहुत आसान कर दी है। अब विंडोज में भी एडिटिंग का सॉफ्टवेयर मूवी-मेकर उपलब्ध है। यह बेहद आसान है और आप यू-ट्यूब पर जाकर सीख सकते हैं कि यह काम कैसे करता है। उसके बाद आप खुद अपनी फिल्म एडिट कर सकते हैं।
या फिर आप किसी एडिटर से एडिट करवाइए। एडिटर अक्सर प्रति घंटा चार्ज करते हैं। तो आप किसी स्टूडियो में जाकर अपनी फिल्म को एडिट करा सकते हैं। एडिटिंग ऐसा काम है, जिसमें बहुत ज्यादा वक्त लगता है। सही जगह सही शॉर्ट खोजना, उसे सही टाइमिंग के साथ लगाना, उसमें सही रंगों का समावेश करना। यह सब बहुत मुश्किल और ध्यान से किया जाने वाला काम है। इसके लिए वक्त के साथ-साथ धीरज की भी जरूरत होती है। लेकिन यकीन कीजिए, जैसे-जैसे एडिटिंग आगे बढ़ती है, आपकी फिल्म साकार होने लगती है। और अपनी फिल्म को साकार होते देखने से ज्यादा सुकून कहीं नहीं है।
म्यूजिक
म्यूजिक फिल्म का बहुत अहम हिस्सा है। फिल्म अगर शरीर है तो म्यूजिक उसमें बसने वाली भावनाएं हैं। आपका दर्शक आपके किसी खास सीन को देखकर क्या महसूस करेगा, यह म्यूजिक पर ही निर्भर करेगा। वह कब हंसेगा, कब रोएगा, उसे म्यूजिक से पता चलेगा। इसलिए इस पर ध्यान देना जरूरी है। एक बात समझिए। फिल्म में म्यूजिक का मतलब सिर्फ गाने या बैकग्राउंड स्कोर नहीं है। यह फिल्म का पूरा साउंड डिजाइन है। इसलिए इस पर मेहनत करें। म्यूजिक बहुत महंगा काम है। दो तरीके हैं। या तो कोई म्यूजिशन खोजिए और उससे फिल्म का म्यूजिक बनवाइए। ऐसे बहुत से नए संगीतकार हैं, जो मौकों की तलाश में रहते हैं। जैसे आप नए फिल्मकार हैं और संगीत खोज रहे हैं, वे नए संगीतकार होंगे, जो फिल्म खोज रहे होंगे। बस आपको सही व्यक्ति तक पहुंचना होगा। सोशल नेटवर्किंग साइट पर प्रचार इसमें बहुत काम आ सकता है। दूसरा तरीका यह है कि इंटरनेट की मदद लीजिए। इंटरनेट पर ऐसी कई वेबसाइट हैं, जहां मुफ्त म्यूजिक उपलब्ध है। वहां नए संगीतकार अपना म्यूजिक डाल देते हैं। आप उस म्यूजिक को बिना कोई पैसा दिए इस्तेमाल कर सकते हैं। बस आपको संगीतकार का नाम देना होता है। वहां काफी म्यूजिक होगा, जिसमें से आप अपनी फिल्म के मूड के मुताबिक म्यूजिक चुन सकते हैं।
सब टाइटल्स
शॉर्ट फिल्म में सब-टाइटल्स होने ही चाहिए क्योंकि इनका दर्शक वर्ग बड़ा होता है। ये फिल्में इंटरनेट के जरिए दुनिया भर में फैलती हैं। और तब सब-टाइटल्स जरूरी हो जाते हैं, इसलिए उन्हें पहले से ही तैयार रखें। एडिटिंग के दौरान या म्यूजिक लगाते वक्त साथ ही सब-टाइटल्स भी लगा दें। पढ़ने में यह सब काम चुटकियों में होता नजर आ रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है। इसमें काफी वक्त और ऊर्जा खर्च होगी। और आखिर में आप लगाएंगे टाइटल्स। यानी आपका और आपकी टीम का नाम। जब आप अपना नाम स्क्रीन पर देखेंगे न, सच... बहुत अच्छा लगेगा।
अब क्या करें?
लीजिए साहब... बहुत-बहुत बधाई। आपकी पहली फिल्म तैयार है। एडिटिंग के बाद इसकी एक मास्टर टेप बनवा लेनी है। कुछ डीवीडी भी। अब किया क्या जाए? देखिए, आप भारत में हैं। यहां छोटी फिल्मों का वर्तमान कुछ नहीं है। हां, भविष्य बहुत उज्ज्वल है। तो आपके पास ज्यादा ऑप्शंस नहीं हैं। आप अपनी फिल्म के साथ दो काम कर सकते हैं।
इंटरनेट
अपनी फिल्म को यूट्यूब पर अपलोड कर दीजिए। वहां शॉर्ट फिल्म्स के बहुत सारे दर्शक हैं। यूट्यूब जैसी ही कई और वेबसाइट हैं, जहां शॉर्ट फिल्म्स के लिए काफी स्पेस है। इसके जरिए आपकी फिल्म पूरी दुनिया में देखी जाएगी। तारीफ भी होगी और आलोचना भी। इससे आपको खुशी भी मिलेगी और सीखने का मौका भी।
फेस्टिवल
दुनिया भर में शॉर्ट फिल्मों के फेस्टिवल होते हैं। वहां अपनी फिल्म को भेजिए। इंटरनेट पर सर्च कीजिए कि कहां-कहां आपकी फिल्म भेजी जा सकती है। उस हिसाब से उसे हर जगह भेजिए। कई फेस्टिवल में एंट्री फ्री होती है। अगर आपकी फिल्म फेस्टिवल में चुनी जाती है तो यह बहुत बड़ी बात होगी। और अवॉर्ड तक पहुंच गई, तो समझिए आप अखबारों की सुर्खियों में होंगे।
खास वेबसाइट्स
यह नए फिल्मकारों के लिए बड़े काम की वेबसाइट है। यहां अकाउंट बना सकते हैं, जिसके जरिए आप तमाम फिल्म फेस्टिवल्स से जुड़ जाते हैं। इसका कई फिल्म फेस्टिवल्स के साथ करार है व इसी के जरिए फिल्म सबमिट की जाती है।
http://vimeo.com यहां आप अपना विडियो अपलोड करके करोड़ों लोगों तक उसे पहुंचा सकते हैं। कई फिल्म फेस्टिवल भी यहां से फिल्म लेते हैं। सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपकी फिल्म को उस सर्कल के लोग देखते हैं, जिनकी सिनेमा में दिलचस्पी है।
Vikalp@Prithvi इंटरनेट पर कई ऐसे ग्रुप्स हैं, जहां नए-पुराने फिल्मकार अपनी बातें साझी करते रहते हैं। विकल्प फेसबुक पर ऐसा ही एक ग्रुप है। विकल्प नई फिल्मों को प्रदर्शित करने का भी काम करता है।
http://www.indieproducer.net यह भी फिल्म मेकर्स का ही एक जमावड़ा है। इस वेबसाइट पर अक्सर प्रतियोगिताएं होती हैं, जिनमें आप शामिल हो सकते हैं।
अच्छा लगा ||
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