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Thursday, May 20, 2010

बचपन के सीखे से जीवन भर मिलती है मददःकोंकणा

दोस्तो, जिस तरह से आप अपनी स्कूल की छुट्टियों में खूब मजे कर रहे होंगे उसी तरह मुझे भी बचपन में अपनी छुट्टियाँ बहुत अच्छी लगती थीं। इन दिनों में ही तो तरह-तरह के नए काम करने के आइडिया दिमाग में आते हैं और हमारे अंदर क्रिएटिविटी भी इन्हीं दिनों में आती है। आप सभी इन छुट्टियों में तरह-तरह की चीजें पढ़ना। मुझे कहानियाँ पढ़ने का बहुत शौक था और मैं गर्मी की छुट्टियों में नॉवेल और मजेदार कहानियाँ पढ़ती थी।

दोस्तो, मेरा जन्म दिल्ली में हुआ, पर मैं पली-बढ़ी कोलकाता में। हम भाई-बहनों की एक बड़ी गैंग हुआ करती थी जिनमें से कुछ तो बहुत शैतानी करते थे। मेरा नाम शैतानी करने वालों की लिस्ट में ही रहता था। दोपहर में हम अपने परिसर और अपार्टमेंट में खूब खेलते थे और जब भी मौका मिलता था तो चौराहे पर जाकर पुचका और भेलपुरी खाते थे। हमें चौराहे की चीजें खाने से मना किया जाता था, पर चटपटी चीजें खाने का हमारा खूब मन करता था तो हम चोरी-चुपके खाते थे।

मेरी स्कूल की पढ़ाई मॉडर्न हाईस्कूल कोलकाता से हुई। मेरी बहन जो मुझसे १० साल बड़ी थी उसकी पढ़ाई भी इसी स्कूल से हुई थी। यहाँ मैंने आठवीं तक की पढ़ाई की और इसके बाद कीदोस्तो, मेरा जन्म दिल्ली में हुआ, पर मैं पली-बढ़ी कोलकाता में। हम भाई-बहनों की एक बड़ी गैंग हुआ करती थी जिनमें से कुछ तो बहुत शैतानी करते थे। मेरा नाम शैतानी करने वालों की लिस्ट में ही रहता था। दोपहर में हम अपने परिसर और अपार्टमेंट में खूब खेलते थे और जब भी मौका मिलता था तो चौराहे पर जाकर पुचका और भेलपुरी खाते थे। हमें चौराहे की चीजें खाने से मना किया जाता था, पर चटपटी चीजें खाने का हमारा खूब मन करता था तो हम चोरी-चुपके खाते थे।

मेरी स्कूल की पढ़ाई मॉडर्न हाईस्कूल कोलकाता से हुई। मेरी बहन जो मुझसे १० साल बड़ी थी उसकी पढ़ाई भी इसी स्कूल से हुई थी। यहाँ मैंने आठवीं तक की पढ़ाई की और इसके बाद की पढ़ाई कलकत्ता इंटरनेशनल स्कूल से पूरी की। स्कूल में मेरे खूब दोस्त हुआ करते थे। इन दोस्तों के साथ स्कूल में पढ़ाई, खेलकूद और मस्ती की बहुत सारी घटनाएँ आज भी याद आती हैं। मुझे छुट्टियाँ खत्म होने के बाद फिर से स्कूल जाना बहुत अखरता था। मैं हमेशा यह सोचती थी कि ये छुट्टियाँ जल्दी क्यों खत्म हो जाती हैं। आपकी छुट्टियाँ भी खत्म हो रही होंगी तो जल्दी-जल्दी आराम या कोई नया काम कर लो। वरना एक बार छुट्टियाँ खत्म तो समझो कि पढ़ाई और स्कूल शुरू।

वैसे दोस्तो, मेरे दूसरे स्कूल कलकत्ता इंटरनेशनल में पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियाँ बहुत होती थीं। वहीं मैंने ब्रिटिश काउंसिल ड्रामा कॉम्पीटिशन में भाग लिया था। यहाँ एक्ंिटग की वर्कशॉप भी होती थी जिनमें मैं भाग लेती थी। एक खास बात जो मैं आपसे कहना चाहती हूँ वह यह कि मुझे बहुत-सी चीजें सिखाने में मम्मी बहुत रुचि लेती थीं। मम्मी ने मुझे नाटक और कविता के बारे में बताया। उनसे बातें करके मुझे बहुत-सी नई जानकारियाँ मिलती थीं। वे मुझे कथक और रवीन्द्र संगीत सीखने के लिए अलग से क्लासेस में भी भेजती थी। मैं मम्मी को स्टेज पर अभिनय करते हुए देखती थी और उनसे सीखती भी थी। एक बार मैं उनके साथ मॉस्को फिल्म फेस्टिवल भी गई थी। इस समय मेरी उम्र सिर्फ १० साल की थी।

दोस्तो, मुझे बाबा से भी बहुत प्यार है। मुझे याद है जब मैं छोटी थी तो देखती थी कि बाबा को जानवरों से बहुत लगाव हैं। उन्हें जानवर पालने का बहुत शौक था। उन्होंने एक कछुआ भी पाला था जिसका नाम हमने कालिदास रखा था। जब भी कभी घर में लाइट चली जाती थी तो कालिदास के ऊपर हम एक मोमबत्ती लगा देते थे। जब वह चलता तो मोमबत्ती भी इधर से उधर चलती थी। यह देखकर हमें खूब मज़ा आता था। वैसे,हम इस बात का पूरा ध्यान भी रखते थे कि हमारी वजह से किसी भी जानवर को कोई नुकसान न उठाना पड़े। बाबा ने हमें यह बात सिखाई थी कि जानवरों का ख्याल रखोगे तो वे भी तुम्हें प्यार करेंगे।

प्यारे दोस्तो,मुझे पता नहीं था कि पढाई के अलावा सीखी गई दूसरी चीजें आगे चलकर कितना काम आएंगी। अभिनेत्री बनने के बाद मैं पाती हूं कि बचपन के दिनों में हम जो कुछ भी सीखते हैं,उससे हमें पूरे जीवन में बहुत मदद मिलती है। इसलिए इन दिनों आपकी रूचि जिस किसी भी विषय में है,उस पर ज़रूर मेहनत करना। मेरी शुभकामना आपके साथ है( स्पेक्ट्रम,नई दुनिया,मई प्रथम अंक से)

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