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Monday, February 8, 2010

रोग और फिल्में

शाहरुख खान की नई फिल्म 'माई नेम इज खान' एस्परजर सिंड्रोम नामक दिमागी बीमारी पर केंद्रित है। इससे पहले 'तारे जमीं पर' में डिस्लेक्सिया, 'गजनी' में शॉर्ट टर्म मेमरी लॉस और 'पा' में प्रोजेरिया जैसी बीमारी का चित्रण हुआ है। क्या इसे संयोग माना जाए कि कुछ ही समय के अंतराल में एक साथ कई ऐसी फिल्में आई हैं, जिनमें कुछ असाधारण बीमारियों को विषय बनाया गया है? वैसे तो बॉलिवुड के बारे में कहा जाता है कि यहां किसी एक थीम के हिट होते ही उसे भुनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। पता नहीं 'माई नेम इज खान' को 'तारे जमीं पर', 'गजनी' और 'पा' की सफलता ने कितना प्रेरित किया है,लेकिन कुछ खास मेंटल डिसऑर्डर पर बनी इन फिल्मों को अलग से रेखांकित करने की जरूरत है। एक बात तो साफ है कि बॉलिवुड में कथ्य और ट्रीटमेंट के स्तर पर नई जमीन तलाशने की जद्दोजहद और तेज हुई है। आज निर्माता-निर्देशकों का एक ऐसा वर्ग सामने आया है, जो लीक छोड़कर कुछ नया रचने का साहस रखता है। फिर दर्शकों की सोच और रुचि के दायरे का भी विस्तार हुआ है। टीवी और डब फिल्मों के जरिए हिंदी सिनेमा के दर्शकों का हॉलिवुड से संपर्क बढ़ा है। वे हॉलिवुड के अछूते विषयों और अनूठे प्रयोगों को चाव से देखने लगे हैं। इसी को भांपकर अब हिंदी फिल्मों के निर्देशक भी ऐसे विषय उठाने लगे हैं। दिमागी बीमारियां उनमें से एक हैं, जिन पर प्राय: हमारे समाज का ध्यान नहीं जाता। पहले ये बीमारियां फिल्मों में बतौर बैकड्रॉप इस्तेमाल की जाती थीं और इनका शिकार हाशिए के पात्र होते थे। लेकिन अब मुख्य पात्रों के साथ ये फिल्म के केंद में हैं। कहीं-कहीं तो यह फिल्म में अभिनय का एक खास मैनरिज्म भी विकसित करने में सफल हुई हैं। फिल्म 'पा'में अमिताभ का अभिनय इसी कोटि का है। इन फिल्मों ने समाज में वह माहौल भी बनाने की कोशिश की है जिसमें इन रोगों के शिकार लोगों के प्रति लोगों का उपेक्षा भाव खत्म हो। दूसरी ओर 'तारे जमीं पर'जैसी फिल्म ने डिस्लेक्सिया नामक बीमारी के बहाने पैरंटिंग और एजुकेशन सिस्टम को लेकर दर्शकों के बीच एक सार्थक बहस को जन्म दिया। शिक्षा और प्रतिभा की अवधारणा को लेकर जो बातें कल तक कुछ मनोवैज्ञानिक कह रहे थे,उसे इस फिल्म ने आसानी से लोगों के मन-मस्तिष्क में बिठा दिया। हम जिन्हें विकृतियां समझकर पीछे छोड़ देना चाहते हैं,उन्हें भी सीने से लगाने का संदेश ये फिल्में देती हैं। यह इनकी उपलब्धि कही जा सकती है।
(नभाटा,दिल्ली,10 फरवरी,2010)
इसी विषय पर 7 फरवरी के संडे नई दुनिया,दिल्ली में प्रकाशित यह दिलचस्प आलेख भी पढिएः-













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