स्वागत

Monday, December 5, 2011

देवानंद की कहानी,नीरज की ज़ुबानी

सुबह सोकर उठा भी नहीं था कि मेरे मित्र मंजीत ने पुणे से फोन पर खबर दी। अवाक रह गया। मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि देव साहब इतनी जल्दी साथ छोड़ देंगे। वह चिर युवा थे। ..जोशीले इंसान। उनका न होना मेरी व्यक्तिगत क्षति है। अब मुझे फिल्म इंडस्ट्री में याद करने वाला कोई न रहा। उनके निधन से पूरी इंडस्ट्री सूनी हो गई है। छठे दशक की बात है। तब देव साहब मुंबई में रम-जम चुके थे और मैं नया-नवेला कवि। मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई मुंबई (1955-56) में कवि सम्मेलन के दौरान। देव साहब इस समारोह के मुख्य अतिथि थे। मेरे गीत उन्हें भा गए। जाते हुए मेरे पास रुके और बोले..नीरज, आइ लाइक यू। आइ वांट टू वर्क विद यू। मैं घर लौट आया। मैंने सोचा था कि वे मेरा नाम भी भूल गए होंगे। करीब 10 साल बाद 1965 में मुझे उनका एक खत मिला। फौरन मुंबई बुलाया था। वो फिल्म प्रेम पुजारी बनाने जा रहे थे। एसडी बर्मन भी उनके साथ थे। देव साहब का आदेश मिला..हमें नई फिल्म के लिए गाने चाहिए। छोटे-छोटे वाक्यों में सुख हो। पीड़ा भी झलके। रंगीलापन भी हो..। मैंने वहीं पर गाना लिखा..रंगीला रे..तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन.. ये लाइनें उन्हें बहुत पसंद आई। यहां देव साहब से नाता जुड़ा तो 45 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला। तेरे मेरे सपने, गैंबलर, छुपा रुस्तम जैसी कई फिल्में साथ कीं। देव साहब ने अभी चार्जशीट बनाई तो उसमें भी एक गाना इश्क भी तू..ईमान भी तू.. मुझसे ही लिखवाया। ये मेरी और उनकी आखिरी फिल्म थी। वह वचन के पक्के, सज्जन, स्पष्टवादी और नियम-संयम का पालन करने वाले थे। नए कलाकारों को भरपूर मान-सम्मान देने वाले इंडस्ट्री में अकेले शख्स। लोग एक दिन में रिश्ते भुला देते हैं, वे 10 साल पहले का वादा नहीं भूले। जिस वक्त उनकी फिल्में नहीं चल रही थीं, मैंने उनसे पूछा कि ऐसे में आप फिल्में बनाते ही क्यों हैं? उन्होंने कहा, मैं फिल्में सिर्फ पैसा कमाने के लिए नहीं बनाता। फिल्म बनती हैं तो भारत में भले नहीं चलतीं, विदेशों में इतना कारोबार तो हो ही जाता है कि प्रोडक्शन यूनिट का खाना-खर्चा चल जाता है। एक देव साहब ही थे, जो मुझसे गीत लिखवा लेते थे। उनके बहाने इंडस्ट्री के दूसरे कलाकारों से जुड़ाव है। वे नए लोगों के लिए सच्चे मार्गदर्शक थे। शत्रुघ्न सिन्हा, जैकी श्रॉफ, जीनत अमान, टीना मुनीम..तमाम लोगों को मौका देने वाले वही थे। मेरी तो बस यही प्रार्थना है कि देव साहब के साथ ही मेरा अगला जन्म हो। फिर प्रेमभाव से साथ रहें, जिएं। कुछ काम करें(दैनिक जागरण,दिल्ली,5.12.11)।

7 comments:

  1. देव साहब को विनम्र श्रधांजलि !
    भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे !

    ReplyDelete
  2. विनम्र श्रधांजलि ||
    देवानंद पर इक सुन्दर
    सामायिक प्रस्तुति ||
    बहुत बहुत आभार ||

    ReplyDelete
  3. आपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट ' आरसी प्रसाद सिंह ' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  4. I honestly enjoyed reading through your article and reviewing your fresh ideas. I have to tell you, you make sense to me. I respect your views and believe you to be a very persuasive writer.

    From Great talent

    ReplyDelete
  5. achchi lagi ye prastuti...devanand ji ko hardik shrdanjali
    welcome to my blog..

    ReplyDelete
  6. अभी अभी देव साहब की जीवनी "रोमांसिंग विद लाइफ" पढ़ कर ख़तम की है...क्या झुझारू प्रकृति के इंसान थे वो...गज़ब...उनसा न कोई हुआ है और न कोई दूसरा होगा.


    नीरज

    ReplyDelete

न मॉडरेशन की आशंका, न ब्लॉग स्वामी की स्वीकृति का इंतज़ार। लिखिए और तुरंत छपा देखिएः