' भारी भूल की मैंने कि अपने हालात की जानकारी दुनिया को पहले नहीं दी', कहते-कहते भावुक हो उठते हैं फिल्म अभिनेता अवतार कृष्ण हंगल, जिनके अस्वस्थ होने की खबर मीडिया में आते ही फिल्मी और गैर फिल्मी हर इलाके से आर्थिक मदद उनके घर पहुंचने लगी। अमिताभ बच्चन ने 5 लाख का चेक भेजा, तो प्रियंका चोपड़ा और करन जौहर ने एक-एक लाख का। एसोसिएशन ऑफ मोशन पिक्चर ऐंड टीवी प्रोग्राम प्रड्यूसर्स के वेलफेयर ट्रस्ट ने भी एक लाख और अरबाज खान तथा मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने 50-50 हजार रु. का चेक भेजा।
दो-तीन दिन में ही देखते-देखते लाखों की रकम जमा हो गई है और अब अस्पताल या दवाइयों का बिल अदा करने की मुसीबत उनके पुत्र विजय हंगल को कतई नहीं सताएगी। जिस कलाकार ने इप्टा के नाटकों तथा 'गर्म हवा', 'गुड्डी', 'तीसरी कसम', 'बावर्ची', 'अभिमान', 'शौकीन' और 'शोले' जैसी लगभग 200 फिल्मों के जरिए कला की सेवा की हो और जिसे महाराष्ट्र सरकार की अनुशंसा पर 'पद्मभूषण' सम्मान से अलंकृत किया गया हो, वह 93 वर्ष की ढलती उम्र में अगर सेहत के कारण बेरोजगार हो और अपने अस्तित्व के लिए आर्थिक संकट से जूझ रहा हो, तो यह निश्चय ही समाज के लिए सोचने की बात है। हंगल साहब ने पिछली मुलाकात के दौरान इन पंक्तियों के लेखक से पूछा था, 'क्या करूं मैं यह पद्मभूषण लेकर, अगर सरकार हम जैसे बुजुर्ग कलाकारों की देखभाल नहीं कर सकती?' वह पहले भी कई बार यह सुझाव सरकार के सामने रख चुके हैं कि भारत में भी रूस तथा अन्य देशों की तर्ज पर बुजुर्ग और बीमार कलाकारों के लिए आवास बनाए जाएं, जहां तमाम सुख- सुविधाओं की व्यवस्था हो। क्या अब उनके सुझाव पर विचार होगा?
अगर ए.के.हंगल ने मीडिया के जरिए वक्त पर फिल्म इंडस्ट्री को एसओएस नहीं भेजा होता तो आर्थिक अभाव के कारण उनकी सेहत सांताक्रुझ के उनके अंधेरे-बंद कमरे में गिरती चली जाती और जब तक दुनिया को उनके सच का पता चलता, शायद देर हो चुकी होती। वैसी ही देर, जो भगवान दादा, भारत भूषण, ई. बिलिमोरिया, सुलोचना रूबी मायर्स और मोतीलाल जैसे अपने जमाने के बड़े स्टार्स को अपनी चुप्पी के कारण झेलनी पड़ी।
भगवान दादा ने 'अलबेला' सहित कई सुपर हिट फिल्में बनाईं और गीता बाली के साथ 'भोली सूरत दिल के खोटे, नाम बड़े और दर्शन छोटे' गाने पर जिस तरह ठुमके लगाए, उसने युवाओं का दिल जीत लिया। उनकी इसी डांसिंग स्टाइल को बाद में अमिताभ बच्चन ने अपनी फिल्मों में अपनाया। मगर किस्मत का खेल देखिए कि स्टारडम मिलने पर जिस भगवान दादा को भगवान ने चेंबूर में बंगला, स्टूडियो और कीमती कारें दीं, उनका सारा वैभव एक ही झटके में अचानक छीन भी लिया। आगजनी में तमाम फिल्मों के निगेटिव जल गए, फिल्में फ्लॉप हुईं और भगवान दादा को चेंबूर के बंगले से दादर की चॉल में आने की दुर्दशा देखनी पड़ी। घर चलाने के लिए फिल्मों में जूनियर आटिर्स्ट का काम करना पड़ा।
यही बदहाली ई.बिलिमोरिया और सुलोचना रूबी मायर्स को भी झेलनी पड़ी। ये दोनों अपने जमाने के सुपर स्टार थे। सुलोचना रूबी मायर्स को हीरो से पांच गुना अधिक पारिश्रमिक मिलता था। काम मिलना बंद हुआ तो जूनियर आर्टिस्ट बनने को मजबूर होना पड़ा। ई.बिलिमोरिया भी कमाठीपुरा की गुमनाम खोली में गुमनाम मौत के शिकार हुए। परशुराम नामक एक स्टार को जब कंगाली ने घेरा तो उनकी फिल्मों के एक फैन ने उन्हें बांदा के ट्रैफिक सिग्नल पर उन्हें भीख मांगते देखा और अपने पसंदीदा स्टार की ऐसी हालत उसकी आंखें भर आईं। 'राम राज्य' में राम की भूमिका निभाने वाले प्रेम अदीब के लाखों भक्त थे, लेकिन जीवन के अंतिम दिन उनके बहुत बुरे बीते। सुपर स्टार रहे मोतीलाल ने 'छोटी छोटी बातें' बनाकर आत्मघाती कदम उठाया। गोविंदा के स्टार पिता अरुण कुमार ने भी निर्माता बनकर ऐसी भूल की कि पूरा परिवार खार के भव्य बंगले से सीधे फुटपाथ पर आ गया और उन्हें सुदूर विरार की एक चॉल में गुजर-बसर करने को बाध्य होना पड़ा। भारत भूषण ने 'बैजू बावरा', 'बरसात की रात' जैसी सुपर हिट फिल्में दीं, पाली हिल पर आलीशान बंगला और तमाम ऐशोआराम देखे लेकिन जब फिल्में पिटने लगीं और काम कम होने लगा तो हालत पतली होती गई और फिल्म तथा टीवी में छोटी भूमिकाएं करते हुए मालाड के छोटे से घर में उन्हें गुमनाम मौत मिली।
' कलाकारों का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा होता है और भविष्य अनिश्चित होता है इसलिए जिसने भी आने वाले कल के लिए बचाकर रखा, उसे दुर्दिन नहीं झेलना पड़ा', फिल्म अभिनेता चंदशेखर का कहना है। साठ साल से ज्यादा की फिल्मी पारी खेल चुके चंद्रशेखर फिल्म इंडस्ट्री की वेलफेयर योजनाओं से जुड़े रहे हैं और बुरे दिन झेल रहे कलाकारों की मदद के लिए हमेशा आगे आते रहे हैं। उन्होंने बताया कि अशोक कुमार, राजेंद्र कुमार, जीतेंद्र जैसे सितारों ने कभी फिजूलखर्ची नहीं की और अपना पैसा सुरक्षित बिजनेस में लगाया(मिथिलेष सिन्हा,नवभारत टाइम्स,मुंबई,24.1.11)।