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Thursday, January 28, 2010

शादीशुदा पर फिदा कंवारी हीरोइनें

फिल्म जगत की चर्चित शख्सियतों मसलन शबाना आजमी, हेलेन, महिमा चैधरी, श्रीदेवी, रवीना टंडन, करिश्मा कपूर, शिल्पा शेट्टी, स्मिता पाटील, सारिका या हॉलीवुड की अदाकारा एंजेलिना जोली आदि के बीच क्या समानता ढूंढ़ी जा सकती है? अगर परदे पर निभाए गए किरदारों की पड़ताल करें तो निश्चित ही विविधता दिखाई देगी। गुजरे जमाने की फिल्मों में कैबरे डांसर या वैम्प की भूमिका में नजर आने वाली हेलेन से लेकर समानांतर भूमिका की मुहिम से जुड़ी रही स्मिता पाटील या विगत तीन दशकों से अधिक समय से मुख्य तारिका से लेकर चरित्र भूमिकाओं में दिखाई देने वाली हेमा मालिनी दिख सकती हैं। मगर अपने व्यक्तिगत जीवन में इन्होंने अपने जीवनसाथी चुनने के मामले में जो निर्णय लिए, उनमें वह एक ही पटरी पर खड़ी दिखती हैं। इन सभी ने ऐसे पतियों को चुना, जो पहले से शादीशुदा थे। इनमें से कई की संतानें भी बड़ी हो चुकी थीं। शबाना के पति जावेद अख्तर हों, हेलेन के पति चर्चित पटकथा लेखक सलीम खान हों, हेमा मालिनी के पति धर्मेद्र हों, महिमा चौधरी के आर्किटेक्ट पति बॉबी मुखर्जी हों, श्रीदेवी के पति बोनी कपूर हों या करिश्मा के पति संजय कपूर या हाल में परिणयसूत्र में बंधी शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा ही क्यों न हों। ये सभी पुरुष पहले से शादीशुदा थे। लोगों को याद होगा कि हेमा मालिनी द्वारा धर्मेद्र से की गई शादी का मसला उन दिनों लोकसभा के शून्यकाल में भी उछला था। अभी इस मसले पर अधिक बात न भी करें कि इनके इन रिश्तों ने इनके पतियों की पहली पत्नियों के जीवन में किस किस्म के तनावों को जन्म दिया या इनके पतियों ने किस तरह लंबे समय तक दोनों के साथ रिश्ता बनाए रखा- जैसे बोनी कपूर के श्रीदेवी के साथ संबंध के चलते उनकी पहली पत्नी मोना किस तरह आहत थीं और बीमार रहने लगी थीं या राज कुंद्रा की पहली पत्नी ने अपनी गृहस्थी तोड़ने के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया, तब भी यह मसला गौरतलब है कि परदे पर उन्मुक्त, स्वच्छंद, बिंदास और यहां तक कि नारी हकों के लिए पैरोकार नजर आने वाली इन अभिनेत्रियों ने अपने निजी जीवन में किसी की दूसरी पत्नी होना कबूल किया। इस तरह यह कहा जा सकता है कि कम से कम शादी और वैवाहिक जीवन के मामले में फिल्मी दुनिया की हस्तियों और समाज के दूसरे लोगों के जीवन में काफी कुछ समानता नजर आ सकती है। रील लाइफ और रियल लाइफ के बीच का जो अंतराल है, वह इन सितारों के व्यक्तिगत जीवन में बखूबी दिखता है। फिल्मी दुनिया की ये तारिकाएं समाज की औसत स्त्री के मूल्यों से आगे बढ़ी नहीं दिखतीं। ध्यान देने लायक बात है कि सिने तारिकाओं द्वारा शादीशुदा पुरुषों को चुनने के जितने उदाहरण मिलते हैं, क्या उतने ही उदाहरण कुंवारे सिनेस्टार्स द्वारा शादीशुदा स्ति्रयों के साथ वैवाहिक जीवन में प्रवेश के मिलते हैं? निश्चित ही नहीं। इस मामले में चाहे सिनेस्टार्स हो या राजनेता हों या अन्य सार्वजनिक शख्सियत हो, इनके बीच बहुत कम अंतराल दिखता है। हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन और उनकी पत्नी अनुराधा बाली के विवाह का प्रसंग भी काफी समय चर्चा में रहा। चंद्रमोहन के साथ रिश्ता बनाते वक्त अनुराधा ने इस बात की चिंता नहीं की कि वह पहले से शादीशुदा है और उसकी संतानें भी बड़ी हो चुकी हैं। महज शादी के लिए धर्म बदलने से भी उन्हें कोई गुरेज नहीं हुआ। फिल्म के परदे पर नायक और नायिका खुद को कैसे प्रस्तुत करते हैं, इससे उनके निजी जीवन की सोच और मानसिकता का कोई लेना देना नहीं होता है, यह तो सभी जानते हैं। वे वही करते हैं, जो निर्देशक उनसे करवाता है। वैसे दूर से उनकी दुनिया आम समाज की दुनिया से अलग ही नजर आती है। पता नहीं किन मामलों में कितनी समानता है या कितनी असमानता है, लेकिन कम से कम एक मामले में तो वे समाज में व्याप्त मानसिकता के परिधि को लांघ नहीं पाए हैं। वह है नायक-नायिकाओं के अपने जीवन साथी के चुनाव का मसला। हर सिनेमा की अंतर्वस्तु समाज का दर्पण हो, यह जरूरी नहीं है, कुछ तो कोरे कल्पना पर आधारित भी हो सकते हैं। इसी तरह नायक-नायिका का जीवन समाज के स्त्री-पुरुष के जीवन से हर मामले में मेल खाए, यह जरूरी नहीं है। मामला यह नहीं है कि दूसरी या तीसरी शादी कोई करे या नहीं, बल्कि समान पैमाने का है। आखिर क्यों आज भी महिलाओं के लिए दूसरी या तीसरी शादी करना आसान नहीं है, जबकि पुरुष के लिए आसानी से संभव है। कई बार यह भी पाया जाता है कि अपने पूर्व पति से अलग हो चुकी महिलाओं के साथ दूसरे पुरुष भावनात्मक संबंध तो बना लेते हैं, लेकिन शादी कर लेने से बचते हैं। इससे सामाजिक मनोवैज्ञानिक कारणों पर हो सकता है अलग-अलग लोगों का अलग-अलग जोर हो, लेकिन यह तथ्य कम से कम सभी स्वीकारेंगे कि स्त्री-पुरुष दोनों के लिए शादी को लेकर अलग-अलग मान्यताएं मौजूद हैं। हमारे समाज में अधिकतर इलाकों में पुरुषों की दूसरी शादी होने में कोई मुश्किल नहीं आती है, चाहे वह किसी भी जाति-धर्म से संबंधित हो, लेकिन अधिकतर स्ति्रयों को यदि दूसरी शादी करनी है तो इतना आसान नहीं है। आज के समय में यह तो नहीं कहा जा सकता है कि औरत दूसरी शादी करती नहीं है, क्योंकि पढ़े लिखे मध्यवर्ग में लोग मर्जी से ऐसा कर रहे हैं, लेकिन वे अब भी अपवाद ही दिखते हैं। कुछ जनजातियों में ऐसा आम होता है, लेकिन शेष समाज में ऐसे उदाहरण कम नजर आते हैं। मौजूदा हालात में स्त्री के लिए गोरेपन तथा पहली बार शादी अच्छा स्थान रखता है। कुछ महिलाएं अपनी इस दोयम स्थिति को इतनी आत्मसात किए रहती हैं कि मजाक में खुद कहती हैं कि ठोकर खा चुका है तो पांव जमीन पर रहेंगे या अपनी दूसरी बीबी से अपेक्षा नहीं पालेगा, मेच्योरिटी आ गई होगी, लेकिन किसी भी कारण को पर्याप्त वही आधार नहीं माना जा सकता है। कई कारण और समाज में व्याप्त भेदभावपूर्ण स्थिति और सोच का ही परिणाम होगा कि पुरुष कितनी भी शादी या संबंध के बाद भी पाक ही माना जाए और औरत नापाक हो जाए। यह भी ध्यान देने लायक है कि लौकिक अर्थो में मर्यादित कहा जाने वाला पुरुष अगर कभी उच्छृंखल हो जाए, तब भी उसकी मर्यादा अक्षुण्ण रहती है। हमारे समाज में पुरुषों के अपनी पत्नियों के बहनों के साथ हंसी-मजाक से बढ़कर आगे के रिश्तों को तो वैधता मिली हुई है और यह सहजबोध आम है कि वह तो आधी घरवाली होती यह बात भी देखने में आती है कि अगर पहली पत्नी गुजर जाए तो मां-बाप भी उम्र के अंतर पर गौर किए बिना अपने दामाद से अपनी अविवाहित छोटी बेटी की शादी कराने में संकोच नहीं करते। (दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,28.1.10 में यथाप्रकाशित। लेखिका अंजलि सिन्हा स्त्री अधिकार संगठन से जुड़ी हैं।)

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