नंदिता दास को फायर, हजार चौरासी की मां और अर्थ जैसी फिल्मों में उनके सशक्त और दमदार अभिनय के लिए जाना जाता है। कुछ समय पहले वे सीएफएसआई की अध्यक्ष चुनी गई थीं। उन्होंने प्रशंसित फिल्म फिराक का निर्देशन भी किया। इसके बाद उन्होंने व्यवसायी सुबोध मसकरा से विवाह कर लिया और हाल ही में वे मां बनी हैं। समय-समय पर मेरी नंदिता से मुलाकातें होती रहती हैं। हाल ही में उनसे हुई बातचीत में उन्होंने अपनी गैरपरंपरागत पृष्ठभूमि और फिल्मों के प्रति अपने लगाव के बारे में विस्तार से बताया।
नंदिता बताती हैं कि वे और उनका भाई पिता को कैनवास पर काम करते देख बड़े हुए हैं। उसी दरमियान उन्हें भी अपने रचनात्मक रूझानों का अहसास हुआ। उनके परिवार ने भी उन्हें अपनी राह चुनने की स्वतंत्रता दी। उनके भाई ने ऋषि वैली में पढ़ने का फैसला लिया था और नंदिता भी मां सहित वहां उनके साथ गईं। ऋषि वैली के सुरम्य परिवेश का उनके मन पर गहरा असर पड़ा और उन्होंने तय कर लिया कि वे फिर यहां आएंगी। आखिरकार उनका यह सपना साकार हुआ।
नंदिता ने ऋषि वैली में छह माह बिताए और वे मानती हैं कि यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण समय था। हालांकि वे वहां शिक्षिका के रूप में गई थीं, लेकिन उन्होंने स्वयं श्लोक, भजन इत्यादि सीखने में भी काफी रुचि दिखाई। यहीं पर उन्होंने पेड़ों से बात करना, मौन होकर डूबते सूरज को निहारना भी सीखा। दिल्ली लौटने के बाद उन्होंने पाया कि अब औपचारिक शिक्षा में उनकी कोई रुचि नहीं थी। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद नंदिता एक गैरसरकारी संगठन से जुड़ गईं, जो झुग्गीवासी महिलाओं के साथ काम करता था। यहीं उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि जीवन के विरोधाभास आदर्शो पर हावी हो जाते हैं। तकलीफों की तीखी सच्चई ये है कि हम चाहें कितना ही बुरा क्यों न महसूस करें, जीवन की गति कभी नहीं रुकती है। जीवन आगे बढ़ता रहता है।
सड़क पर होने वाले नुक्कड़ नाटकों में नंदिता की हमेशा से ही दिलचस्पी रही थी, इसलिए यह स्वाभाविक था कि वे रंगमंच की ओर आकृष्ट होतीं। नंदिता कहती हैं कि वे स्वयं को 50 एपिसोड वाले टीवी सीरियलों के लिए फिट नहीं पातीं, इसलिए उन्होंने कई ऑफर्स ठुकरा दिए। आखिर दीपा मेहता ने उन्हें फायर और गोविंद निहलानी ने हजार चौरासी की मां के लिए साइन कर लिया। नंदिता कहती हैं कि महाश्वेता देवी का उपन्यास हजार चौरासी की मां उन्हें बहुत प्रेरित करता था और इसीलिए वे इस फिल्म का हिस्सा होना चाहती थीं, अलबत्ता फिल्म में उनकी भूमिका एकआयामी थी।
नंदिता कहती हैं कि शबाना आजमी और जया बच्चन जैसी कद्दावर अभिनेत्रियों के साथ काम करना बहुत प्रेरणादायी अनुभव था। अर्थ में उन्होंने आमिर खान के साथ काम किया। वे कहती हैं आमिर के व्यक्तित्व में जो गंभीरता है, वही परदे पर उनके द्वारा निभाए जाने वाले पात्रों में झलकती है। आमिर बहुत प्रतिबद्ध अभिनेता हैं।
नंदिता स्वीकारती हैं कि जहां उन्होंने अच्छी फिल्मों में काम किया है, वहीं उन्होंने कुछ खराब कमर्शियल फिल्में भी की हैं। जब वे ऊब गईं तो उन्हें काम से ब्रेक लिया और फिर सीएफएसआई की अध्यक्ष बन गईं। फिर एक फिल्म का निर्देशन किया और पुरस्कार जीते। वे कहती हैं कि वे हमेशा जीवन के बहाव के साथ बहना पसंद करती हैं, फिर वह चाहे फिल्में हों, निर्देशन हो या विवाह। उन्हें मां बनकर संतोष का अनुभव हुआ है। नंदिता बताती हैं कि उन्होंने अपना जीवन अपनी ही शर्तो पर बिताया है और अब घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियां निभाकर भी वे काफी खुश हैं(भावना सोमाया,दैनिक भास्कर,12.12.2010)।
bahut hi acha laga pad kar...
ReplyDeletewww.lyrics-mantra.blogspot.com
सिनेमा के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है.वैसे भी आपका पोस्ट सुंदर लगता है।
ReplyDeleteराधा रमण जी,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग से फ़िल्मी दुनियाँ की अच्छी जानकारी मिल जाती है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ