नई पीढी के लिए उनकी पहचान 'गब्बर सिंह' यानी अमजद खान के भाई के रूप में सीमित हो सकती है, लेकिन परदे पर और परदे के पीछे वे अपना अलग वजूद और पहचान रखते हैं। पुराने जमाने के इस विलैन का नाम है- इम्तियाज खान। बतौर बाल कलाकार अपना कॅरियर शुरू करने वाले इम्तियाज सिर्फ एक्टर ही नहीं, के. आसिफ, चेतन आनंद और ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे जाने-माने फिल्मकारों के असिस्टेंट और छोटे परदे के पॉपुलर राइटर-डायरेक्टर भी रहे हैं।
अपने दौर के जाने-माने हीरो और कैरेक्टर आर्टिस्ट जयंत के बडे बेटे इम्तियाज खान को 1972 में बनी छोटे बजट की, लेकिन अपने वक्त की सुपर हिट हॉरर फिल्म 'दो गज जमीन के नीचे' से कामयाबी मिली। वहीं जयंत के छोटे बेटे अमजद खान को 1975 में आई ब्लॉकबस्टर 'शोले' ने स्टार बना दिया। हालांकि यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि इम्तियाज का एक्टिंग के मैदान में आना महज इत्तफाक था। उनका रूझान मुख्य रूप से निर्देशन में था और थिएटर में तो बतौर लेखक-निर्देशन वे पहले ही खासी पहचान बना चुके थे।
पिछले दिनों एक मुलाकात में इम्तियाज से जब उनके कॅरियर के शुरूआती दौर के बारे में पूछा, तो वे पुरानी यादों में खो गए, 'मैंने सबसे पहले 1951 में बनी फिल्म 'नाजनीन' में कैमरा फेस किया था। प्रोड्यूसर पी.एन.अरोडा की नासिर खान और मधुबाला स्टारर इस फिल्म के गीत 'चांदनी रातों में जिस दम याद आ जाते हो तुम' में मैं और मुझसे दो साल छोटे अमजद दोनों नजर आए थे। मेरे चाचा एन.के. जिरी इस फिल्म डायरेक्टर थे, जिन्हें इंडस्ट्री में लोग नजीर नाम से भी जानते थे। 1955 में किशोर कुमार और श्यामा को लेकर फिल्म 'चार पैसे' को प्रोड्यूस और डायरेक्ट करने के बाद वे पाकिस्तान चले गए थे। इसके बाद मैंने राजा परांजपे की 'डॉ. विश्राम' और नानाभाई भट्ट की 'वतन' जैसी चार-पांच फिल्मों में चाइल्ड रोल निभाए। 1962 में आई ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म 'ग्यारह हजार लडकियां' में भी मेरा अहम रोल था।'
इम्तियाज की दिलचस्पी शुरू से ही निर्देशन की तरफ थी, जिसकी शुरूआत उन्होंने कॉलेज के नाटकों से की थी। इसी के चलते इम्तियाज के. आसिफ के असिस्टेंट बन गए, जो उन दिनों फिल्म 'लव एंड गॉड' बना रहे थे। लेकिन इसके नायक गुरूदत्त की अचानक हुई मौत, फायनेंसर शापुरजी पालनजी के फिल्म से हाथ खींच लेने और फिर के. आसिफ के निधन की वजह सेे यह मेगा प्रोजेक्ट बीच ही में अटक गया। उसी दौरान इम्तियाज ने कार्लाेवीवेरी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में शामिल होने जा रही ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म 'शहर और सपना' की स्क्रिप्ट का अंग्रेजी रूपांतरण किया, वहीं फिल्म 'हमारा घर' में उन्होंने अब्बास को असिस्ट भी किया। उधर, पूरी शिद्दत के साथ इम्तियाज नाटकों से भी जुडे रहे। जैसाकि वे कहते हैं, 'वो दौर मेरी जिंदगी का सबसे खुशगवार दौर था, क्योंकि तब मेरा उठना-बैठना साहिर, कृश्नचंदर और अली सरदार जाफरी जैसे नामवर शायरों और राइटर्स के बीच होता था।'
बतौर स्वतंत्र निर्देशक जो पहली फिल्म इम्तियाज को मिली, वह थी 'जिंदगी की राहें'। शुरूआत में इस फिल्म के लीड रोल में संजय खान और अलका थे, जिनकी जगह बाद में संजीव कुमार और राधा सलूजा आ गए। लेकिन कुछ रील बनने के बाद यह फिल्म बंद हो गई। इम्तियाज के मुताबिक, 'संघर्ष का दौर एक बार फिर से शुरू हो गया। नतीजन मुझे फिर से चेतन आनंद का सहायक बनना पडा, जो उन दिनों अपनी फिल्म 'हीर रांझा' को पूरा करने में जुटे थे।' आगे चलकर इम्तियाज ने फिल्म 'हंसते जख्म' में भी कुछ समय चेतन आनंद को असिस्ट किया। उसी दौरान फिल्म 'दो गज जमीन के नीचे' के मेन विलैन के लिए रामसे का ऑफर मिला, तो हालात ने इम्तियाज हां कहने पर मजबूर कर दिया। इस फिल्म की जबरदस्त कामयाबी ने इम्तियाज के कॅरियर को एक नया मोड दे दिया। सत्तर के दशक में उन्होंने 'यादों की बारात', 'धर्मात्मा', 'जख्मी', 'जोरो', 'काला सोना', 'कबीला' और 'दरवाजा' जैसी कई लोकप्रिय और कामयाब फिल्मों में खलनायकी के तेवर दिखाए। लेकिन तभी एक जाने-माने अंग्रेजी अखबार ने उस दौर की एक टॉप हीरोइन के साथ इम्तियाज के रिश्तों को लेकर बेहद चटपटा लेख छाप दिया, जिसकी वजह से उस हीरोइन को इम्तियाज से कन्नी काटने पर मजबूर होना पडा। साथ ही कम्प्लीशन पर पहुंच चुकी अपनी चारों फिल्मों के लिए डेट्स देने से भी उसने इनकार कर दिया। नतीजन इम्तियाज का कॅरियर ग्राफ एक झटके में नीचे आ गया। लेकिन बाद में इम्तियाज के बनाए टीवी शो दर्शकों को बेहद पसंद आए। उन्होंने कई गुजराती धारावाहिकों के अलावा दूरदर्शन के लिए 'अनकही', 'नूरजहां', 'मानो या न मानो', टेलीफिल्म 'काकुल' और 'शाहकार' और स्टार प्लस के लिए सीरियल 'दीवारें' का निर्देशन किया। ये सभी शो हिट रहे। इम्तियाज खान की बीवी कृतिका देसाई भी अपने दौर की मशहूर अदाकारा रही हैं, जिनकी कंपनी पाईनट्री पिक्चर्स में वे इन दिनों बतौर क्रिएटिव हैड कार्यरत हैं और दूरदर्शन के लिए सीरियल 'कैफे लाइफ' के निर्माण में जुटे हैं।
अपने दौर के जाने-माने हीरो और कैरेक्टर आर्टिस्ट जयंत के बडे बेटे इम्तियाज खान को 1972 में बनी छोटे बजट की, लेकिन अपने वक्त की सुपर हिट हॉरर फिल्म 'दो गज जमीन के नीचे' से कामयाबी मिली। वहीं जयंत के छोटे बेटे अमजद खान को 1975 में आई ब्लॉकबस्टर 'शोले' ने स्टार बना दिया। हालांकि यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि इम्तियाज का एक्टिंग के मैदान में आना महज इत्तफाक था। उनका रूझान मुख्य रूप से निर्देशन में था और थिएटर में तो बतौर लेखक-निर्देशन वे पहले ही खासी पहचान बना चुके थे।
पिछले दिनों एक मुलाकात में इम्तियाज से जब उनके कॅरियर के शुरूआती दौर के बारे में पूछा, तो वे पुरानी यादों में खो गए, 'मैंने सबसे पहले 1951 में बनी फिल्म 'नाजनीन' में कैमरा फेस किया था। प्रोड्यूसर पी.एन.अरोडा की नासिर खान और मधुबाला स्टारर इस फिल्म के गीत 'चांदनी रातों में जिस दम याद आ जाते हो तुम' में मैं और मुझसे दो साल छोटे अमजद दोनों नजर आए थे। मेरे चाचा एन.के. जिरी इस फिल्म डायरेक्टर थे, जिन्हें इंडस्ट्री में लोग नजीर नाम से भी जानते थे। 1955 में किशोर कुमार और श्यामा को लेकर फिल्म 'चार पैसे' को प्रोड्यूस और डायरेक्ट करने के बाद वे पाकिस्तान चले गए थे। इसके बाद मैंने राजा परांजपे की 'डॉ. विश्राम' और नानाभाई भट्ट की 'वतन' जैसी चार-पांच फिल्मों में चाइल्ड रोल निभाए। 1962 में आई ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म 'ग्यारह हजार लडकियां' में भी मेरा अहम रोल था।'
इम्तियाज की दिलचस्पी शुरू से ही निर्देशन की तरफ थी, जिसकी शुरूआत उन्होंने कॉलेज के नाटकों से की थी। इसी के चलते इम्तियाज के. आसिफ के असिस्टेंट बन गए, जो उन दिनों फिल्म 'लव एंड गॉड' बना रहे थे। लेकिन इसके नायक गुरूदत्त की अचानक हुई मौत, फायनेंसर शापुरजी पालनजी के फिल्म से हाथ खींच लेने और फिर के. आसिफ के निधन की वजह सेे यह मेगा प्रोजेक्ट बीच ही में अटक गया। उसी दौरान इम्तियाज ने कार्लाेवीवेरी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में शामिल होने जा रही ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म 'शहर और सपना' की स्क्रिप्ट का अंग्रेजी रूपांतरण किया, वहीं फिल्म 'हमारा घर' में उन्होंने अब्बास को असिस्ट भी किया। उधर, पूरी शिद्दत के साथ इम्तियाज नाटकों से भी जुडे रहे। जैसाकि वे कहते हैं, 'वो दौर मेरी जिंदगी का सबसे खुशगवार दौर था, क्योंकि तब मेरा उठना-बैठना साहिर, कृश्नचंदर और अली सरदार जाफरी जैसे नामवर शायरों और राइटर्स के बीच होता था।'
बतौर स्वतंत्र निर्देशक जो पहली फिल्म इम्तियाज को मिली, वह थी 'जिंदगी की राहें'। शुरूआत में इस फिल्म के लीड रोल में संजय खान और अलका थे, जिनकी जगह बाद में संजीव कुमार और राधा सलूजा आ गए। लेकिन कुछ रील बनने के बाद यह फिल्म बंद हो गई। इम्तियाज के मुताबिक, 'संघर्ष का दौर एक बार फिर से शुरू हो गया। नतीजन मुझे फिर से चेतन आनंद का सहायक बनना पडा, जो उन दिनों अपनी फिल्म 'हीर रांझा' को पूरा करने में जुटे थे।' आगे चलकर इम्तियाज ने फिल्म 'हंसते जख्म' में भी कुछ समय चेतन आनंद को असिस्ट किया। उसी दौरान फिल्म 'दो गज जमीन के नीचे' के मेन विलैन के लिए रामसे का ऑफर मिला, तो हालात ने इम्तियाज हां कहने पर मजबूर कर दिया। इस फिल्म की जबरदस्त कामयाबी ने इम्तियाज के कॅरियर को एक नया मोड दे दिया। सत्तर के दशक में उन्होंने 'यादों की बारात', 'धर्मात्मा', 'जख्मी', 'जोरो', 'काला सोना', 'कबीला' और 'दरवाजा' जैसी कई लोकप्रिय और कामयाब फिल्मों में खलनायकी के तेवर दिखाए। लेकिन तभी एक जाने-माने अंग्रेजी अखबार ने उस दौर की एक टॉप हीरोइन के साथ इम्तियाज के रिश्तों को लेकर बेहद चटपटा लेख छाप दिया, जिसकी वजह से उस हीरोइन को इम्तियाज से कन्नी काटने पर मजबूर होना पडा। साथ ही कम्प्लीशन पर पहुंच चुकी अपनी चारों फिल्मों के लिए डेट्स देने से भी उसने इनकार कर दिया। नतीजन इम्तियाज का कॅरियर ग्राफ एक झटके में नीचे आ गया। लेकिन बाद में इम्तियाज के बनाए टीवी शो दर्शकों को बेहद पसंद आए। उन्होंने कई गुजराती धारावाहिकों के अलावा दूरदर्शन के लिए 'अनकही', 'नूरजहां', 'मानो या न मानो', टेलीफिल्म 'काकुल' और 'शाहकार' और स्टार प्लस के लिए सीरियल 'दीवारें' का निर्देशन किया। ये सभी शो हिट रहे। इम्तियाज खान की बीवी कृतिका देसाई भी अपने दौर की मशहूर अदाकारा रही हैं, जिनकी कंपनी पाईनट्री पिक्चर्स में वे इन दिनों बतौर क्रिएटिव हैड कार्यरत हैं और दूरदर्शन के लिए सीरियल 'कैफे लाइफ' के निर्माण में जुटे हैं।
No comments:
Post a Comment
न मॉडरेशन की आशंका, न ब्लॉग स्वामी की स्वीकृति का इंतज़ार। लिखिए और तुरंत छपा देखिएः