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Wednesday, June 2, 2010

राजकपूर ने हमेशा ख़ुद को पिता से कमतर माना

आज राज कपूर को गुजरे हुए बाइस वर्ष पूरे हो चुके हैं। अपनी उम्र के बाइसवें वर्ष में उन्होंने आरके फिल्म्स की स्थापना की थी और देश की आजादी की अलसभोर में उनके द्वारा निर्मित, निर्देशित व अभिनीत फिल्म ‘आग’ प्रदर्शित हुई थी। उनका जन्म भारत में कथा फिल्म प्रदर्शन के ग्यारह वर्ष बाद 1924 मंे हुआ था और ग्यारह वर्ष की उम्र में बाल कलाकार के रूप में उन्होंने पहली बार अभिनय किया था। इसके कुछ वर्ष पूर्व वह अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ कोलकाता के न्यू थिएटर्स स्टूडियो गए थे।

उस समय बालमन में शायद यह बात नहीं आई होगी कि कोई स्टूडियो ही उनकी कर्मस्थली बनेगा और वह मनोरंजन जगत में इतिहास रचेंगे। एक दिन न्यू थिएटर्स के संगीतकार आरसी बोराल ने पृथ्वीराज से कहा कि उनका नन्हा बेटा तबले पर उल्टे-सीधे हाथ मारता है, परंतु रिद्म समझता है। इसे शास्त्रीय संगीत की तालीम देनी चाहिए।

ज्ञान के प्रति पृथ्वीराज का आग्रह इतना प्रबल था कि पचास की उम्र में उन्होंने कत्थक सीखने का प्रयास किया था। उन्होंने राज कपूर के विकास का पथ प्रशस्त किया, परंतु प्रतिभा की नदी के स्वाभाविक प्रवाह में बाधा नहीं बने। सिर्फ एक बार उन्होंने सख्त रुख अपनाया। नरगिस से अलगाव के बाद राज कपूर बेतहाशा पीने लगे थे, तब पृथ्वीराज ने उनसे कहा कि बहुत अभागा होता है वह पिता, जो जवान पुत्र की अंतिम यात्रा में शामिल होता है। इसके बाद शराब छोड़ राज कपूर काम में डूब गए और ‘जिस देश में गंगा बहती है’ बनाई।

कपूर पिता-पुत्र के रिश्ते में कुछ नाटकीय संयोग रहे हैं। राज कपूर ने अपने पिता को मरणोपरांत दिया गया दादा साहब फाल्के पुरस्कार ग्रहण किया था और कोई डेढ़ दशक बाद स्वयं अर्जित दादा साहब फाल्के पुरस्कार लेते हुए कोमा में चले गए। उन्हंे मशीनों के सहारे एक माह तकनीकी तौर पर जिंदा रखा गया।

कमोबेश ऐसी ही कुछ बात ‘जोकर’ के फसाने में भी है कि मां से छुपकर जोकर बने राज कपूर को ट्रैपीज के तमाशे में नीचे गिरते देख मां की हृदयगति रुक जाती है, क्योंकि उनके पति की मृत्यु भी ऐसे ही हुई थी। उन दिनों सर्कस में सुरक्षा के लिए नीचे जाल नहीं होता था। मनोरंजन जगत में जब आप गिरते हैं, तो सुरक्षा का कोई जाल काम नहीं आता। राज कपूर की फिल्मों में उनके जीवन की झलक दिखाई देती है, परंतु अपने पिता की भी अनेक बातें उसमें शुमार होती हैं। उनकी फिल्मों की आधी हकीकत और आधे फसाने में पिता-पुत्र रिश्ते की अलसभोर हमेशा मौजूद होती है।

फिल्म ‘आग’ में बैरिस्टर पिता को अपने पुत्र का नाटक में जाना पसंद नहीं है। विद्रोही पुत्र बरसों से बंद पड़े थिएटर में अदृश्य दर्शकों के सामने अपने गैरमौजूद रूठे हुए पिता से वादा करता है कि थिएटर को उस ऊंचाई पर ले जाऊंगा कि आपको और सारे श्रेष्ठि वर्ग को गर्व होगा।

पृथ्वीराज के पिता नहीं चाहते थे कि उनका स्नातक पुत्र उच्च सरकारी नौकरी के प्रस्ताव ठुकराकर मुंबई में नाटक और सिनेमा से जुड़े। कल्पना करें कि उस जमाने में स्नातक का भविष्य कितना उजला था। धारा के विपरीत तैरने वाले अगर डूबने भी लगते हैं, तो सतह से ऊपर उठी उनकी उंगलियां इतिहास रचती हैं। बहरहाल राज कपूर के जन्म के एक वर्ष बाद ही पृथ्वीराज कपूर ने मनोरंजन जगत से जुड़ने का निश्चय ले लिया और वह क्षण ऐतिहासिक सिद्ध हुआ।

‘आवारा’ के अंतरराष्ट्रीय सफल प्रदर्शन के बाद कुछ लोग पृथ्वीराज को राज कपूर के पिता के नाम से संबोधित करने लगे थे, परंतु ताउम्र राज कपूर को यकीन था कि उन्होंने अपने पिता के समान महानता हासिल नहीं की है(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,2 जून,2010)।

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