यहां तक कि फिल्म के नायक संजय कपूर को कहना पड़ गया कि वे सबसे अधिक उम्र वाले नए कलाकार हैं। कमसिन तब्बू के सबसे कीमती वर्ष ‘प्रेम’ में जाया हो गए, फिर भी ‘विजयपथ’ में ‘रुक रुक रुक..’ गाती हुई वह व्यावसायिक फिल्मों में प्रवेश कर गईं, परंतु प्रथम श्रेणी में प्रवेश नहीं मिला। उनके पास रंग-रूप के साथ प्रतिभा भी है, परंतु किसी फिल्मकार ने उनके साथ न्याय नहीं किया। बाद मुद्दत के गुलजार की ‘माचिस’ में तब्बू के अभिनय ने दर्शकों का दिल जीता। ‘माचिस’ को व्यावसायिक सफलता मिली, परंतु उसे कला फिल्म ही माना गया और तब्बू ‘हु तू तू’ करती रह गईं। फिल्मकार आर बाल्की की मनोरंजक फिल्म ‘चीनी कम’ में तब्बू के नायक अमिताभ बच्चन थे। उम्र की खाई को पाटती हुई इस प्रेम कथा में दोनों कलाकारों ने दर्शकों का दिल जीत लिया। बाल्की ने अत्यंत चतुराई से कई सेक्स प्रसंगों की ओर भी सूक्ष्म संकेत किए और अभद्रता से बच गए। एक दृश्य में तब्बू बूढ़े नायक बच्चन से शर्त रखती हैं कि वह दौड़कर दरख्त छूकर आएं और हांफते हुए वृद्ध से कहती हैं कि वह उसका दम-खम देख रही थीं। अपने नैसर्गिक अधिकारों के प्रति सजगता प्रदर्शित करने वाली नायिका की यह नई साहसिक छवि थी। यह सच है कि ‘प्रेम’ में नष्ट हुए वर्षो से तब्बू को भारी नुकसान हुआ, परंतु सौंदर्य और प्रतिभा होते हुए भी सुपर सितारों के साथ उन्हें अवसर नहीं मिले। व्यावसायिक सिनेमा की यह औघड़ रीति है कि सुपर सितारों के साथ काम नहीं कर पाने पर प्रतिभाशाली नायिका भी सितारों के श्रेष्ठि वर्ग में नहीं पहुंच पाती। विद्या बालन के साथ भी यही हो रहा है। शिल्पा शेट्टी ने शाहरुख खान के साथ छोटी भूमिका की थी, परंतु उस समय शाहरुख तुर्रम खां नहीं थे। लंबे समय तक रेंग-रेंग कर बनने वाली ‘धड़कन’ में सुपरहिट संगीत था, परंतु नायक सुनील शेट्टी थे और साथ में अक्षय कुमार थे जो उस समय स्टंट खिलाड़ी थे। शिल्पा शेट्टी को लंदन में प्रस्तुत ‘बिग ब्रदर’ ने सितारा बना दिया। डेविड धवन की ‘साजन चले ससुराल’ और ‘बीवी नंबर 1’ में तब्बू को खूब सराहा गया। तब्बू हमेशा ही कैटरीना कैफ से कहीं बेहतर अभिनेत्री रही हैं, परंतु कैटरीना को बड़े सितारों के साथ काम करने के अवसर मिले। उन्हें सलमान खान का समर्थन भी प्राप्त था। बात साफ है कि यह उद्योग इस कदर पुरुष केंद्रित है कि नायिका को भी सफल होने के लिए उसका सहारा चाहिए। करीना कपूर ने सबसे कम सफल फिल्मों में काम किया है, परंतु वह आज सबसे ज्यादा धन लेने वाली नायिका हैं। भारी सफलता के लिए नायिका के इर्दगिर्द एक आभामंडल रचना होता है, कुछ विवाद खड़े करने होते हैं। यह अजीब सा खेल है जिसमें प्रतिभा का कोई खास महत्व नहीं है। राजनीति में भी लोग इसी तरह का नकली आभामंडल रचते हैं। चंपा के फूल में भी रंग और सुगंध होती है, परंतु भंवरे नहीं आते।
(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,19 फरवरी,2010 से साभार)
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