एक ऋ तिक रोशन को छोड दें, तो सितारों के ज्यादातर बेटे-बेटियां अपनी लंबी पारी के बावजूद अलग पहचान नहीं बना पाए हैं। जाहिर है कि सिर्फ स्टार सन होना कामयाबी की गारंटी नहीं।
अजब तेरी कहानी
फिल्म इंडस्ट्री का चलन भी अजीब है। 'कंपनी', 'साथिया', 'युवा', 'मस्ती', 'प्यारे मोहन', 'ओमकारा', 'शूटआउट एट लोखंडवाला' और 'प्रिस' जैसी सफल फिल्मों के बावजूद सुरेश ओबेराय के बेटे विवेक ओबेराय का मार्केट बेहद ठंडा है। उधर, फरदीन खान और जाएद खान पता नहीं किस खासियत से अब भी फिल्मों में टिके हुए हैं। इन दोनों स्टार पुत्रों में न तो प्रतिभा है, न स्टार पावर, लेकिन इंडस्ट्री इन्हें झेल रही है।
शॉटगन उर्फ शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव की डेब्यू फिल्म 'सदियां' दर्शकों ने खारिज कर दी है। ऎसे में यह सवाल उठ रहा है कि शत्रु की बेटी सोनाक्षी और उनके दूसरे बेटे कुश की किस्मत के बारे में दर्शक क्या फैसला सुनाएंगे। सोनाक्षी की पहली फिल्म 'दबंग' इसी साल रिलीज होगी, जिसमें वे सलमान खान के साथ हैं। कुश भी नए निर्देशक अप्रतिम खरे की अनाम फिल्म में नजर आएंगे। क्या लव की शुरूआती विफलता से सोनाक्षी और कुश के भाग्य और भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता हैक् इन सवालों के बीच अब जबकि 'रावण' रिलीज होने वाली है, यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि क्या अभिषेक बच्चन मणिरत्नम के साथ तीसरी बार भी कामयाब होंगेक् अभिषेक इससे पहले मणि के साथ 'युवा' और 'गुरू' में काम कर चुके हैं। ये दोनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रही थीं। इन फिल्मों में जूनियर बच्चन के काम की भी तारीफ हुई थी। मणि के साथ अभिषेक की हैट्रिक की बात इसलिए कही जा रही है कि अभि मणि के साथ ही सफल हुए हैं। 'धूम2' जैसी मल्टीस्टारर फिल्मों की बात छोड दें, तो जे. पी. दत्ता की सुपर फ्लॉप फिल्म 'रिफ्यूजी' से अपने कॅरियर की शुरूआत करने वाले अभिषेक बच्चन ने अब तक 'तेरा जादू चल गया', 'ढाई अक्षर प्रेम के', 'बस इतना सा ख्वाब है', 'शरारत', 'हां, मैंने भी प्यार किया', 'मंुबई से आया मेरा दोस्त', 'दिल्ली-6' और 'द्रोण' जैसी बडे बजट की फ्लॉप फिल्में ही दी हैं। यह अलग बात है कि जूनियर बच्चन के पास आज भी बडी फिल्में हैं।
चालीस के दशक में कपूर खानदान से शुरू हुआ स्टार संस का सिलसिला आज भी जारी है। राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर के बाद रणधीर, ऋषि और अब रणबीर कपूर तक चार पीढियां फिल्मों में हीरो बनी हैं। कपूर खानदान की तीसरी पीढी के हीरो को विफलता ही मिली है। ऋ षि और रणबीर अपवाद कहे जा सकते हैं। ऎसा ही कुछ दूसरे खानदानों के चिरागों के बारे में भी कहा जा सकता है। सुनील दत्त और नर्गिस के पुत्र संजय दत्त पहली पारी में लंबी नाकामी के बाद दूसरी पारी में कामयाब रहे, तो सैफ अली खान सफल-विफल फिल्मों के झूले में झूल रहे हैं। निर्माता-निर्देशक ताहिर हुसैन के बेटे आमिर खान, लेखक सलीम खान के बेटे सलमान खान, फिल्म निर्माता सुरेंद्र कपूर के बेटे अनिल कपूर, एक्शन डायरेक्टर वीरू देवगन के बेटे अजय देवगन सफल साबित हुए, तो आमिर खान के भाई फैसल खान, सलीम खान के दो दूसरे बेटे सोहैल और अरबाज, अनिल कपूर के भाई संजय कपूर तथा जीतेंद्र के बेटे तुषार कपूर नकारा साबित हुए। इसी तरह अनिल कपूर की बेटी सोनम की डेब्यू फिल्म 'सांवरिया' बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिटी, फिर 'दिल्ली-6' का भी यही हश्र हुआ, लेकिन उनके पास ऑफर की आज भी कमी नहीं है।
कभी अमिताभ बच्चन को टक्कर देने वाले विनोद खन्ना के दोनों बेटे अक्षय खन्ना और राहुल खन्ना में दर्शकों को पिता जैसी कोई बात नजर नहीं आई। मिथुन चक्रवर्ती के बेटे मिमोह भी 'जिमी' में ऑडियंस को अपनी ताल पर थिरका पाने में नाकाम रहे। टैलेंटेड एक्टर अनुपम खेर और किरण खेर के बेटे सिकंदर खेर में न तो ग्लैमर था, न अपने माता-पिता की तरह प्रतिभा। राज बब्बर और स्मिता पाटील के बेटे प्रतीक बब्बर अपनी पहली फिल्म सुपर हिट 'जाने तू...या जाने ना' में बुझे-बुझे से लगे। राज बब्बर और नादिरा केे बेटे आर्य बब्बर का 2002 में 'अब के बरस' से डेब्यू भी फीका रहा। राजकुमार के बेटे पुरू राजकुमार भी बुरी तरह से नाकाम रहे।
बडा निर्माता होने का फायदा भी बिना टैलेंट वाले बेटों को नहीं मिल सकता। हैरी बावेजा ने अपने बेटे हरमन बावेजा को हीरो बनाने के लिए साठ करोड बहा डाले। पर 'लव स्टोरी 2050' में हरमन बावेजा-प्रियंका चोपडा का रोमांस भी फिल्म को नहीं बचा सका। वासु भगनानी ने भी अपने बेटे जैकी को स्टार बनाने के लिए तीस करोड पानी में बहा दिए। मनमोहन देसाई की पोती वैशाली के साथ जैकी की फिल्म 'कल किसने देखा' ने बॉक्स आफिस पर कल का मुंह नहीं देखा(Rajasthan Patrika,5 june,2010)।
रोचक पोस्ट, पढ़कर अच्छा लगा
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