हिंदी फिल्म संगीत का सुनहरा दौर एक अर्से पहले बीत चुका है, पर उसका जादू आज भी बरकरार है। पचास और साठ के दशक के गीत-संगीत ने जिस तरह लोगों के दिलों पर राज किया और दुनियाभर में इसकी धूम मची, उसकी मिसाल आज भी देखने-सुनने को मिल जाती है। ऎसी ही एक मिसाल पिछले दिनों पडोसी देश में देखने को मिली। हिंदी सिनेमा के गुणी और वरिष्ठ संगीतकार रवि को उनके 84वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में श्रीलंका की सरकार और आम जनता ने जो इज्जत और सम्मान दिया है, वह बिरले ही लोगों को नसीब होता है। रवि श्रीलंका में सम्मानित होने वाली पहली भारतीय हस्ती हैं। हिंदी सिनेमा में उनके विशिष्ट योगदान के लिए इस राजकीय सम्मान का आयोजन राजधानी कोलंबो में श्रीलंका के संस्कृति मंत्रालय और ओल्ड हिंदी फिल्म सॉन्ग्स लवर्स सोसाइटी ने मिलकर किया था। श्रीलंका के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रियों के साथ वहां के आम लोगों ने बडी तादाद में रवि के सम्मान में शिरकत की। वहां के जन समुदाय में रवि और उनका गीत-संगीत किस कदर लोकप्रिय है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके ज्यादातर गीतों को उन्हीं धुनों पर सिंहली भाषा में डब कर दिया गया है।
श्रीलंका में दस दिनों के प्रवास के दौरान रवि के मान-सम्मान में वहां की सरकार और जनता ने पलकें बिछा दी और किसी चेहेते राजा-महाराजा की तरह आदर-सत्कार दिया। सात मार्च को आयोजित किए गए विशेष सम्मान समारोह और अलग-अलग दिन आयोजित किए गए तमाम दूसरे कार्यक्रमों में श्रीलंका के कलाकारों ने रवि के संगीत से सजे गीतों को हिंदी भाषा और लगभग हर गीत में अपनी सिंहली भाषा में जिस तरह एक अंतरा जोडकर पेश किया, वह अद्भुत प्रयोग था। 'चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं....', 'चौदहवीं का चांद हो....', 'बाबुल की दुआएं लेती जा...', 'ऎ मेरी जोहराजबीं...', 'वफा जिनसे की बेवफा हो गए...', 'नीले गगन के तले....' जैसे ढेर सारे यादगार गीतों को जिस खूबसूरती से पेश किया गया, वह लाजवाब था। हिंदी फिल्म संगीत को हिंदुस्तान ही नहीं, दुनियाभर में पॉपुलर बनाने में रेडियो सीलोन का सबसे ज्यादा योगदान रहा है। इस रेडियो चैनल के मौजूदा उद्घोष्ाक और स्टाफ ने भी रवि का स्वागत किया और उन्हें अपना स्टूडियो और विशिष्ट संगीत लाइब्रेरी का अवलोकन करवाया।
लता मंगेशकर, मुहम्मद रफी, मुकेश, मन्ना डे, महेंद्र कपूर और आशा भोसले के गाए वे तमाम गीत आज भी जिस तरह से लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए हुए है, वह दरअसल उन गीतों की सुरीली धुनों का ही परिणाम है, जिन्हें रवि और उन जैसे महान संगीतकारों ने सजाया और संवारा है। वक्त चाहे कितनी भी करवटें ले ले, संगीत के कितने ही दौर आते-जाते रहे, पीढियां बदलती जाएं, पर हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम काल का गीत-संगीत हमेशा कालजयी रहेगा। रवि जैसे प्रतिभाशाली और गुणी संगीतकार का सिने संगीत में जो यादगार योगदान रहा है, हमारी सरकार को उसी के मुताबिक पद्मभूषण, पद्मविभूषण या फालके अवार्ड से उन्हें सम्मानित करने में देरी नहीं करनी चाहिए। दूसरे देशों में जब हमारे संगीत के सितारे इस कदर पूजे जाते हों, तब अपने ही देश में उन्हें यथोचित राष्ट्रीय अलंकरण से अलग रखना ठीक नहीं है(राजीव श्रीवास्तव,राजस्थान पत्रिका,17 अप्रैल,2010)
No comments:
Post a Comment
न मॉडरेशन की आशंका, न ब्लॉग स्वामी की स्वीकृति का इंतज़ार। लिखिए और तुरंत छपा देखिएः