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Wednesday, May 12, 2010

नाकामी से बड़ा गुरू नहीं-महेश भट्ट

कुमार गौरव और राहुल राय के साथ क्या हुआ। दोनों की ही पहली फिल्में सुपरहिट रहीं। इसके बाद अचानक वे कहां गुम हो गए, किसी ने नहीं सुना। कई बार असफलता सफलता के मुखौटे में आपके दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाती है। अगर ऐसा नहीं होगा तो कौन असफलता के लिए अपना दरवाजा खोलेगा। सफलताओं की जमीन पर रचे-बसे समाज में असफलता को घृणा के नजरिये से देखा जाता है। हालांकि, ऐसे समाज में असफलता की चुनौती कुछ ज्यादा ही सामने आती है। सफलता अपने साथ किसी की असफलता पर मजाक उड़ाने की प्रवृति भी लेकर आती है। एक बार बिल गेट्स ने कहा था कि सफलता बहुत ही खराब गुरु है। यह ज्यादातर बुद्धिमान लोगों में इस भावना को बढ़ावा देती है कि वे कभी असफल नहीं हो सकते। अगर आप इस बात पर विश्वास नहीं करना चाहते तो सफलता के शिखर पर झंडे गाड़ने वाले आईपीएल के पूर्व आयुक्त ललित मोदी के बारे में ध्यान से सोचें। मोदी ने आईपीएल से देश ही नहीं विश्वभर में अपना परचम लहराया। खेल के क्षेत्र में वह सूर्य की तरह चमक रहे थे। अंत में मोदी को भी नुकसान उठाना ही पड़ा। 19वीं सदी के आखिर में भारतीय जनता पार्टी शक्ति और सत्ता के किले पर पहुंच गई थी। पार्टी और उसके समर्थकों को भरोसा हो चला था कि अब उसे कोई भी इस किले से बेदखल नहीं कर सकता। आज यही राजनीतिक पार्टी ऐसे धरातल की तलाश में संघर्ष कर रही है जहां से वह सफलता के दूसरे दौर के लिए उड़ान भर सके। कई पार्टियों का मिलाजुला संस्करण यूपीए शायद एनडीए के हालात से सबक नहीं ले रहा है। अगर यूपीए एनडीए की स्थिति से कुछ नहीं सीख पाया तो निश्चित तौर पर उसका भविष्य भी अच्छा नहीं होगा। सेना की एक पुरानी कहावत है कि सबसे कमजोर पहलू सफलता का पीछा करता रहता है। युद्ध के दौरान हारने की भावना पर काबू पाना खासा मुश्किल होता है। ऐसे में गहरी सांस लें और खुद को संयमित कर अगली पहाड़ी के युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाएं। फिल्मी दुनिया के मेरे अनुभव के मुताबिक यह असफलता ही है जो बड़ी सफलता के लिए नींव का पत्थर साबित होती है। यश चोपड़ा ने कहा था कि मेरी सल्तनत असफलताओं से मिली हुई सीखों के ऊपर खड़ी है। मैंने अपनी हर नाकामी से कुछ सीखा और आगे बढ़ा। जब मैं दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे बना रहा था तो फाइनेंसर मुझसे दूर भाग रहे थे। जब मैं सफल था तो उन्होंने मुझे जोशीले जैसी फ्लाप फिल्म बनाने के लिए भी पैसे दे दिए थे। फिल्म व्यवसाय के बारे में मेरी समझ कहती है कि हिट से कहीं ज्यादा उम्मीद असफलता की रहती है। आमिर खान के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। आज की तारीख में निश्चित तौर पर वह बहुत बड़ा स्टार है। आमिर खान की पहली फिल्म कयामत से कयामत तक बड़ी हिट रही थी। इसके बाद उसकी लगातार नौ फिल्में फ्लाप हुई। इन फ्लाप फिल्मों ने उसे सिखाया कि किसी फिल्म को हिट बनाने में बड़े नामों के बजाए अच्छी स्कि्रप्ट का हाथ होता है। यही पाठ उसने आज तक नहीं छोड़ा है और सबसे सफल अभिनेताओं में शुमार है। तो क्या हमें सफलता से बेहतर कुछ नहीं है जैसी कहावतों को बदलकर असफलता से बेहतर कुछ नहीं है कर देना चाहिए। इस पर मेरा सीधा और सपाट जवाब है- नहीं। मैं कहूंगा कामयाबी और नाकामी को एक ही भाव से स्वीकार करना चाहिए। अच्छे नेता असफलता के मकड़जाल में उलझकर नहीं रह जाते और न ही कामयाबी पर अति उत्साहित होते हैं। वे अपनी टीम को हर तरफ से और हर समय घेरने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए हमेशा तैयार करते रहते हैं। मेरा मानना है कि सफलता चौकन्ना और जागरूक रहने से मिलती है। साथ ही जरूरी है कि दूसरों के साथ सामंजस्य बनाते हुए दुनिया की कठोर सच्चाइयों को भी स्वीकार किया जाए। अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो निश्चित ही हम सफल होंगे। पूरी दुनिया में सच से बेहतर शिक्षक कोई नहीं है। नाकामी की सच्चाई को गले लगाएं। इसी में जीवन का सबसे बड़ा खजाना छुपा है। कोई आश्चर्य की बात नहीं कि गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा, मेरे पास अपनी नाकामयाबी लेकर आओ। सफलता के बजाए असफलता को अपना गुरु बनाओ। नाकामी से बड़ा कोई गुरु नहीं है। (दैनिक जागरण,दिल्ली,12.5.2010 से साभार))

2 comments:

  1. जो सफलता .....को सम्भाल लेता है ....वही हमेशा सफल होता है .

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  2. सही कथन भट्ट साहब का ...सन्देश से भरा
    विकास पाण्डेय
    www.vicharokadarpan.blogspot.com

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