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Friday, February 5, 2010

स्ट्राइकरःफिल्म समीक्षा

फिल्म : स्ट्राइकर
कलाकार : सिद्धार्थ , आदित्य पंचोली , पद्मप्रिया , अंकुर , सीमा विश्वास
निर्माता : स्टूडियो 18
निर्देशक : चंदन अरोड़ा
गीत : स्वानंद किरकिरे
संगीत : विशाल भारद्वाज , शैलेंद्र बर्वे , अमित त्रिवेदी
सेंसर सर्टिफिकेट : ए
रेटिंग : **
सिनेमा हॉल में आप शायद पहली बार अपने घर के एक कार्नर में रखे कैरम बोर्ड के साथ ऐसी बाजी लगाते देखेंगे , जैसा आपने कभी सोचा तक न था। इस फिल्म से पहले राम गोपाल वर्मा कैंप के साथ ' मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं ' जैसी ऑफ बीट फिल्म बना चुके चंदन अरोड़ा को बतौर डायरेक्टर अपने करियर की तीसरी फिल्म को बनाने में कुछ ज्यादा ही वक्त लगा।
चंदन की पिछली फिल्म ' मैं मेरी पत्नी और वो ' 2005 में रिलीज हुई और इत्तफाक से उन्होंने अपनी दोनों फिल्मों में पर्दे पर ऐसा हीरो पेश किया जो दर्शकों की खास क्लास को पसंद नहीं। राजपाल यादव को लीड रोल में लेकर चंदन ने पिछली दोनों फिल्में बनाईं। भले ही उनकी इन फिल्मों को लीक से हटकर अलग स्टाइल की फिल्में देखने वालों से वाहवाही मिली लेकिन बॉक्स ऑफिस पर इन फिल्मों ने सभी को निराश किया। शायद यही वजह रही कि इस बार चंदन ने मुंबइया फिल्मों में नजर आते ऐसे कई मसालों का जमकर प्रयोग किया जो किसी फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर हिट बनाने का दम रखते हैं। ऐसा भी नहीं कि चंदन ने पिछली बार की तरह अपनी नई फिल्म के साथ कोई एक्सपेरिमेंट नहीं किया।
कई साल पहले राकेश मेहरा की फिल्म 'रंग दे बसंती' में छोटी सी भूमिका में नजर आने के बाद दर्शकों में अपनी कुछ अलग पहचान बना चुके सिद्धार्थ को उन्होंने लीड रोल में लिया तो साथ ही कहानी के एक अहम पात्र जाएद के रोल में उन्होंने किसी जाने पहचाने स्टार को लेने की बजाए न्यूकमर अंकुर विराल को चुना।
कहानी : जैसा कि आप इस फिल्म के टाइटिल से समझ गए होंगे पूरी फिल्म कैरम के आसपास घूमती है। कैरम बोर्ड पर अपनी उंगलियों के जादू के दम से स्ट्राइकर चलाने में माहिर सूर्या (सिद्धार्थ) मुंबई की स्लम बस्ती मालवाणी में अपराध सरगनाओं की आंखों में कब और कैसे आया,इसका पता तो सूर्या को भी नहीं लग पाया। कैरम में चैंपियन बनने के बाद जहां सूर्या के इस हुनर की हर और तारीफें हुई तो वहीं इस स्लम बस्ती के दादा जलील (आदित्य पंचोली)को लगा कि उसके इस हुनर के दम पर वह लाखों रुपये कमा सकता है। फिल्म की कहानी सूर्या के अतीत को दिखाती है तो इसमें बाबरी मस्जिद ढहने के बाद मुंबई में भड़के दंगों की पृष्ठभूमि भी दिखाई देती है वहीं इस स्लम बस्ती में रहने वालों का सबसे अलग जज्बा भी दिखाई देता है। सूर्या की इस बस्ती में 90फीसदी मुस्लिम हैं। वहां कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके दम पर दंगों के उस दौर को डायरेक्टर ने बहुत सजीव ढंग से दिखाया है।
एक्टिंग : रंग दे बसंती के बाद इस फिल्म से सिद्धार्थ ने साबित किया कि वह किसी भी किरदार को बिल्कुल अलग ढंग से पेश कर सकते हैं। स्लम बस्ती में रहने वाले कैरम चैंपियन सूर्या के अंदर छिपी टीस और आक्रोश को समाए युवक के रोल में सिद्धार्थ खूब जमे हैं। पद्म प्रिया के हिस्से में चंद सीन आए और पद्म उनमें जमी , लेकिन जाएद के रोल में अंकुर विराल पूरी फिल्म में छाए रहे।
संगीत : फिल्म के साथ तीन संगीतकारों का नाम जुड़ा होने के बावजूद फिल्म में ऐसा कोई गाना नहीं जो म्यूजिक लवर्स की जुबां पर चढ़ने का दम रखता हो। हां , फिल्म में बैकग्राउंड संगीत उल्लेखनीय है।
निर्देशन : बतौर डायरेक्टर चंदन प्रभावित करते हैं , लेकिन मुश्किल यही है कि इस बार भी बॉक्स ऑफिस की कसौटी पर चंदन कुछ खास नहीं कर पाए। कैरम के स्ट्राइकर पर फिल्म बनाते बनाते वह मुंबई की स्लम बस्ती और फिर जातीय दंगों के फेर में पड़ गए और फिल्म दर्शकों की उस क्लास से दूर हो गई जो एंटरटेनमेंट के लिए सिनेमा आते हैं।
क्यों देखें : सिद्धार्थ और अंकुर विराल का लाजवाब अभिनय। लीक से हटकर अलग टाइप की फिल्में पसंद करने वालों का पसंद आ सकती है ,लेकिन सेंसर ने सर्टिफिकेट देकर साफ कर दिया कि फिल्म फैमिली क्लास के लिए नहीं।

(चंद्रमोहन शर्मा,नभाटा,दिल्ली,6.2.10)

(हिंदुस्तान,दिल्ली,6.2.10)
(नई दुनिया,दिल्ली,6.2.10)




















(टाइम्स ऑफ इंडिया,दिल्ली,5.2.10)

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