हास्य फिल्मों के हाउसफुल जाने का सिलसिला बहुत पुराना है। हृषिकेश मुखर्जी,मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा के बाद,हाल के वर्षों में प्रियदर्शन और हीरानी ने अच्छी हास्य फिल्में बनाई हैं। डेविड धवन की ब्रेनलेस हास्य वाली कुछ फिल्मों ने भी ज़बरदस्त बिजनेस किया है। इसी क्रम में ताजा प्रयास है- हे बेबी के निर्देशक साजिद खान का हाउसफुल। अक्षय कुमार,रितेश देशमुख, दीपिका पादुकोण, लारा दत्ता, बोमन ईरानी, अर्जुन रामपाल, जिया खान, रणधीर कपूर,चंकी पांडे और मलाइका अरोड़ा अभिनीत इस फिल्म में गीत है समीर और अमिताभ भट्टाचार्य का। 155 मिनट की इस फिल्म को सेंसर ने दिया है यू/ए सर्टिफिकेट।
यह कहानी है लूजर अक्षय कुमार की जिसे यकीन है कि सच्चा प्यार मिलने से उसकी बदनसीबी दूर होगी। मगर जब-जब वह प्यार में पड़ता है,बदनसीबी दस्तक देती है और प्रेमिका उसे छोड़ कर चल देती है। फिर उसे मिलती है दीपिका जो उससे प्यार भी करती है मगर दीपिका को उसके भाई-मिलीट्रीमैन अर्जुन रामपाल के चंगुल से कैसे छुड़ाया जाए और रितेश-लारा के बुने झूठ से कैसे निकला जाए,पूरी कहानी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है।
अच्छी स्टोरी,कसा स्क्रीनप्ले और मधुर संगीत मनोरंजन के लिए ज़रूरी होता है। मगर यह मूवी दर्शकों को निराश करती है। वेब दुनिया लिखता है कि साजिद खान ने एंटरटेनमेंट के नाम पर कुछ ज्यादा ही छूट ले ली है। स्टेट्समैन में एम.पॉल ने लिखा है कि फिल्म की प्रस्तुति समझ से परे और बहुत थका देने वाली है और कहानी का अंदाजा पहले ही लग जाता है। मेल टुडे में विनायक चक्रवर्ती लिखते हैं कि फिल्म में फिक्शन का तत्व दीपिका की कमर से भी पतला है। हिंदुस्तान में विशाल ठाकुर ने भी माना है कि एक बदकिस्मत इंसान और पनौती के फर्क को दिखाने में पूरी ईमानदारी नहीं बरती गई है। राजस्थान पत्रिका में रामकुमार सिंह ने तो यहां तक लिखा है कि साजिद खान जितने सतही और कामचलाऊ हास्यबोध वाले कलाकार टीवी पर नज़र आते हैं, उसी छवि का विस्तार उन्होंने अपनी फिल्म में किया है।
फिल्म में अक्षय पंजाबी ,दीपिका और अर्जुन रामपाल तेलुगू, रितेश मराठी,लिलेट दुबे उर्दू, जिया खान सिंधी और बोमन इरानी गुजराती शैली में बोलते हैं। लारा दत्ता की हिंदी पर भी गुजराती शैली का प्रभाव है। चंकी पांडे इटालियन शैली में हाजिर हैं। मगर इतनी वेरायटी के बावजूद बात नहीं बनी। इंडियन एक्सप्रेस में शुभ्रा गुप्ता को किसी का अभिनय पसंद नहीं आया। खासकर अक्षय से वे पूछती हैं कि आख़िर वे कब तक एक जैसे रोल करते रहेंगे। दैनिक जागरण में अजय ब्रह्मात्मज को अक्षय,रितेश और लारा की एक्टिंग पसंद आई है और उन्हें दीपिका तथा जिया खान ने निराश किया है। दूसरी तरफ,वेबदुनिया को लारा और जिया पर दीपिका की एक्टिंग भारी पड़ती दिखी। वेबदुनिया को अर्जुन रामपाल हैंडसम नज़र आए हैं। दैनिक भास्कर में राजेश यादव को भी अर्जुन रामपाल का काम संजीदा लगा है। मगर नवभारत टाइम्स में चंद्रमोहन शर्मा को अर्जुन रामपाल हंसाने की बजाए टेंशन देकर चले गए। उन्हें सारी हीरोइनें अभिनय की बजाए ब्यूटी परोसती नज़र आईं। हिंदुस्तान में विशाल ठाकुर को रितेश के अभिनय में वेरायटी नज़र आई है। टाइम्स ऑफ इँडिया में निखत काजमी और राजेश यादव ने अक्षय और रितेश की एक्टिंग पसंद की है। रामकुमार सिंह को चंकी पांडे जोकर लगे। हाँ,बोमन ईरानी और लिलेट दुबे के अभिनय की सबने जी खोल के तारीफ की है।
शंकर-एहसान-लॉय की तिकड़ी कोई कमाल नहीं दिखा पाई । निखत काजमी,चंद्रमोहन शर्मा,विशाल ठाकुर,राजेश यादव और वेबदुनिया को अपनी तो जैसे तैसे का फिल्मांकन और नृत्य संयोजन लाजवाब लगा है मगर रामकुमार सिंह,विनायक चक्रवर्ती और अजय ब्रह्मात्मज को यह प्रस्तुति आकर्षक नहीं लगी है। शर्मा जी ने और रामकुमार जी ने वॉल्यूम कम कर पप्पा जग जाएगा को भी सुनने लायक बताया है। निखत काजमी और वेबदुनिया की टिप्पणी है कि फिल्म के गाने सिर्फ देखते समय ही अच्छे लगते हैं। विशाल ठाकुर ने ओ गर्ल यू आर माइन को पसंद किया है।
शुभ्रा गुप्ता लिखती हैं कि ऐसी फिल्मों में नॉन-स्टॉप हंसी का माहौल बनाए रखा जाता है ताकि दर्शकों का ध्यान अन्य पहलुओं पर जा ही न पाए और एक्टर भी ऐसे चाहिए जो हंसा सकें। मगर फिल्म बोझिल है-खासकर इंटरवल के बाद। लिहाजा उन्होंने दिये सिर्फ दो स्टार। अजय ब्रह्मात्मज ने भी माना है कि कुछ दृश्य गुदगुदाते तो हैं मगर जब तक आप हंसे,दृश्य गिर जाते हैं। उन्होंने इसे कॉमेडी के नाम पर एरर बताते हुए सिर्फ दो स्टार दिये हैं। हिंदुस्तान टाइम्स में मयंक शेखर लिखते हैं कि साजिद खान ने जिन फिल्मकारों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है,वे बीच में ही कहीं खो गए लगते हैं। उन्होंने भी इसे दो स्टार के ही लायक माना है। विनायक चक्रवर्ती कहते हैं कि साजिद खान ने अपनी प्रेरणा का स्त्रोत जिन सात लोगों को बताया है,उनमें डेविड धवन का नाम नहीं है जबकि हास्य के लिए कई शादियों के फार्मूले को डेविड धवन कई साल पहले,साजन चले ससुराल में आजमा चुके हैं। उन्होंने इसे नो-ब्रेनर सर्कस करार दिया है जिसमें कुत्ते,बाघ और बंदर ने ऐसी एक्टिंग की है मानो स्क्रिप्ट की बाकी अभिनेताओं से बेहतर समझ उन्हें ही रही हो। उनकी ओर से फिल्म को मिले ढाई स्टार। वेबदुनिया के अनुसार,इसमें उम्मीद के मुताबिक धमाल न सही,मगर टाइमपास होने लायक मसाला है और फिल्म को अश्लीलता तथा फूहड़ता से भी बचाए रखा गया है,लिहाजा-ढाई स्टार। स्टेट्समैन में एम.पॉल ने लिखा है कि यह फिल्म हे बेबी से कहीं बेहतर है मगर क्लाइमैक्स से बहुत पहले चुक जाती है। फिर भी,चूंकि इसमें कई मज़ेदार वन-लाइनर हैं इसलिए उनकी ओर से भी ढाई स्टार। राजेश यादव को उम्मीद है कि आईपीएल के बाद यह फिल्म सचमुच हाउसफुल जा सकती है क्योंकि इस में कई ऐसी बातें है जो सिनेमाहॉल में दर्शक का भरपूर मनोरंजन करती हैं। सो उनकी तरफ से मिले तीन स्टार। निखत काजमी को लगता है कि यह फिल्म आईपीएल से मुक्त हो चुके दर्शकों को पूरी तरह पसंद नहीं आएगी मगर इसमें हास्य के तत्व हैं,इसलिए तीन स्टार।चंद्रमोहन शर्मा के अनुसार, इस फिल्म में हर वह मसाला है जिसे बॉक्स ऑफिस पर हमेशा हिट माना गया है। कहानी का भटकाव तो उन्होंने भी स्वीकार किया है मगर यह मानते हुए कि हिंदी फिल्म में कहीं भी कुछ हो सकता है की मानसिकता से देखने पर फिल्म एंज्वॉयमेंट देती है,इसे सर्वाधिक साढे तीन स्टार दिए हैं। विशाल ठाकुर ने भी इस फिल्म में कॉमेडी के डोज को "टाइमपास से ज्यादा" बताते हुए मस्त श्रेणी के ठीक बीचोबीच रखा है जिसे साढे तीन स्टार माना जा सकता है। अंत में, रामकुमार सिंह की टिप्पणी जो लिखते हैं कि अगर आपको यह भ्रम है कि बडे बैनर और अक्षय कुमार जैसे स्टार के साथ रिलीज यह फिल्म महीनों बाद की बॉक्स ऑफिस की मायूसी तोडने वाली साबित होगी तो आप सही हैं लेकिन आपकी खुशी उतनी देर तक रहेगी जब तक आप थियेटर के बाहर हैं।
यह कहानी है लूजर अक्षय कुमार की जिसे यकीन है कि सच्चा प्यार मिलने से उसकी बदनसीबी दूर होगी। मगर जब-जब वह प्यार में पड़ता है,बदनसीबी दस्तक देती है और प्रेमिका उसे छोड़ कर चल देती है। फिर उसे मिलती है दीपिका जो उससे प्यार भी करती है मगर दीपिका को उसके भाई-मिलीट्रीमैन अर्जुन रामपाल के चंगुल से कैसे छुड़ाया जाए और रितेश-लारा के बुने झूठ से कैसे निकला जाए,पूरी कहानी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है।
अच्छी स्टोरी,कसा स्क्रीनप्ले और मधुर संगीत मनोरंजन के लिए ज़रूरी होता है। मगर यह मूवी दर्शकों को निराश करती है। वेब दुनिया लिखता है कि साजिद खान ने एंटरटेनमेंट के नाम पर कुछ ज्यादा ही छूट ले ली है। स्टेट्समैन में एम.पॉल ने लिखा है कि फिल्म की प्रस्तुति समझ से परे और बहुत थका देने वाली है और कहानी का अंदाजा पहले ही लग जाता है। मेल टुडे में विनायक चक्रवर्ती लिखते हैं कि फिल्म में फिक्शन का तत्व दीपिका की कमर से भी पतला है। हिंदुस्तान में विशाल ठाकुर ने भी माना है कि एक बदकिस्मत इंसान और पनौती के फर्क को दिखाने में पूरी ईमानदारी नहीं बरती गई है। राजस्थान पत्रिका में रामकुमार सिंह ने तो यहां तक लिखा है कि साजिद खान जितने सतही और कामचलाऊ हास्यबोध वाले कलाकार टीवी पर नज़र आते हैं, उसी छवि का विस्तार उन्होंने अपनी फिल्म में किया है।
फिल्म में अक्षय पंजाबी ,दीपिका और अर्जुन रामपाल तेलुगू, रितेश मराठी,लिलेट दुबे उर्दू, जिया खान सिंधी और बोमन इरानी गुजराती शैली में बोलते हैं। लारा दत्ता की हिंदी पर भी गुजराती शैली का प्रभाव है। चंकी पांडे इटालियन शैली में हाजिर हैं। मगर इतनी वेरायटी के बावजूद बात नहीं बनी। इंडियन एक्सप्रेस में शुभ्रा गुप्ता को किसी का अभिनय पसंद नहीं आया। खासकर अक्षय से वे पूछती हैं कि आख़िर वे कब तक एक जैसे रोल करते रहेंगे। दैनिक जागरण में अजय ब्रह्मात्मज को अक्षय,रितेश और लारा की एक्टिंग पसंद आई है और उन्हें दीपिका तथा जिया खान ने निराश किया है। दूसरी तरफ,वेबदुनिया को लारा और जिया पर दीपिका की एक्टिंग भारी पड़ती दिखी। वेबदुनिया को अर्जुन रामपाल हैंडसम नज़र आए हैं। दैनिक भास्कर में राजेश यादव को भी अर्जुन रामपाल का काम संजीदा लगा है। मगर नवभारत टाइम्स में चंद्रमोहन शर्मा को अर्जुन रामपाल हंसाने की बजाए टेंशन देकर चले गए। उन्हें सारी हीरोइनें अभिनय की बजाए ब्यूटी परोसती नज़र आईं। हिंदुस्तान में विशाल ठाकुर को रितेश के अभिनय में वेरायटी नज़र आई है। टाइम्स ऑफ इँडिया में निखत काजमी और राजेश यादव ने अक्षय और रितेश की एक्टिंग पसंद की है। रामकुमार सिंह को चंकी पांडे जोकर लगे। हाँ,बोमन ईरानी और लिलेट दुबे के अभिनय की सबने जी खोल के तारीफ की है।
शंकर-एहसान-लॉय की तिकड़ी कोई कमाल नहीं दिखा पाई । निखत काजमी,चंद्रमोहन शर्मा,विशाल ठाकुर,राजेश यादव और वेबदुनिया को अपनी तो जैसे तैसे का फिल्मांकन और नृत्य संयोजन लाजवाब लगा है मगर रामकुमार सिंह,विनायक चक्रवर्ती और अजय ब्रह्मात्मज को यह प्रस्तुति आकर्षक नहीं लगी है। शर्मा जी ने और रामकुमार जी ने वॉल्यूम कम कर पप्पा जग जाएगा को भी सुनने लायक बताया है। निखत काजमी और वेबदुनिया की टिप्पणी है कि फिल्म के गाने सिर्फ देखते समय ही अच्छे लगते हैं। विशाल ठाकुर ने ओ गर्ल यू आर माइन को पसंद किया है।
शुभ्रा गुप्ता लिखती हैं कि ऐसी फिल्मों में नॉन-स्टॉप हंसी का माहौल बनाए रखा जाता है ताकि दर्शकों का ध्यान अन्य पहलुओं पर जा ही न पाए और एक्टर भी ऐसे चाहिए जो हंसा सकें। मगर फिल्म बोझिल है-खासकर इंटरवल के बाद। लिहाजा उन्होंने दिये सिर्फ दो स्टार। अजय ब्रह्मात्मज ने भी माना है कि कुछ दृश्य गुदगुदाते तो हैं मगर जब तक आप हंसे,दृश्य गिर जाते हैं। उन्होंने इसे कॉमेडी के नाम पर एरर बताते हुए सिर्फ दो स्टार दिये हैं। हिंदुस्तान टाइम्स में मयंक शेखर लिखते हैं कि साजिद खान ने जिन फिल्मकारों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है,वे बीच में ही कहीं खो गए लगते हैं। उन्होंने भी इसे दो स्टार के ही लायक माना है। विनायक चक्रवर्ती कहते हैं कि साजिद खान ने अपनी प्रेरणा का स्त्रोत जिन सात लोगों को बताया है,उनमें डेविड धवन का नाम नहीं है जबकि हास्य के लिए कई शादियों के फार्मूले को डेविड धवन कई साल पहले,साजन चले ससुराल में आजमा चुके हैं। उन्होंने इसे नो-ब्रेनर सर्कस करार दिया है जिसमें कुत्ते,बाघ और बंदर ने ऐसी एक्टिंग की है मानो स्क्रिप्ट की बाकी अभिनेताओं से बेहतर समझ उन्हें ही रही हो। उनकी ओर से फिल्म को मिले ढाई स्टार। वेबदुनिया के अनुसार,इसमें उम्मीद के मुताबिक धमाल न सही,मगर टाइमपास होने लायक मसाला है और फिल्म को अश्लीलता तथा फूहड़ता से भी बचाए रखा गया है,लिहाजा-ढाई स्टार। स्टेट्समैन में एम.पॉल ने लिखा है कि यह फिल्म हे बेबी से कहीं बेहतर है मगर क्लाइमैक्स से बहुत पहले चुक जाती है। फिर भी,चूंकि इसमें कई मज़ेदार वन-लाइनर हैं इसलिए उनकी ओर से भी ढाई स्टार। राजेश यादव को उम्मीद है कि आईपीएल के बाद यह फिल्म सचमुच हाउसफुल जा सकती है क्योंकि इस में कई ऐसी बातें है जो सिनेमाहॉल में दर्शक का भरपूर मनोरंजन करती हैं। सो उनकी तरफ से मिले तीन स्टार। निखत काजमी को लगता है कि यह फिल्म आईपीएल से मुक्त हो चुके दर्शकों को पूरी तरह पसंद नहीं आएगी मगर इसमें हास्य के तत्व हैं,इसलिए तीन स्टार।चंद्रमोहन शर्मा के अनुसार, इस फिल्म में हर वह मसाला है जिसे बॉक्स ऑफिस पर हमेशा हिट माना गया है। कहानी का भटकाव तो उन्होंने भी स्वीकार किया है मगर यह मानते हुए कि हिंदी फिल्म में कहीं भी कुछ हो सकता है की मानसिकता से देखने पर फिल्म एंज्वॉयमेंट देती है,इसे सर्वाधिक साढे तीन स्टार दिए हैं। विशाल ठाकुर ने भी इस फिल्म में कॉमेडी के डोज को "टाइमपास से ज्यादा" बताते हुए मस्त श्रेणी के ठीक बीचोबीच रखा है जिसे साढे तीन स्टार माना जा सकता है। अंत में, रामकुमार सिंह की टिप्पणी जो लिखते हैं कि अगर आपको यह भ्रम है कि बडे बैनर और अक्षय कुमार जैसे स्टार के साथ रिलीज यह फिल्म महीनों बाद की बॉक्स ऑफिस की मायूसी तोडने वाली साबित होगी तो आप सही हैं लेकिन आपकी खुशी उतनी देर तक रहेगी जब तक आप थियेटर के बाहर हैं।
बहुत ही विस्तृत समीक्षा।
ReplyDeleteye sahi hai ..sare akhbaron ka lekha jokha ek jagah mil ja raha hai .. shuqriya..
ReplyDeleteआभार इस समीक्षा का.
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