भारतीय सिनेमा जगत में गीतों के राजकुमार के नाम से मशहूर गोपाल सिंह नेपाली का नाम एक ऐसे गीतकार के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने लगभग दो दशक तक प्रेम, विरह, प्रकृति और देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत गीतों की रचना करके श्रोताओं के दिल पर राज किया। बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले के बेतिया में 11 अगस्त 1911को जन्मे इस गीत सम्राट के पिता रेलबहादुर सिंह फौज में हवलदार थे। उनके पिता मूल रूप से नेपाल के रहने वाले थे लेकिन नौकरी के लिए भारत और फिर बेतिया में ही बस गए। विषमताओं, अभावों और संघर्षो में पले-बढ़े नेपाली अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए लेकिन संघर्षो के मध्य जीवन की पाठशाला में आम लोगों की भावनाओं को उन्होंने नजदीक से जाना-समझा और उनकी अपेक्षा तथा आकांक्षाओं को अपनी कविताओं और गीतों में वाणी दी। नेपाली जी ने जब होश संभाला तब चंपारण में महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन चरम पर था। उन दिनों पंडित कमलनाथ तिवारी, पंडित केदारमणि शुक्ल और पंडित राम ऋषिदेव तिवारी के नेतृत्व में भी इस आंदोलन के समानान्तर एक आंदोलन चल रहा था। नेपाली जी इस दूसरी धारा के ज्यादा करीब थे। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में पारंगत नेपाली जी की पहली कविता 'भारत गगन के जगमग सितारे' 1930 में रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा सम्पादित बाल पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनके कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। पत्रकार के रूप में उन्होंने कम से कम चार हिन्दी पत्रिकाओं, रतलाम टाइम्स, चित्रपट, सुधा और योगी का सम्पादन किया। युवावस्था में नेपाली जी के गीतों की लोकप्रियता से प्रभावित होकर उन्हें कवि सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाने लगा। उस दौरान एक कवि सम्मेलन में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' उनके एक गीत को सुनकर गद्गद हो गए थे। उस दौर में नेपाली जी के गीतों की धूम मची हुई थी लेकिन उनकी आर्थिक हालत खराब थी और कवि सम्मेलनों से मिलने वाली रकम से परिवार का गुजारा चलाना मुश्किल हो रहा था। वर्ष 1944 में वह अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए मुंबई आए थे। उस कवि सम्मेलन में फिल्म निर्माता शशिधर मुखर्जी भी मौजूद थे, जो उनकी कविता सुनकर बेहद प्रभावित हुए। उसी दौरान उनकी ख्याति से प्रभावित होकर फिल्मिस्तान के मालिक सेठ तुलाराम जालान ने उन्हें दो सौ रुपए प्रतिमाह पर गीतकार के रूप में चार साल के लिए अनुबंधित कर लिया। नेपाली जी ने सबसे पहले 1944 में फिल्मिस्तान के बैनर तले बनी ऐतिहासिक फिल्म 'मजदूर' के लिए गीत लिखे। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित इस फिल्म का संवाद लेखन प्रसिद्ध साहित्यकार उपेन्द्रनाथ अश्क ने किया था। इस फिल्म के गीत इतने लोकप्रिय हुए कि बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन की ओर से नेपालीजी को 1945 का सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार दिया गया। फिल्मी गीतकार के तौर पर अपनी कामयाबी से उत्साहित होकर नेपाली जी फिल्म इंडस्ट्री में ही जम गए और लगभग दो दशक 1944 से 1962 तक गीत लेखन करते रहे। इस दौरान उन्होंने 60 से अधिक फिल्मों के लिए लगभग 400 से अधिक गीत लिखे। फिल्म इंडस्ट्री में नेपाली की भूमिका गीतकार तक ही सीमित नहीं रही। उन्होंने गीतकार के रूप में स्थापित होने के बाद फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा और हिमालय फिल्म्स और नेपाली पिक्र्चस फिल्म कंपनी की स्थापना करके उसके बैनर तले तीन फिल्मों का निर्माण किया(राष्ट्रीय सहारा,मुंबई,17.4.11)।
ऐसे कवि एवम गीतकार से परिचय करने के लिए आपका आभार हम तो अनभिज्ञ थे अब तक ...
ReplyDeleteइब्ने बतूता बगल में जूता वाला गीता शायद उन्हीं से चुराया गुलजार जी ने।
ReplyDeleteबहुत अच्छा परिचय ... इनके कुछ गीत भी लिख देते तो और भी अपनापन हो जाता ...
ReplyDeletebahut khubsurat jankari
ReplyDeleteshukriya dost
mo.num. 09450195427 per bat karay. abhar sahit. sadar
ReplyDeletesuman