यह खबर अब जगजाहिर है कि अभिनेता आमिर खान अपनी दूसरी पत्नी किरन राव के साथ एक पुत्र के पिता बन गए हैं। यह शिशु उन्हें अपनी पत्नी के गर्भ और प्रजनन से नहीं, सरोगेट मदर कहलाने वाली औरत के जरिए मिला है। कृत्रिम गर्भाधान का चलन अब प्रचलित है क्योंकि वैज्ञानिक तकनीक ने ऐसी तमाम प्राकृतिक खामियों को फतह कर लिया है, जिनसे धनाढ्य तबका किसी अभाव का शिकार हो जाता हो। इसलिए "किराया भरो और संतान पाओ" का नारा अपने जोर-शोर पर दिखाई और सुनाई देता है। आमिर खान की खुशियां मोहर-अशर्फियों की तरह लुटीं और तब स्वास्थ्य मंत्रालय का ध्यान इस ओर गया कि इस कारोबार को कानूनी जामा पहनाने की जरूरत है। ईमानदारी और पारदर्शिता बनी रहे यह आवश्यकता है। गर्भाशय किराए पर देने वाली महिला को भी राहत मिलेगी।
स्त्री के लिए यह कैसी राहत और कैसी मोहलत है? यहां दृश्य में दो औरतें आती हैं, एक जो पूंजी से लवरेज आदमी के साथ पत्नी के रूप में है, दूसरी जो रोटी-कपड़े से मोहताज है और बेचने के लिए अपना शरीर ही है, उसका जो भी अंग बिक पाए। ये दोनों औरतें उसी समाज का हिस्सा हैं जो मर्यादा, नैतिकता और स्त्री की पवित्रता के पक्ष में जमकर ढोल-नगाड़े बजाता है, जो पतिव्रत को स्त्री का धर्म बताता है, जो असूर्यपश्या पत्नी की हिमायत करता है, जो लड़कियों के बदन पर छोटे कपड़े देखकर तुनक उठता है, जो औरत के हंसने-बोलने तक पर पहरे लगाने की फिराक में रहता है।
"स्त्री का मां बनना जरूरी है, यह किसने कहा? औरत मां बनकर ही पूर्ण होती है, यह सिद्धांत कहां से आया? जो बच्चा पैदा नहीं कर सकती, वह बांझ के नाम से जानी जाती है, यह लांछन किसने लगाया? जो सिर्फ बेटियां पैदा करती है, वह वंश का नाश करती है, यह परिभाषा किसने गढ़ी? गौर कीजिए और देखिए कि ये सारे दोष औरत के सिर हैं। पाइए कि संतान न देने पर स्त्री को कमतर होने का अहसास ज्यादा होता है और सोचिए कि आखिर यह अहसास क्यों होता है? इसलिए कि यह अहसास एक जहरीला इंजेक्शन है, जिसे नजरों और वाक्यों से औरत के रग-रेशों में उतारा जाता है और अनकही शर्त लागू की जाती है कि पत्नी होकर माता न बनना पत्नी पद को खो देने का बड़ा खतरा है या कि बिना मां बने औरत का जीवन असुरक्षा से भरा रहता है।
यही कारण है कि गरीब औरत अगर बांझ है तो बांझ रहने के लिए अभिशप्त है। मगर जिसके पास या जिसके पुरुष के पास धन है तो वह किसी मजबूर औरत को खरीद सकती है। बिना यह सोचे कि मातृत्व का ऊपरी जामा तैयार करने के लिए यहां दो औरतों का अपमान बराबर-बराबर हो रहा है। बिना यह समझे कि यह सरोगेट मदर का सारा झमेला एक पुरुष के वंशानुक्रम को बढ़ाने के लिए है और जो पत्नी है, पति के सामने अपने आप को मां के रूप में सिद्ध करना चाहती है। कभी यह सोचा है कि जिसने आपको प्रेमिका बनाम पत्नी स्वीकार किया है, वह आपको मां क्यों बनाना चाहता है? या आप भी मां की भूमिका के बिना क्यों जीवन निर्वाह नहीं कर सकतीं?
हो सकता है, मां की आदरणीय और पूजनीय छवि प्रभावित करती हो। मगर सरोगेट मदर का शिशु किसका है? जो गर्भधारण करते हुए उसे जन्मे देती है, उसका या जो किसी का गर्भाशय खरीद लेती है, उसका? यह बच्चा किसे "मां तुझे सलाम" कहेगा? उसे जिसके नाम पैसों के दम पर बर्खास्तगी लिखी गई या उसे जिसने अपनी दौलत के आधार पर किसी के शरीर को खरीद लिया?
अगर बच्चे की इतनी चाह थी तो हमारे देश में अनाथालयों की कमी नहीं है और न गोद लेने पर पाबंदी। मगर अमीर लोगों की हठें भी तो अमीर होती हैं, जिनसे वे अपने आपको वीर्यवान बनाए रखने की जिद निभाए जाते हैं। उनको यह सौभाग्य इसलिए हासिल है कि वे फटेहाल नागरिकों के लोकतांत्रिक देश के सर्वोत्तम अमीरों में आते हैं। इसलिए ही वे जन सामान्य के बीच अपनी नेक नाइंसाफियों के साथ देवताओं की तरह पुजते भी हैं। राजनेत्रियों की जमात इस कारोबार पर अपनी राय क्यों नहीं देती? अगर सवाल उठाइए तो तुरंत देवकी और यशोदा जैसी माताओं की मिसालें पेश कर दी जाएंगी कि पैदा किसी ने किए कृष्ण को और पाले किसी ने। मगर यहां संतान की खरीदार माताएं देवकी और यशोदा के वजूदों पर नहीं जातीं बल्कि वे अपने पति को पिता बनने का सर्टीफिकेट थमाकर ही जीवन सफल मानती हैं।
"एक गरीब औरत को आर्थिक मदद मिलती है" यह फतवा बड़े दयापूर्ण तरीके से पेश किया जाता है मगर साथ ही यह शंका भी कि किराए की कोख वाली महिला रुपए के लेन-देन में गड़बड़ न करे, विवाद न पैदा कर दे। इन दोनों बातों से जाहिर है कि यहां मदद या हमदर्दी का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। यहां तो सिर्फ अपनी पूंजी का दम और मरदाने अहंकार का बोलबाला है। साथ ही जो पत्नी है, औरत के रूप में वह बहुत बड़ी हीनग्रंथि की शिकार है। नहीं तो सुष्मिता सेन विश्वसुंदरी को क्यों किसी सरोगेट मदर की जरूरत नहीं पड़ी? उसने अविवाहित रहकर एक के बाद एक दो बच्चियों को गोद लिया। यों आमिर खान निस्संतान भी नहीं थे, पहले से ही जवान होता बेटा उनके सामने है। बेटी है। मगर इस शिशु के आने से उन्होंने एक नया एलान और कर दिया, जिससे दुनिया जान गई कि अबुल कलाम आजाद उनके चचेरे ग्रेट ग्रैंड फादर थे, जिनके नाम पर उन्होंने अपने शिशु बेटे का नाम आजाद रखा है। यह आजाद किस आजादी का वाइज बना, हमें यह समझना बाकी है।
समाज का साधारण आदमी उन लोगों का किया-धरा गौर से देखता है जिनके नाम होते हैं। फिल्म तो लोगों को प्रभावित करने का सबसे ज्यादा ताकतवर माध्यम है। माना कि इस माध्यम से जुड़े लोग भी मनुष्य हैं, उनकी हजार कमजोरियां हो सकती हैं। मगर सरोगेट मदर के इस्तेमाल का मामला कमजोरी में नहीं, साजिश में आएगा। अभाव और कंगाली की मारी हुई औरतों के प्रति अमीर लोगों की साजिश। एक पुरुष की दो औरतों के प्रति साजिश। साजिश कने के लिए ज़रूरी होता है कि अच्छे से अच्छे भ्रम पैदा किये जाएं क्योंकि भ्रम ही मजलूम को बाज़ार में खड़ा करता है। अपनी दरिद्रता दूर करने के लिए थोड़ी देर को बाजार सौदेबाजी का मालिक बन जाता है और अपनी कीमत पर चकाचौंध होने लगता है। कोख बेचने वाली औरत समझ नहीं पाती कि अब वह दलालों के बीच है। उधर पैसे से खेलने वाले लोग उसके जाए बच्चे से खेलते हुए अखबारों में अपने मातृत्व और पितृत्व की खबर छपवाएंगे। यह कैसा संदेश है? किसके लिए संदेश है? यही कि मानव अंगो का व्यापार पैसे वालों को जीवनदान दे रहा है। कहते हैं,गरीब से गरीब आदमी भी अपना बच्चा किसी को नहीं देता। मगर गरीब को जब इतना भूखा मारा जाए कि वह अपना ही गोश्त खाने लगे तो फिर खून बिकता है,किडनी बिकती है और अब कोख बिकने लगी। रोटी कपड़े के बदले सब कुछ दांव पर लग जाता है-तथाकथित धनवान सौभाग्यशालियों की कृपा से......(मैत्रेयी पुष्पा,नई दुनिया,16.12.11)
प्रभावशाली आलेख ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteकुछ प्रश्नों के उत्तर मांगती हैं यह पोस्ट ......
ReplyDeleteबिलकुल ठीक . इस तरह तो अनाथालय उपेक्षित रह जायेंगे . अनाथालयों के बच्चे प्रतीक्षा करते रह जायेंगे और पैसे वाले सेरोगेट्स का शोषण करते रहेंगे .
ReplyDeleteआपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावों का प्रस्फुटन देखने को मिला है । मेरे नए पोस्ट उपेंद्र नाथ अश्क पर आपकी सादर उपस्थिति की जरूरत है । धन्यवाद ।
ReplyDelete