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Sunday, November 14, 2010

शशि कपूर

बलबीर राज कपूर वर्ष 1938 में एक जाने-माने फिल्मी घराने कपूर खानदान में जन्मे थे। अपने पिता पृथ्वीराज कपूर और बड़े भाई राज कपूर व शम्मी कपूर के नक्शेकदम पर चलते हुए बलबीर ने भी फिल्मों में ही अपनी तकदीर आजमाई। अलबत्ता कई मायनों में उनका कॅरियर पिता और भाइयों से अलहदा था। दुनिया बलबीर को शशि कपूर के नाम से जानती है।

शशि कपूर ने 40 के दशक में ही फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कई धार्मिक फिल्मों में बाल कलाकार की भूमिकाएं निभाईं। उन्होंने बंबई के माटुंगा स्थित डॉन बोस्को स्कूल में पढ़ाई की थी। पिता पृथ्वीराज कपूर उन्हें छुट्टियों के दौरान स्टेज पर अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।

इसी का नतीजा रहा कि शशि के बड़े भाई राज कपूर ने उन्हें आग (1948) और आवारा (1951) में भूमिकाएं दी। आवारा में उन्होंने राज कपूर के बचपन का रोल किया था। 50 के दशक के मध्य में पिता की सलाह पर वे गॉडफ्रे कैंडल के थिएटर ग्रुप ‘शेक्सपियराना’ में शामिल हो गए और उसके साथ दुनियाभर की यात्राएं कीं। इसी दौरान गॉडफ्रे की बेटी और ब्रिटिश अभिनेत्री जेनिफर से उन्हें प्रेम हुआ और 1958 में मात्र 20 वर्ष की उम्र में उन्होंने उनसे विवाह कर लिया।

शशि कपूर ने गैरपरंपरागत किस्म की भूमिकाओं के साथ सिनेमा के पर्दे पर आगाज किया था। उन्होंने सांप्रदायिक दंगों पर आधारित फिल्म धर्मपुत्र (1961) में काम किया और उसके बाद चार दीवारी और प्रेम पात्र जैसी ऑफ बीट फिल्मों में नजर आए। वे हिंदी सिनेमा के पहले ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने हाउसहोल्डर और शेक्सपियर वाला जैसी अंग्रेजी फिल्मों में मुख्य भूमिकाएं निभाईं।

वर्ष 1965 शशि कपूर के लिए एक महत्वपूर्ण साल था। इसी साल उनकी पहली जुबली फिल्म जब जब फूल खिले रिलीज हुई और यश चोपड़ा ने उन्हें भारत की पहली मल्टी स्टारर ईस्टमैन कलर फिल्म वक्त के लिए कास्ट किया।

बॉक्स ऑफिस पर लगातार दो बड़ी हिट फिल्मों के बाद व्यावहारिकता का तकाजा यह था कि शशि कपूर परंपरागत भूमिकाएं करें, लेकिन उनके भीतर बैठा अभिनेता इसके लिए तैयार नहीं था। इसके बाद उन्होंने ए मैटर ऑव इनोसेंस और प्रिटी पॉली 67 जैसी फिल्में कीं, वहीं हसीना मान जाएगी, प्यार का मौसम ने एक चॉकलेटी हीरो के रूप में उन्हें स्थापित किया।

वर्ष 1972 की फिल्म सिद्धार्थ के साथ उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सिनेमा के मंच पर अपनी मौजूदगी कायम रखी। ७क् के दशक में शशि कपूर सबसे व्यस्त अभिनेताओं में से थे और वे तीन-तीन शिफ्टों में काम करते थे। इसी दशक में उनकी चोर मचाए शोर, दीवार, कभी-कभी, दूसरा आदमी और सत्यम शिवम सुंदरम जैसी फिल्में रिलीज हुईं।

वर्ष 1971 में पृथ्वीराज कपूर की मृत्यु के बाद शशि कपूर ने जेनिफर के साथ मिलकर पिता के स्वप्न को जारी रखने के लिए मुंबई में पृथ्वी थिएटर का पुनरुत्थान किया। अमिताभ बच्चन के साथ आई उनकी फिल्मों दीवार, कभी-कभी, त्रिशूल, सिलसिला, नमक हलाल, दो और दो पांच, शान ने भी उन्हें बहुत लोकप्रियता दिलाई। लेकिन शशि कपूर ने सार्थक सिनेमा का दामन कभी नहीं छोड़ा। वर्ष 1977 में उनकी प्रोडक्शन कंपनी फिल्मवालाज ने पांच प्रोजेक्टों की घोषणा की।

इनमें श्याम बेनेगल की जुनून और कलयुग, गोविंद निहलानी की विजेता, गिरीश कर्नाड की उत्सव और अपर्णा सेन की ३६ चौरंगी लेन जैसी फिल्में शामिल थीं। उनके आलोचकों ने कहा कि वे पेशेवर रूप से आत्मघात कर रहे हैं, लेकिन शशि कपूर ने केवल यही कहा कि सिनेमा में भरोसा करते हैं, व्यावसायिक और कला फिल्मों के विभाजन में नहीं।

शशि कपूर ने मर्चेट आइवरी प्रोडक्शन की फिल्मों में बेहतरीन अदाकारी की है। इनमें हीट एंड डस्ट, सैमी एंड रोजी गेट लेड जैसी फिल्में शामिल हैं। जेनिफर की मृत्यु के बाद उन्हें अवसाद ने घेर लिया। एक समय ऐसा भी आया, जब उन्होंने फिल्मों और थिएटर में दिलचस्पी लेना बंद कर दी।

लेकिन वर्ष 1986 में न्यू देहली टाइम्स के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतकर उन्होंने एक बार फिर खुद को साबित कर दिया। शशि कपूर अब सिनेमा से पूरी तरह रिटायर हो चुके हैं, लेकिन वे अब भी पृथ्वी थिएटर के प्रेरणास्रोत हैं। फिल्म दीवार में शशि कपूर का यह संवाद बहुत लोकप्रिय हुआ था : ‘मेरे पास मां है।’ इसी तर्ज पर हम भी गर्व से कह सकते हैं : ‘हमारे पास शशि कपूर हैं।’(भावना सोमाया,दैनिक भास्कर,14.11.2010)

1 comment:

  1. िअच्छा लगा शशी कपूर के बारे मे जान कर। धन्यवाद।

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