जाने कहां गए वो दिन ..। रेडियो पर यह गीत सुनते ही झुमरी तलैया की बरबस याद आ जाती है। एक समय था, जब विविध भारती और रेडियो सीलोन का कोई फरमाइशी फिल्मी गीत ऐसा नहीं होता था, जिसमें झुमरीतलैया और चाईबासा के फरमाइशी न शामिल हों। तब झुमरीतलैया एक छोटा सा बाजार था लेकिन अभ्रक मिलने के कारण व्यवसाय का बड़ा केंद्र माना जाता था। रेडियो पर फिल्मी गानों की फरमाइशों के कारण झुमरीतलैया का नाम न केवल देश बल्कि विदेश में भी मशहूर हो गया था। लेकिन अब झुमरीतलैया से फरमाइश करने वाले गुमनामी के अंधेरे में खो गए हैं। उनका नाम अब मनपसंद गीतों की फरमाइश करने वालों की फेहरिस्त में नहीं मिलता। वर्ष 1953 से 1980 तक रेडियो सीलोन, विविध भारती, रेडियो अफगानिस्तान, वॉयस ऑफ अमेरिका और रेडियो इंडोनेशिया के फरमाइशी फिल्मी गीतों के कार्यक्रम में प्रतिदिन झुमरीतलैया का नाम कई बार सुना जाता था। यहां के श्रोताओं ने कई रेडियो श्रोता क्लबों का गठन किया था। इन क्लबों के बीच होड़ लगती थी कि कहां से कितने फरमाइशी पत्र भेजे जा रहे हैं। गीतों की फरमाइश भेजने में झुमरीतलैया के कुछ क्लबों को भारत में सर्वोच्च स्थान मिला था। झुमरीतलैया की पहचान बॉलीवुड में भी हुआ करती थी। कई फिल्मों में तो झुमरीतलैया के काल्पनिक पात्र का भी उपयोग किया गया है। फिल्मी गानों में तो झुमरीतलैया का नाम आना आम बात थी। पुरानी फिल्म हसीना मान जाएगी का चर्चित गीत था- मैं झुमरीतलैया जाऊंगी..नत्थू तेरे कारण जोगन बन जाऊंगी..मैं झुमरीतलैया जाऊंगी..। कालांतर में रेडियो के जरिये झुमरीतलैया का नाम बॉलीवुड तक पहुंचाने वाले और गीत-संगीत सुनने के शौकीन गुम होते गए। रेडियो के साथ मनोरंजन के अन्य साधनों ने सबकुछ उलट पुलट कर रख दिया। लोगों की मानसिकता में भी काफी बदलाव आ गया। रेडियो के प्रति रुझान घटता गया। फरमाइशों के माध्यम से झुमरीतलैया को चर्चित बनाने वालों में फिल्मी गीतों के दीवाने स्व. रामेश्र्वर वर्णवाल और स्व. गंगा लाल मगधिया का विशेष योगदान रहा। वर्ष 1953 के आसपास रामेश्र्वर वर्णवाल ने रेडियो में गीतों की फरमाइश भेजने की शुरुआत की थी। बाद में उनका यह शौक आदत में शरीक हो गया। उसके बाद गंगालाल मगधिया ने भी उनकी देखा-देखी रेडियो में फरमाइश भेजनी शुरू की। इसके बाद तो फरमाइश करने वालों की बाढ़ आ गई। झुमरीतलैया इतना चर्चित हुआ कि कई फिल्मी गानों के बोल और फिल्मों की कथाओं में झुमरीतलैया के नाम का उपयोग किया जाने लगा। इतना ही नहीं, उद्घोषक अमीन सायानी को प्रख्यात बनाने में झुमरीतलैया के श्रोताओं का काफी योगदान रहा है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,22.6.2010)।
Is report ke liye dhanywaad!
ReplyDeleteजी हाँ इस झुमरीतलैया का नाम तो हम भी सुना करते थे .....पर ये राज़ आज पता चला यहाँ से इतनी फरमाइश क्यों जाती थी .....!!!!
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