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Wednesday, December 30, 2009

कल रिलीज होंगी तीन फिल्में

बोलो राम,रात गई बात गई,एक्सीडेंट ऑन हिल रोड हो रही हैं रिलीज
पहली तारीख का शुक्रवार अशुभ रहा है बॉलीवुड के लिए

(हिंदुस्तान,पटना,30 दिसम्बर,2009)

रणःएक टेक में 13 मिनट की शूटिंग


(हिंदुस्तान,पटना,30 दिसम्बर,2009)

रघुवीर यादव लापता


(हिंदुस्तान,पटना,30 दिसंबर,2009)

Tuesday, December 29, 2009

Sunday, December 27, 2009

विंदूःनये बिग बॉस


बिग बॉस-3 में शुरू से ही जीतने का दावा करने वाले विंदू दारा सिंह ने आखिरकार बाजी मार ही ली। विंदू से पहले राहुल राय और आशुतोष कौशिक ने बिग बॉस का ताज पहना था। विंदू पहले दिन से ही बिग बॉस के घर में थे और अपनी छवि को बरकरार रखते हुए उन्होंने बिग बॉस-3 के प्रबल दावेदार पूनम और प्रवेश को कड़े मुकाबले में पीछे छोड़ दिया। देश की जनता ने बिग बॉस-3 के रूप में विंदू को चुना है।

विंदू और पूनम पहले दिन से ही बिग बॉस के घर में थे। मगर प्रवेश 33 वें दिन वाइल्ड कार्ड के जरिए बिग बॉस के घर में पहुंचे थे। इस रियलिटी शो के फाइनल राउंड में पूनम, विंदू और प्रवेश के साथ बख्तियार ईरानी भी थे। मगर बख्तियार 10 लाख रूपए लेकर फाइनल राउंड से बाहर हो गए थे। आम आदमी का प्रतिनिधित्व करे वाले प्रवेश के जीतने की संभावना बढ़ गई थी। मगर उन्होंने स्वीमिंग पुल में घर का सारा खाना फेंककर अपनी खलनायक वाली छवि बना ली।

इससे विंदू को लग रहा था कि वह आम आदमी का दिल जीत लेंगे और दर्शकों ने भी विंदू के विश्वास के समर्थन में ज्यादा से ज्यादा एसएमएस किया। 12 हफ्ते के इस रियलिटी शो के ग्रैंड फिनाले में शनिवार को खंडाला में शमिता शेट्टी, अदिति गोवित्रिकर, क्लोडिया, कमाल खान सहित सभी प्रतियोगियों ने स्टेज पर कार्यक्रम पेश किया। बिग बॉस के घर में पहुंचने वाले प्रतियोगी रहे थे-इस्माइल दरबार, शर्लिन चोपड़ा, कमाल खान, पूनम ढिल्लों, बख्तियार ईरानी, तनाज ईरानी, विंदू दारा सिंह, अदिति गोवित्रिकर, जया सावंत, शमिता शेट्टी, क्लोडिया सिएसला, रोहित वर्मा, राजू श्रीवास्तव, प्रवेश राणा और विनोद कांबली।
तीनों फाइनलिस्ट में से पूनम ढिल्लो बिग बॉस के घर से
पहले निकलीं। यानी वह सेकेंड रनर अप रहीं। इसके बाद एंकर अमिताभ बच्चन 'बिग बॉस' के घर से बिंदू सिंह और प्रवेश राणा को उनकी आंखों में काली पट्टियां बांधकर स्टेज पर लाए। वहीं विंदू को विजेता घोषित किया गया।
12 सप्ताह तक चले इस शो में शुरू में 13 प्रतियोगी थे, लेकिन बाद में दो की वाइल्ड कार्ड से एंट्री हुई। एक-एक करके प्रतियोगी नॉमिनेशन और जनता के वोट से शो से बाहर होते गए और अंतिम सप्ताह में चार प्रतियोगी बचे थे। इसमें से बख्तियार 10 लाख रुपये लेकर खुद ही बाहर हो गए थे। इस प्रकार फाइनल में विंदू, पूनम ढिल्लो और प्रवेश राणा बच गए थे। शो में प्रवेश की एंट्री पांच सप्ताह बाद हुई थी।
इस शो में पहले विंदू लोकप्रियता के मामले में पूनम ढिल्लो से ‍पीछे थे। लेकिन शो के दौरान विंदू ने अपने कारनामों के कारण खूब चर्चा बटोरी। अपनी नॉन स्टाप बोलने की आदत से उन्होंने घरवालों के साथ-साथ दर्शकों का भी मनोरंजन किया। सभी के बारे में भला-बुरा कहा। बख्तियार, कमाल और प्रवेश से उनकी जबरदस्त लड़ाई हुई। पूनम की निजी जिंदगी के बारे में भी उन्होंने टिप्पणी की और पोल खुलने के बाद पूनम से माफी भी मांगी ली।
(नभाटा और हिंदुस्तान,27 दिसंबर,2009 में प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित)

अमिताभ और ज्योतिष


(साभारःहिंदुस्तान,पटना,27 दिसम्बर,2009)

पटना फिल्मोत्सव


(साभारःहिंदुस्तान,पटना,27 दिसंबर,2009)

Saturday, December 26, 2009

2009-गायिकी में रहा इनका जलवा


(साभार,हिंदुस्तान,पटना,26 दिसंबर,2009)

हमार अंगना से आस लगवले बाड़ी अनुपमा


(साभार,हिंदुस्तान,पटना,26 दिसंबर,2009)

सिमरन के मिक्सिंग चालू बा


(साभार,हिंदुस्तान,पटना,26 दिसंबर,2009)

पहलवान शुभम बनिहें"तू ही मोर बालमा"


(साभार,हिंदुस्तान,पटना,26 दिसंबर,2009)

बड़े लोग,बड़ी रकम


(साभार,हिंदुस्तान,पटना,26 दिसंबर,2009)

2009-बॉलीवुड पर एक नज़र

2009-संगीत के लिहाज से


(साभार,हिंदुस्तान,पटना,26 दिसंबर,2009)

2009-नाम बड़े और दर्शन छोटे


(साभार,हिंदुस्तान,पटना,26 दिसंबर,2009)

2009 की फिल्मों में बच्चे


(साभार,हिंदुस्तान,पटना,26 दिसंबर,2009)

2009 की ऑफबीट फिल्में


(साभार,हिंदुस्तान,पटना,26दिसंबर,2009)

Friday, December 25, 2009

रॉयल्टी से ज्यादा पैसा फिल्म में


(साभारःहिंदुस्तान,पटना,25दिसंबर,2009)

मधुबाला की जीवनी का लोकार्पण

भारतीय सिने जगत में अप्रतिम सौंदर्य और सशक्त अभिनय के लिए पहचानी जाने वाली अभिनेत्री मधुबाला की जीवनी का बुधवार को दिल्ली में लोकार्पण किया गया। मधुबाला..दर्द का सफर जीवनी का लोकार्पण बुधवार शाम यहां फिल्म डिवीजन के सभागार में आयोजित किया गया। इस मौके पर सांसद राशिद अल्वी ने कहा कि राजनेताओं की प्रसिद्धि का दौर काफी छोटा होता है लेकिन कलाकारों एवं कलमकारों की लोकप्रियता कालखंड से परे होती है। उन्होंने कहा कि मधुबाला जैसे कलाकार को भले ही उनके जीवन में उचित सम्मान न दिया गया हो, लेकिन वह सदियों तक लोगों के दिलों पर राज करती रहेंगी। पुस्तक की लेखिका सुशीला कुमारी ने कहा कि मधुबाला अपनी जिंदगी में खुशियों और प्यार से कोसों दूर रही। उन्हें दुख, तन्हाई और तिरस्कार के सिवा कुछ नहीं मिला। उनका हंसता हुआ चेहरा देखकर शायद ही आभास हो कि इसके पीछे कितना भयानक दर्द छिपा था।

(साभारःहिंदुस्तान,पटना,25 दिसम्बर,2009)

3 Idiots:Film Review- थ्री ईडियट्स मचा रहे हैं धूम


(साभारःहिंदुस्तान,पटना,25 दिसम्बर,2009)
3 Idiots
Director: Raju Hirani
Actors: Aamir Khan, Sharman Joshi, Madhavan
Rating: ***1/2
Sharman Joshi’s character Raju represents the lonely hope for lower income group India. His family can barely meet three meals a day. The father is old and ill; sister unmarried; mother in poor shape. A professional degree, preferably engineering, is the only route for Raju to rise above this. On his young shoulders rest his family’s dreams. It’s not a happy situation.

While portraying this in the film, however, the filmmakers turn the screen into black and white. A melancholic tune on the shehnai plays in the background. The family’s state is neatly ascribed to ’50s realist, darker cinema. The comedy around this grimness is complete. You empathise for sure. Still, you laugh along.

Opinions are like blogs. Everybody has them. What Hirani also has is a peculiar sense of humour. This makes connection with an audience easy.

Self-seriousness in the times of Rakhee Sawant won’t fetch you even an art-house seat. Hirani and his co-writer Abhijat Joshi realise this.

They make significant points through the picture. Yet, they retain the lightness of being another ‘Munnabhai’ film throughout. Even if it means digging into Internet or memory, a joke, that cheers up the purpose better. I won’t give out the jokes; you’d rather watch them on screen first.

Young Raju may be overburdened by his family’s expectations. He has but two friends in his engineering school for a support system. One of them, Rannchhod Chachar, or Rancho (Aamir Khan, 44 plays 22, but all’s well), is a natural tech-whiz, and a guiding light of sorts -- not just for his friends, but also for the film itself. The other, Farhan (Madhavan), could’ve been a wildlife photographer. An admission into Imperial College of Engineering, or IIT, to be more precise, is for him, like countless others in this country, a ticket to neighbour’s envy, and parent’s pride.

He must endure unhappiness for the sake of both.

As Rancho suggests, he’ll have to spend an entire life somehow liking what he does, over doing what he likes. Engineering and medicine have been, for years, potential suicide notes for those growing up in this country. These may be less now the concern of metropolitan youth. But little has changed elsewhere, as in this film.

The campus here could be any Indian college. Usually a dreaded professor, referred to by his initials or acronym, walks around to dry you out of any interest in learning. I had someone called KRC. These boys have Virus (Boman Irani, with Atal Behari Vajpayee’s lisp, and Vito Corleone’s pout).

Rancho evaluates through him a cruel, classist examination system that passes off as an education system. Not surprising, this rote-learning, even from India’s best institutions, produces more a bureaucracy to serve the corporate and banking sector, than any original thinkers.

Rancho is the sort of genius this classroom cannot fathom. He plays the fool, but still tops. His friends remain flunkeys. As we all realise later in this film (and in our lives): everyone turns out fine eventually. The skits around the buddies deliver comedy with an urgent message. At some point, Rancho disappears.

The friends, including the love-interest (Kareena Kapoor), set out to figure who Rancho really was. This is the part where this doesn’t remain a ‘campus flick’ it started out as: with its own rituals of ragging and the cult ‘sutta’ song (one that’s still called for in our cinema).

The director admits, 3 Idiots is at best 5 per cent of Chetan Bhagat’s pulp-read 5 Point Someone. Thankfully. This is a film that never undermines ‘Bollywood’ for its authenticity: it has its alternating emotional highs and lows, a catch-point (‘aal ij well’ for ‘jaadu ki jhappi’), an invincible hero, and perfect knowledge of when to break into chiffon, song, or the interval. That smart art-form with its own suspensions of disbelief is getting scarcer by generational loss.

Before 3 Idiots on screen, you still don’t feel like the fourth idiot in the theatre. That’s a non-Bollywood relief. This is the sort of movie you’ll take home with a smile and a song on your lips, unless the hype has entirely messed up with your expectations.

(मयंक शेखर,हिंदुस्तान टाईम्स,दिल्ली,25 दिसम्बर,2009)


(साभारःटाइम्स ऑफ इंडिया,दिल्ली,25 दिसम्बर,2009)

Wednesday, December 23, 2009

Tuesday, December 22, 2009

Monday, December 21, 2009

Sunday, December 20, 2009

नौशाद-ज़र्रा जो आफ़ताब बना

आमिर खान ने अपने ब्लॉग पर लिख दिया था कि उनके कुत्ते का नाम शाहरुख है। इस वाकये पर अभी तक आमिर और शाहरुख से सवाल पूछे जाते हैं। सच होने के बावजूद आमिर की यह बात उनके प्रशंसकों को भी पसंद नहीं आई थी। आगे रहने की होड़ और प्रतिद्वंद्विता के इस दौर में ऐसे वाकयों पर आश्चर्य नहीं होता, लेकिन जरा नौशाद साहब के जमाने के इस प्रसंग पर गौर करें। नायडू साहब की महफिल में सज्जाद साहब और नौशाद साहब दोनों साथ बैठा करते थे। किस्मत ने नौशाद साहब को पहले चांस दे दिया, तो वे नौशाद साहब से नाराज हो गए। जब कभी नौशाद साहब ने उन्हें बुलवाया, तो वे नहीं गए। बाद में एक साहब के जरिए नौशाद साहब को पता चला कि उन्होंने अपने एक नौकर का नाम नौशाद रखा है और जब कोई प्रोड्यूसर या डायरेक्टर उनके पास जाता है, तो वे उस नौकर को नौशाद कहकर बुलाते और खूब गालियां देते..। एक प्रोड्यूसर ने नौशाद साहब को बताया कि अब सज्जाद साहब ने आपके नाम का एक कुत्ता पाल रखा है। चौधरी जिया इमाम ने नौशाद साहब से मिलकर ऐसी ही यादों को संजोया है अपनी पुस्तक नौशाद : जर्रा जो आफताब बना में । नौशाद साहब ने खुद ये किस्से सुनाए हैं। चौधरी जिया इमाम ने क्रमवार तरीके से लखनऊ के नौशाद अली के संगीत प्रेम और संगीतकार बनने की कहानी को पेश किया है। पूरी किताब पढ़ने पर एक जहीन, नेकदिल, मददगार और संगीत के जानकार नौशाद की तस्वीर उभरती है। कामयाबी की ऊंचाइयों पर पहुंचने के बाद भी उनके पांव जमीन पर ही रहे। उन्होंने दोस्ती निभाई और दोस्तों की मदद की। 25 दिसंबर 1919 को लखनऊ में जनमें नौशाद के फिल्मी करियर की समयावधि जितनी लंबी है, उतनी में कुछ लोग पूरी जिंदगी गुजार देते हैं। नौशाद साहब ने मुंबई में आरंभिक दिनों में मुफलिसी देखी, लेकिन उन्होंने उसे खुद पर तारी नहीं होने दिया। वे कदम-ब-कदम आगे बढ़ाते गए। अपना हौसला बनाए रखा और शोहरत के साथ दौलत भी हासिल की। उन्होंने केवल 75 फिल्मों में संगीत दिया, लेकिन उनकी हर फिल्म मौसिकी का नूर है और बाद के संगीतकारों के लिए नमूना हैं। नौशाद के जीवन को प्रसंगों से हमें यह भी मालूम होता है कि उस दौर के लोग कितने यारबाज और फराक दिल हुआ करते थे। हिंदी फिल्मों और फिल्म संगीत के सभी प्रेमियों को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए।
(दैनिक जागरण,20 दिसम्बर,2009 में अजय ब्रह्मात्मज की रिपोर्ट)

मणालिनी का जलवा फिर दिखेगा


(साभारःहिंदुस्तान,पटना,19 दिसम्बर,2009)

रवीन्द्र जैन पटना में


(साभारःहिंदुस्तान,पटना,20 दिसम्बर,2009)

अमिताभ के बाद अब आमिर बने किसान


(साभारःहिंदुस्तान,पटना,20 दिसम्बर,2009)

Saturday, December 19, 2009

Avatar:Reviews अवतार पर अखबार


(साभारःहिंदुस्तान,पटना,21 दिसम्बर,2009)




मूवीः अवतार
कलाकार : सैम वर्थटिंगन , साल्दना
निर्माता : 20 सेंचुरी फॉक्स स्टार
डायरेक्टर : जेम्स कैमरॉन
सेंसर सर्टिफिकेट : यू / ए
अवधि : 161 मिनट
हमारी रेटिंग :
लगता है , इस साल के आखिर में बॉक्स ऑफिस पर बॉलिवुड फिल्मों के मुकाबले हॉलिवुड फिल्में कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं। हॉलिवुड मूवी 2012 पर नोटों की बारिश के बाद अब दुनिया की सबसे महंगी फिल्म ' अवतार ' को पहले ही दिन सिंगल स्क्रीन और मल्टिप्लेक्स थिएटरों पर 80 से 90 फीसदी की जबर्दस्त ओपनिंग मिली है। इस फिल्म पर तकरीबन 2000 करोड़ रुपये की लागत आई है।

टाइटैनिक , एलियंस और टर्मिनेटर जैसी सुपरहिट फिल्में बना चुके हॉलिवुड के नामी डायरेक्टर जेम्स कैमरॉन की इस फिल्म को रेकॉर्ड बजट और अद्भुत तकनीक की वजह से मीडिया में जबर्दस्त पब्लिसिटी मिली। इस फिल्म को हिंदी और अंग्रेजी के अलावा तमिल और तेलुगू में भी रिलीज किया गया है। शायद यही वजह है कि दर्शकों में फिल्म की कहानी से ज्यादा चर्चा इसकी 3 डी टेक्नॉलजी और दो हजार करोड़ रुपये के बजट को लेकर है। इससे पहले भी हॉलिवुड की कई फिल्में पर दिल खोलकर खर्च किया गया है। करीब 12 साल पहले रिलीज हुई टाइटैनिक पर जेम्स ने करीब 1200 करोड़ रुपये खर्च किए थे और पायरेट्स ऑफ कैरेबियन की निर्माता कंपनी ने भी फिल्म की रिलीज से पहले इस फिल्म पर लगभग 1400 करोड़ रुपये खर्च करने का दावा किया था। दरअसल , अवतार में 3 डी इफेक्ट की वजह से बजट कई गुना बढ़ गया।

फिल्म के क्लाइमैक्स में अंतरिक्ष के वॉर सींस पर भी निर्माता ने दिल खोलकर खर्च किया। चर्चा है कि जेम्स को इस फिल्म के मोटे बजट के लिए कुछ ज्यादा ही इंतजार करना पड़ा और जब 20 सेंचुरी फॉक्स स्टार ने इस कहानी पर फिल्म बनाने की डील की तो जेम्स को साफ कर दिया कि उन्हें फिल्म 1000 करोड़ के बजट में ही समेटनी होगी। जेम्स इस फिल्म को बनाने में जरा भी कंजूसी बरतने के मूड में नहीं थे। इसी वजह से उन्होंने निर्माता कंपनी से मिला पूरा बजट फिल्म बनाने में लगाया और शूटिंग के आखिरी शेडयूल में पैसे की तंगी आई तो अपने दम पर इंतजाम किया। इस फिल्म में पहली बार न्यू वर्चुअल फोटोरियलिस्टिक तकनीक का प्रयोग हुआ और जेम्स ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर 3 डी तकनीक का स्पेशल कैमरा बनाया और इसी कैमरे से फिल्म शूट की।

जेम्स ने फिल्म में ऐसे कई किरदारों को पेश किया है जिनका अपना कोई वजूद नहीं है। जेम्स ने एक नई तकनीक के माध्यम से फिल्म में कंप्यूटर जेनरेटेड इमेजिनरी इफेक्ट्स का भी प्रयोग किया है। फिल्म के स्पेशल इफेक्ट गजब के हैं। आधुनिक सिनेमा की नई तकनीक से आप इस फिल्म में एक ऐसी सपनों की दुनिया को रुपहले पदेर् पर देख सकेंगे जो शायद कभी आपने सपनों में देखी हो।

कहानी : साल 2154 की इस कहानी के मुख्य किरदार जैक सल्ली ( सैम वर्थटिंगटन ) को एक गुप्त मिशन के अंतर्गत एक काल्पनिक ग्रह पंडारा भेजा जाता है। इस ग्रह पर जाने के लिए जैक को एक खास प्रोग्राम अवतार से लैस किया जाता है। इसके मुताबिक जैक ग्रह पर जाकर भी मिशन के मकसद में लगा रहे और उस पर मिशन के आका उसे अपने मन मुताबिक चला सकें। पंडारा ग्रह पर जाने के बाद जैक ग्रह पर रह रहे दूसरी दुनिया के लोगों में मिल जाता है। जैक को वहां के राजा की बेटी से प्रेम हो जाता है , लेकिन वहीं उसे मिशन पर भेजने वाले अमेरिकी सेना के आकाओं के इरादे कुछ और है।

स्क्रिप्ट : करीब पौने तीन घंटे लंबी इस फिल्म की स्क्रिप्ट कहीं भी कमजोर नहीं पड़ती। स्क्रिप्ट राइटर ने दूसरी दुनिया में रहने वालों की उस अजब दुनिया को कुछ ऐसे असरदार ढंग से पेश किया है कि दर्शकों को उस अनजानी दुनिया से प्रेम हो जाता है। इसे स्क्रिप्ट राइटर और कैमरामैन की काबलियत ही कहा जाएगा कि अमेरिकी सेना जिस अनजान ग्रह को नरक से भी बदतर बताती है , उसी दुनिया को ऐसी खूबसूरती से पेश किया गया है कि हर कोई उसमें बंध सा जाता है।

डायरेक्शन : जेम्स कैमरॉन की फिल्म के हर हिस्से पर सौ फीसदी पकड़ है। करीब डेढ़ सौ साल बाद की एक ऐसी काल्पनिक दुनिया को उन्होंने ऐसे असरदार ढंग से सिल्वर स्क्रीन पर उतारा है कि दर्शक शुरू से लेकर आखिर तक फिल्म के साथ खुद को बंधा पाता है। एक ऐसी फिल्म में जिसके सभी पात्र सौ फीसदी काल्पनिक और अजीब लगने वाले हैं , उन पात्रों के साथ दर्शकों का तारतम्य जोड़ने का क्रेडिट जेम्स को जाता है।

ऐक्टिंग : जैक की भूमिका में सैम ने एक ऐसा किरदार निभाया है जो एकसाथ दो जिंदगी जीता है। पंडारा ग्रह पर पहुंचने के बाद सैम का दूसरी दुनिया के लोगों से रिश्ता जोड़ना और आकाश की दुनिया के लोगों के साथ जंग करने के लिए उन्हें एकजुट करने वाले सींस में सैम खूब जमे है। बाकी कलाकारों में साल्दना , सीक्योर्नी ने बेहतरीन अभिनय किया है।

क्यों देखें : फैमिली के साथ एक ऐसी नई दुनिया को देखने का एहसास जहां सब कुछ आपके सपनों जैसा सुहाना और लाजवाब है। 3 डी और फिल्म के ऐसे अद्भुत स्पेशल इफेक्ट जो इससे पहले आपने शायद ही देखे हों।
(चंद्रमोहन शर्मा,नभाटा)

पेश बा अलौकिक चुटकी भर सिंदूर के झलक


19 दिसंबर,2009 के हिंदुस्तान,पटना में प्रकाशित

मार देब गोली केहू ना बोलीःअपराधी लोगन के कहानी


19 दिसम्बर,2009 के हिंदुस्तान,पटना में प्रकाशित

भोजपुरी के हॉरर बा मनोज भइया के लाल सुग्गा


19 दिसम्बर,2009 के हिंदुस्तान,पटना में प्रकाशित

Friday, December 18, 2009

बिग बी के दिल के बात निरहुआ के साथ

हिंदुस्तान,पटना,19 दिसम्बर,2009 के रिपोर्टः

सदी के महानायक बिग बी के दिल के बात ले के आ रहल बाड़न भोजपुरी सिनेमा के किंग दिनेश लाल यादव निरहुआ। दैनिक जागरण,पटना,18 दिसम्बर,2009 के अंक में खबर छपल बा कि एकर प्रसारण होई महुआ न्यूज पर। हाले में, मुम्बई स्थित बिग बी के बंगला प्रतीक्षा पर उनकरा से एक घंटा के साक्षात्कार के शूटिंग भइल जवन में खुद-ब-खुद बिग बी बतवलन आपन दिल के बात। साक्षात्कार के दौरान निरहुआ उनुकर जिंदगी के हर पहलू पर बातचीत कइलन। एह में, हालिया रिलीज पा में अमिताभ के किरदार पर बातचीत भी शामिल बा। बिग बी भी भोजपुरी भाषा, सिनेमा आ ओकर बढ़त लोकप्रियता पर खुल के बतवलन। ऊ भोजपुरी इंडस्ट्री के हर सदस्य के बधाई देत कहलन कि उनुकरा के गर्व बा कि भोजपुरी उनकर भाषा बा अउर ऊ भोजपुरी भाषी क्षेत्र के बाड़न। अमिताभ बच्चन के साथ बितावल समय के चर्चा करत निरहुआ कहलन कि जब ऊ पहली बार उनकरा से रू-ब-रू भइलन त उनकरा के बुझाइल कि ऊ आपन भगवान के सामने बाड़ें। निरहुआ उनकरा से अभिनय के कुछ टिप्स भी लेलन ।

संभावना के पहिल पसंद भोजपुरी

दैनिक जागरण,पटना,18 दिसम्बर,2009 के अंक में छपल खबर में कहल गईल ह कि मशहूर आइटम गर्ल संभावना सेठ क पहिल पसंद भोजपुरी बा। संभावना सेठ सोनी टीवी के मशहूर रियलिटी शो डासिंग क्वीन के विजेता रहली। उनकर कहनाम बा कि ऊ भोजपुरी सिनेमा आ भाषा के अबहु ओतने प्यार करेली सन जतना शुरू में करत रहली। संभावना सेठ बिग बास से बड़हन लोकप्रिय हो रहल बाड़ी। उनका के आज भी भोजपुरी सिनेमा में आइटम नंबर करे से कवनो गुरेज नइखे। बल्कि ऊ गर्व से कह ताड़ी कि उनुकर सफलता के श्रेय भोजपुरी सिनेमा के जाला, जवन के कारण उनुका के भोजपुरिया हेलेन कहल गईल। संभावना भोजपुरी सिनेमा में रोल करे खातिर तैयार बाड़ी। उनकर कहनाम बा कि भोजपुरिया लोगन खातिर उनकर घर हमेशा खुलल रही काहे से कि उनकर पहिचान भोजपुरी सिनेमा से ही भईल रहे। ऊ आजीवन भोजपुरी सिनेमा करिहें,ई उनकर घोषणा बा। बिग बास आ डांसिंग क्वीन के बाद उनुका के ढेरिका आफर मिल रहल बा। देश-विदेश में कईगो स्टेज शो कर रहल बाड़ी। आज लोग उनका के निमन डांसर माने लागल ह। संभावना सेठ के प्रेम के रोग भईल रिलीज हाले में रिलीज भइल ह अउर कुछ और फिल्म फ्लोर पर बा।

Thursday, December 17, 2009

Bhatt's Raaz Part-II:Mahesh-Pooja lip-locked


(Courtesy:TOI,Delhi Times,17 Dec.2009)

बिहार में शूटिंग करें,सुविधा मिलेगीःनीतीश


17 दिसम्बर,2009 के हिंदुस्तान,पटना में यथाप्रकाशित

बिहार नहीं जानता अपने इस सपूत को


17 दिसम्बर,2009 के हिेंदुस्तान,पटना में यथाप्रकाशित

Tuesday, December 15, 2009

पूर्वांचल निर्माण देशहित में होईःरवि किशन


15 दिसम्बर,2009 के दैनिक जागरण लिखता कि सुपरस्टार रवि किशन के भी विचार बा कि पूर्वाचल राज्य के गठन में अब तनिको विलंब ना होखे के चाहीं। तेलंगाना राज्य के मांग पर केन्द्र सरकार के फैसला के स्वागत करत ऊ कहलन कि ई निर्णय देशहित में होई अउर जवना दिन पूर्वाचल राज्य के मांग पूरा हो जाई, ओही दिन एह पिछड़ल इलाका के विकास के रास्ता भी खुली। मुम्बई से बाबतपुर हवाई अड्डा पहुंच के रवि किशन कहलन कि पूर्वाचल के करोड़ों के आबादी सिर्फ इहे खातिर पिछड़ल ह कि ऊ एगो बड़हन प्रदेश के हिस्सा बा जवन तक विकास के किरण पहुंचते-पहुंचते मद्धिम पड़ जाला। रवि किशन भदोही में, मार देब गोली, केहू ना बोली फिल्म के शूटिंग के सिलसिला में आईल रहलन। एनडीटीवी इमेजिन पर आजकल खूब चल रहल शो राज पिछले जनम का के लोकप्रियता से उत्साहित रवि किशन के विचार बा कि छोटका-छोटका राज्य में विकास के रफ्तार तेज होला। एह से, में केन्द्र सरकार के पूर्वाचल के मुद्दा पर विलम्ब ना करे के चाही। मार देब गोली, केहू ना बोली फिल्म में रवि किशन एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस अफसर की भूमिका में बाड़न, जवन के लक्ष्य अपराध नष्ट करे के बा।

पूर्वांचल बने के चाहीःमनोज तिवारी


दैनिक भास्कर में 15 दिसम्बर,2009 के छपल खबर के मुताबिक, आपन भोजपुरी अमिताभ बच्चन मनोज तिवारी के कहनाम बा कि पूर्वांचल राज्य बने के चाहीं। रउआ के ध्यान होई कि मनोज भईया समाजवादी पार्टी के टिकट पर गोरखपुर से लोक सभा चुनाव लड़ले रहलन। मगर उहे सपा उत्तर प्रदेश के बंटवारा के खिलाफ बा। जब एह बाबत उनुका से पूछल गईल कि जब उत्तर प्रदेश के बंटवारा के मसला पर सपा अउर अमर सिंह सख्त खिलाफ बाड़ें,तs रउआ पूर्वाचल राज्य के गठन के समर्थन कइसे कर रहल बानी। एह पर उनुकर जवाब रहे कि जवन पूर्वाचल अउर भोजपुरी के बात करिहें,उहे हमार दिल पर राज करिहें। मनोज भईया ईहो कहलन कि सपा चाहे जे सोचे, ई उनुकर व्यक्तिगत सोच बा कि विकास के खातिर पूर्वांचल राज्य के निर्माण हर हाल में होखे के चाहीं। उनुकर इहो कहनाम रहे कि ऊ एह मुद्दा पर अमर सिंह से मिलि कए उनुका के समझइहें-बुझइहें कि विकास के खातिर पूर्वाचल राज्य केतना जरूरी बा।

रेडियो सीलोन के वे दिन............

There are many aficionados in remote corners of India, Pakistan and Bangladesh who become restless if their radio set does not catch the 7.30 a.m. slot on the Sri Lanka Broadcasting Corporation. The inimitable ‘Purani Filmon Ke Geet’ has been a rich offering of rare Hindi film songs of the 1940s and 50s. A genius named Clifford Dodd, in 1949, understood the potential of Hindi broadcasts when a stubborn B V Keskar banned film sangeet on All India Radio. Dodd convinced the Ceylon government, as it was known at the time, of the urgency of grabbing the opportunity. He found another dedicated soul in Vijay Kishore Dubey, who had resigned from AIR in disgust. The combination gave birth to the Hindi service on Radio Ceylon. It proved so lethal that for the next 30 years, Radio Ceylon ruled the hearts of Hindi film music lovers. The pinnacle of popularity, undoubtedly, was ‘Binaca Geetmala’, immortalised by Amin Sayani speaking from a tiny cubicle in Mumbai’s Colaba.
The Hindi section of Radio Ceylon was a hit overnight. It started receiving a mountain of letters daily, with Dubey selecting most captivating songs. It became so popular that the Indian government soon had to launch its own commercial service, Vividh Bharati. Kumar Nawathe correctly said in a recent memoir that though the films of that era were quite ordinary, the power of music was such that crowds thronged cinema houses just to watch song sequences. Dubey’s successor, Gopal Sharma, started peppering his commentary with anecdotes and personal recollections of the stars and film-making and scaled new heights of popularity. Even today, there are people who long to hear his voice. It was Sharma who laid down the convention that the last song in the ‘Purani Filmon Ke Geet’ would be a K L Saigal song, a convention which continues. Over the years, though, the popularity of the Hindi service has been on the wane. The Sri Lankan government has curtailed its expenditure on the service for want of returns. The new generation in India is not all that interested. Padmini Pereira and Jyoti Parmar, both born Sri Lankan nationals, have been trying their best to keep the service afloat. Their endurance is strengthened by a band of listeners who will feel like they’ve lost a close relative if the service is stopped.
(द टाइम्स ऑफ इंडिया,दिल्ली, 15 दिसम्बर,2009 में दिलीप चावड़े का आलेख)

Sunday, December 13, 2009

अबरार अल्वीःस्मृति शेष

19 नवम्बर को मुंबई में अबरार अल्वी ने दुनिया से खामोश विदाई ले ली। उनकी अंत्येष्टि की जानकारी लोगों को नहीं मिली इसलिए परिवार के सदस्यों के अलावा और कोई नहीं पहुंच पाया। किसी निजी तो कभी दूसरों की खामोशी की वजह से हिंदी फिल्मों में अबरार अल्वी के योगदान को सही महत्व नहीं मिल पाया। पिछले साल गुरुदत्त के साथ बिताए दस सालों पर उनकी एक किताब जरूर आई, लेकिन घटनाओं को सहेजने में उम्र के कारण उनकी यादें धोखा देती रहीं। उनके भांजे और थिएटर के मशहूर निर्देशक सलीम आरिफ बताते हैं कि अबरार मामू मीडिया और खबरों से दूर ही रहे। उन्होंने गुरुदत्त से अपनी संगत को सीने से लगाए रखा। नागपुर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद लंबे-छरहरे अबरार अल्वी एक्टर बनने के इरादे से मुंबई आए थे। गीता बाली के बहनोई जसवंत को वे जानते थे। उनके माध्यम से ही गुरुदत्त से परिचय हुआ। गुरुदत्त की फिल्म बाज का प्रायवेट शो था। उसमें जसवंत ने अबरार अल्वी को बुला लिया था। फिल्म देखने के बाद गुरुदत्त ने अबरार अल्वी से उनकी राय पूछी तो उन्होंने बेलौस जवाब दिया, आप बहुत फोटोजेनिक हैं। इस जवाब का आशय समझते हुए गुरुदत्त ने आगे पूछा, कुछ एक्टोजेनिक हैं। इस जवाब का आशय समझते हुए गुरुदत्त ने आगे पूछा, कुछ एक्टोजेनिक भी हैं या नहीं? गुरुदत्त से परिचय का यह सिलसिला कालांतर में सहयोग में बदला। अबरार अल्वी उनकी फिल्मों का लेखन करने लगे। आज यह जोड़ी इतिहास का हिस्सा बन चुकी है। गुरुदत्त की फिल्मों में अबरार अल्वी के लेखन का खास महत्व है। गुरुदत्त की सोच को स्कि्रप्ट में ढालना और फिर उन्हें समुचित संवादों से प्रभावशाली बनाने में अबरार का हुनर सामने आया। गुरुदत्त बेहतर लेखक की तलाश में थे। उन्हें लगता था कि उनके विचारों को सही शब्द नहीं मिल पाते। अबरार अल्वी ने उनकी यह जरूरत पूरी की। अगर गुरुदत्त के कैरिअर पर ध्यान दें तो उनका आरंभिक रुझान थ्रिलर की तरफ था। वे आर-पार और बाजी जैसी फिल्मों में अधिक रुचि लेते थे। अबरार अल्वी ने उन्हें प्रेरित किया कि वे अपनी प्रतिभा का उपयोग बेहतरीन फिल्मों के लिए करें। इस तरह प्यासा की नींव पड़ी। प्यासा में गुरुदत्त का किरदार अबरार अल्वी के निजी जीवन से प्रेरित था। इसके पहले गुरुदत्त अबरार अल्वी के नाटक मार्डन मैरिज पर मिस्टर एंड मिसेज 55 बना चुके थे। प्यासा में अबरार अल्वी के योगदान को साहिर लुधियानवी ने रेखांकित किया था। कहते हैं कि साहिर की इस तारीफ से गुरुदत्त खफा हो गए थे। उसी नाराजगी में उन्होंने अपनी अगली फिल्मों के गीत कैफी आजमी से लिखवाए। अबरार अल्वी ने हिंदी फिल्मों के संवाद लेखन में इस पर जोर डाला कि किरदारों की भाषा उनकी पृष्ठभूमि के अनुरूप हो। पहले राजा और रंक या नायक और सामान्य किरदार लगभग एक जैसी भाषा बोलते थे। अबरार अल्वी ने भाषा में ग्राम्य प्रभाव पैदा किया। बाद में यह भदेसपन ऐसी रूढि़ बन गयी कि हर फिल्म में नौकर और ड्रायवर पुरबिया मिश्रित हिंदी बोलते ही नजर आए। अबरार अल्वी के लेखन की गुणवत्ता देखते हुए महबूब खान ने उन्हें अपनी टीम से जुड़ने का निमंत्रण दिया था और छूट दी थी कि वे चाहें तो उनके साथ काम करते हुए भी गुरुदत्त को प्राथमिकता दे सकते हैं। अबरार अल्वी ने गुरुदत्त से इस संदर्भ में बात की तो उन्होंने दो टूक कहा कि तुम एक बार उनके साथ काम शुरू करोगे तो स्वाभाविक रूप से उन्हें ही प्राथमिकता दोगे, क्योंकि वे कामयाब नाम हैं। अगर मेरे साथ रहे तो मैं तुम्हारी क्षतिपूर्ति जरूर करूंगा। साहब बीवी गुलाम के निर्देशन की जिम्मेदारी देकर गुरुदत्त ने अबरार अल्वी की क्षतिपूर्ति अवश्य की, लेकिन वे उस फिल्म के गानों की शूटिंग से खुद को नहीं रोक पाए। अंत तक कंफ्यूजन रहा कि साहब बीवी गुलाम के निर्देशक गुरुदत्त ही हैं। गुरुदत्त या उनकी टीम के किसी दूसरे सदस्य ने स्पष्टीकरण नहीं दिया। अकाल मृत्यु ने गुरुदत्त को छीन लिया और अबरार अल्वी गुमनामी में खो गए। बाद में उन्होंने लेख टंडन और आत्माराम के लिए कुछ फिल्में जरूर लिखीं, लेकिन उनमें गुरुदत्त की गहराई और गंभीरता नहीं आ पाई। गुरुदत्त की आत्महत्या की रात अबरार अल्वी उनसे मिलकर लौटे थे। उन्हें जिंदगी भर इस बात का अफसोस रहा कि अगर वे अन्य रातों की तरह उस रात भी वहीं रुक गए होते तो शायद गुरुदत्त आत्महत्या का दुस्साहस नहीं करते। अबरार अल्वी कहा करते थे कि पारिवारिक और फिल्मी कारणों से गुरुदत्त टूट चुके थे। वे एकाग्रचित होकर काम नहीं कर पा रहे थे। अजय ब्रह्मात्मज (यह लेख अबरार अल्वी के भांजे सलीम आरिफ से हुई बातचीत पर आधारित है।)
दैनिक जागरण,पटना में 07 दिसम्बर,2009 को यथाप्रकाशित

Saturday, December 12, 2009

मोनालिसा बनिहें चंद्रमुखी


12 दिसम्बर,2009 के हिंदुस्तान,पटना में प्रकाशित

पवन के ओढनियां कमाल करे......


12 दिसम्बर,2009 के हिंदुस्तान,पटना में प्रकाशित

ताजा फिल्म सर्वे और शोले


12 दिसम्बर,2009 के हिंदुस्तान,पटना में यथाप्रकाशित

आ रहल बाड़न लाट साहेब लोग.......


12 दिसम्बर,2009 के हिंदुस्तान,पटना में यथाप्रकाशित