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Sunday, December 20, 2009

नौशाद-ज़र्रा जो आफ़ताब बना

आमिर खान ने अपने ब्लॉग पर लिख दिया था कि उनके कुत्ते का नाम शाहरुख है। इस वाकये पर अभी तक आमिर और शाहरुख से सवाल पूछे जाते हैं। सच होने के बावजूद आमिर की यह बात उनके प्रशंसकों को भी पसंद नहीं आई थी। आगे रहने की होड़ और प्रतिद्वंद्विता के इस दौर में ऐसे वाकयों पर आश्चर्य नहीं होता, लेकिन जरा नौशाद साहब के जमाने के इस प्रसंग पर गौर करें। नायडू साहब की महफिल में सज्जाद साहब और नौशाद साहब दोनों साथ बैठा करते थे। किस्मत ने नौशाद साहब को पहले चांस दे दिया, तो वे नौशाद साहब से नाराज हो गए। जब कभी नौशाद साहब ने उन्हें बुलवाया, तो वे नहीं गए। बाद में एक साहब के जरिए नौशाद साहब को पता चला कि उन्होंने अपने एक नौकर का नाम नौशाद रखा है और जब कोई प्रोड्यूसर या डायरेक्टर उनके पास जाता है, तो वे उस नौकर को नौशाद कहकर बुलाते और खूब गालियां देते..। एक प्रोड्यूसर ने नौशाद साहब को बताया कि अब सज्जाद साहब ने आपके नाम का एक कुत्ता पाल रखा है। चौधरी जिया इमाम ने नौशाद साहब से मिलकर ऐसी ही यादों को संजोया है अपनी पुस्तक नौशाद : जर्रा जो आफताब बना में । नौशाद साहब ने खुद ये किस्से सुनाए हैं। चौधरी जिया इमाम ने क्रमवार तरीके से लखनऊ के नौशाद अली के संगीत प्रेम और संगीतकार बनने की कहानी को पेश किया है। पूरी किताब पढ़ने पर एक जहीन, नेकदिल, मददगार और संगीत के जानकार नौशाद की तस्वीर उभरती है। कामयाबी की ऊंचाइयों पर पहुंचने के बाद भी उनके पांव जमीन पर ही रहे। उन्होंने दोस्ती निभाई और दोस्तों की मदद की। 25 दिसंबर 1919 को लखनऊ में जनमें नौशाद के फिल्मी करियर की समयावधि जितनी लंबी है, उतनी में कुछ लोग पूरी जिंदगी गुजार देते हैं। नौशाद साहब ने मुंबई में आरंभिक दिनों में मुफलिसी देखी, लेकिन उन्होंने उसे खुद पर तारी नहीं होने दिया। वे कदम-ब-कदम आगे बढ़ाते गए। अपना हौसला बनाए रखा और शोहरत के साथ दौलत भी हासिल की। उन्होंने केवल 75 फिल्मों में संगीत दिया, लेकिन उनकी हर फिल्म मौसिकी का नूर है और बाद के संगीतकारों के लिए नमूना हैं। नौशाद के जीवन को प्रसंगों से हमें यह भी मालूम होता है कि उस दौर के लोग कितने यारबाज और फराक दिल हुआ करते थे। हिंदी फिल्मों और फिल्म संगीत के सभी प्रेमियों को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए।
(दैनिक जागरण,20 दिसम्बर,2009 में अजय ब्रह्मात्मज की रिपोर्ट)

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