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Tuesday, June 1, 2010

बसंत स्टूडियो के वे दिन....

हिंदुस्तानी सिनेमा में एक दौर में वो भी था, जब फिल्में सितारों से नहीं, स्टूडियो और कंपनियों के नाम से जानी-पहचानी जाती थीं। उस जमाने में वाडिया ब्रदर्स-जे. बी. एच. और होमी-ने वाडिया मूवीटोन के झंडे तले स्टंट, फैंटेसी और पौराणिक फिल्मों की परंपरा को कायम किया। बाद में होमी ने फीयरलेस नाडिया के साथ अपना अलग बसंत स्टूडियो बनाया और उसी स्टाइल को आगे बढाकर कामयाबी हासिल की। आज बसंत स्टूडियो की सिर्फ यादें ही बाकी रह गई हैं।

चालीस के दशक के शुरू में मुंबई में तीन नई फिल्म कंपनियों की शुरूआत हुई। ये तीन कंपनियां थीं- राजकमल कलामंदिर, फिल्मिस्तान स्टूडियो और बसंत पिक्चर्स। बसंत पिक्चर्स की स्थापना स्टंट, फंतासी और धार्मिक फिल्मों के मशहूर प्रोड्यूसर-डायरेक्टर होमी वाडिया ने अपने बडे भाई जे. बी. एच. वाडिया की कंपनी वाडिया मूवीटोन से अलग होकर 1942 में की थी। होमी इससे पहले वाडिया मूवीटोन के बैनर पर फीयरलेस नाडिया को लेकर 'हंटरवाली', 'मिस तूफान मेल', 'लुटारू ललना', 'पंजाब मेल', 'डायमंड क्वीन' और 'जंगल प्रिंसेस' जैसी कई हिट फिल्में बना चुके थे। जे. बी. एच. के बेटे विंसी वाडिया के मुताबिक फिल्मी दुनिया में राम-लक्ष्मण की जोडी के नाम से मशहूर दोनों वाडिया भाइयों के बीच मतभेद की शुरूआत तब हुई, जब जे. बी. एच. का रूझान सामाजिक फिल्मों की तरफ होने लगा, जबकि होमी चाहते थे कि वाडिया मूवीटोन सिर्फ स्टंट, फैंटेसी और पौराणिक फिल्में बनाए, जिनके लिए यह बैनर मशहूर रहा। लेकिन जे. बी. एच. वाडिया इसके लिए तैयार नहीं थे। नतीजन दोनों भाइयों के बीच मतभेद इस हद तक बढ गए कि होमी ने फीयरलेस नाडिया को साथ लेकर खुद को वाडिया मूवीटोन से अलग कर लिया। इसके बावजूद बसंत पिक्चर्स के बैनर की पहली फिल्म 'मौज'(1942) सामाजिक फिल्म थी। बाबूभाई मिस्त्री के निर्देशन में बनी इस फिल्म में पहाडी सान्याल, कौशल्या और नाडिया लीड रोल में थे। लेकिन अभी तक परदे पर हैरतअंगेज स्टंट करने वाली नायिका नाडिया का इस फिल्म में सती-सावित्री बनकर आंसू बहाना दर्शकों को रास नहीं आया और यह फिल्म बुरी तरह पिट गई। विंसी बताते हैं, 'फिल्म 'मौज' की नाकामी के बाद होमी पूरी तरह से अपने मूड की फिल्में बनाने में उतर पडे। चालीस के दशक में उन्होंने बसंत पिक्चर्स के बैनर पर नाडिया को लेकर 'हंटरवाली की बेटी', 'शेरे बगदाद', 'फ्लाइंग प्रिंस', 'स्टंट क्वीन', 'टाइग्रेस', 'माया महल', 'कॉमेट' और 'सर्कसवाली' जैसी कई हिट फिल्में बनाई। 1948 में उन्होंने धार्मिक फिल्म 'श्री रामभक्त हनुमान' का निर्माण किया, जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया।

वर्ष 1950 में होमी ने मुंबई के उपनगर चैंबूर में बसंत स्टूडियो और बसंत सिनेमाघर की स्थापना की। इसके बाद अगले तीन दशकों में बसंत पिक्चर्स के बैनर पर 'अलादीन और जादुई चिराग', 'हनुमान पाताल विजय', 'नवदुर्गा', 'अलीबाबा चालीस चोर', 'वीर राजपूतानी', 'दिलेर डाकू', 'पवनपुत्र हनुमान', 'माया बाजार', 'सर्कस क्वीन', 'जबक', 'संपूर्ण रामायण', 'खिलाडी', 'हातिमताई', 'तूफान और बिजली' और 'महासती सावित्री' जैसी कई स्टंट, फैंटेसी और पौराणिक फिल्में बनीं और इनमें से ज्यादातर हिट साबित हुई। मीना कुमारी (श्री गणेश महिमा /1950), शम्मी कपूर (गुल सनोवर /1953), फिरोज खान (रिपोर्टर राजू /1962), संजीव कुमार (निशान /1965) और सचिन (श्रीकृष्ण लीला / 1970) जैसे सितारों ने बसंत पिक्चर्स की फिल्मों से ही कॅरियर की शुरूआत की थी। इसी बैनर ने महीपाल, बी. एम. व्यास, अनिता गुहा जैसे अदाकारों और बाबूभाई मिस्त्री, नानाभाई भट्ट और अस्पी ईरानी जैसे डायरेक्टरों को शोहरत दिलाई थी। 1961 में होमी ने नाडिया से शादी कर ली। शादी के बाद नाडिया 1968 में फिल्म 'खिलाडी' में एक बार फिर परदे पर नजर आई और इसके बाद उन्होंने एक्टिंग से संन्यास ले लिया। यह वो दौर था, जब सिने तकनीक में जबरदस्त बदलाव आ रहे थे। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मेें आउट ऑफ फोकस चुकी थीं। नई सोच के साथ फिल्मकारों की एक नई पीढी मैदान में उतर चुकी थी। फैंटेसी, स्टंट और धार्मिक फिल्मों में दर्शकों की दिलचस्पी खत्म होने लगी थी। ऎसे में होमी वाडिया ने 1980 में फिल्म 'महाबली हनुमान' के बाद बसंत स्टूडियो को बेचकर हमेशा के लिए फिल्मी दुनिया से किनारा कर लिया। 1996 में नाडिया रूखसत हुई और 2004 में औलाद की अधूरी आस लेकर होमी वाडिया भी दुनिया को अलविदा कह गए। तीन गुजराती और एक मराठी समेत कुल 63 फिल्मों का निर्माण करने वाले बसंत पिक्चर्स के स्टूडियो की जमीन पर अब रिहायशी और व्यापारिक इमारतें उग आई हैं, लेकिन उसके एक कोने पर खड़ा बसंत सिनेमाहॉल आज भी गुजरे जमाने की याद दिलाता है(शिशिरकृष्ण शर्मा,राजस्थान पत्रिका,22 मई,2010)

2 comments:

  1. अच्छी जानकारी यादो से भरी
    आभार

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