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Thursday, September 30, 2010

लताजी का माधुर्य स्वयं एक धर्म है

लता मंगेशकर के जन्म के शायद पंद्रह महीने बाद ही भारतीय फिल्में सवाक हुईं। यह विज्ञान का मत है कि गर्भस्थ शिशु देखने के पहले शायद पांचवें महीने में सुनने लगता है। इसी कारण अभिमन्यु ने गर्भस्थ अवस्था में चक्रव्यूह के भेदन के बारे में सुना और सीखा, परंतु जब उनके पिता उससे बाहर निकलने की बात कर रहे थे, तब तक माता को नींद आ चुकी थी। इसी तरह भारतीय सिने संगीत की आत्मा लताजी भी सिनेमा में ध्वनि आने से पहले का शंखनाद हैं, गोयाकि सिनेमाई ध्वनि का गर्भस्थ शिशु लताजी ही हैं।

आज से सौ साल बाद के लोग जितने अविश्वास के साथ गांधी नामक अवतार की बात करेंगे, उतनी ही अविश्वसनीय एवं चमत्कारी उन्हें लताजी की आवाज लगेगी। उस कोलाहल वाले युग में यह माधुर्य उन्हें अविश्वसनीय ही लगेगा। कुछ इस तरह के आकलन भी होंगे कि लता नामक पेटेंटेड ब्रांड की ध्वनि को कंप्यूटर आदि यंत्रों की मदद से दस हजार गानों में इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि उस युग में एक ही व्यक्ति द्वारा इतने मधुर गीत गाए जाना उन्हें असंभव लगेगा। बीसवीं सदी मनुष्य इतिहास की विलक्षण सदी थी क्योंकि उसमें गुजश्ता सारी सदियों के आविष्कारों के टोटल से ज्यादा आविष्कार हुए और अजीब बात यह है कि इतने विकास वाली सदी में सबसे भयावह दो महायुद्ध और उनसे भी ज्यादा हानि पहुंचाने वाले अनेक छोटे युद्ध हुए हैं। सड़क और रेल तथा वायु दुर्घटनाओं में अकाल मृत्यु पाने वालों की संख्या विश्वयुद्ध के मृतकों से अधिक है, गोयाकि आविष्कार और विनाश लीलाएं ऐसे साथ-साथ चली हैं मानो तांडव और आनंद साथ-साथ किए गए हों।

इसी विलक्षण सदी में अनेक देशों में आजादी का पथ प्रशस्त किया महात्मा गांधी ने और जख्मी रूहों को सुकून दिया लताजी की आवाज ने। उनकी आवाज ने कई लोगों के लिए औषधि का काम किया। ‘मदर इंडिया’ के लिए प्रसिद्ध फिल्मकार मेहबूब खान लंदन में इलाज करा रहे थे। उनका रक्तचाप नियंत्रण से बाहर था और अनिद्रा रोगों को खतरनाक बना रही थी। मेहबूब खान ने आधी रात (भारतीय समयानुसार) को लताजी से फोन पर ‘रसिक बलमा’ (फिल्म ‘चोरी चोरी’) सुनाने को कहा। गीत सुनकर वह सो गए और गोरे डॉक्टरों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि रक्तचाप भी नियंत्रित हो गया।

संसार के असंख्य लोगों ने अपने व्यक्तिगत जीवन के कठिनतम समय में लताजी के गीत सुनकर नई शक्ति पाई है। पांचवें दशक में द्रविड़ मुनेत्र कषगम के आंदोलन के कारण हिंदी विरोधी लहर के समय भी दक्षिण के अनेक लोगों ने लताजी के गीतों के कारण हिंदी सीखी। आज के बाजार शासित युग में अनेक क्लेश ऐसे होते हैं कि मनुष्य विचलित हो जाता है। ऐसी अस्थिरता की अवस्था में लताजी का ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ सुनकर ठहराव आ जाता है। लताजी ने खाड़ी देशों में अपने एक कार्यक्रम के प्रारंभ में ईश्वर वंदना के बाद यह गीत गाया और सारे श्रोता माधुर्य में डूब गए। लताजी को सलाह दी गई थी कि इस धार्मिक गीत का खाड़ी देश में क्या काम! दरअसल माधुर्य स्वयं एक मानव धर्म है और उसे अन्य धर्र्मो के साथ जोड़ने से ज्यादा पागलपन और क्या हो सकता है।

किसी अन्य दशक से ज्यादा आज के समय में लताजी के गीत बार-बार सुनकर ही स्वयं की सैनिटी को अक्षुण्ण रखा जा सकता है। इस नश्वर संसार में ध्वनि ही कभी नष्ट नहीं होती। वह ब्रह्मांड में चारों ओर घूमती है और शायद ध्वनि ही मनुष्य का एकमात्र कवच है। लता होने का अर्थ और महत्व शब्दों व व्याख्याओं से परे है(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,28.9.2010)।

1 comment:

  1. स्वर साम्राज्ञी को नमन। बहुत अच्छी प्रस्तुति। भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
    मध्यकालीन भारत धार्मिक सहनशीलता का काल, मनोज कुमार,द्वारा राजभाषा पर पधारें

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