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Monday, June 28, 2010

यही सच है

महाराष्ट्र के नेताओं, अफसरों और माफिया के गठजोड़ पर वैसे तो कई हिंदी फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन इसी तरह की "दोस्ती" को फिल्म "यही सच है" में पहली बार एक ऐसे शख्स ने बयां किया है, जिसने इस गठजोड़ के बीच २० साल गुजारे हैं। भारतीय पुलिस सेवा के काबिल अफसरों में शुमार किए जाते रहे योगेश प्रताप सिंह देश में पुलिस की कार्यप्रणाली पर पहली प्रामाणिक फिल्म लगभग पूरी कर चुके हैं। "नईदुनिया" ने इस फिल्म के जो भी अंश देखे हैं, वो आम आदमी को तो भीतर तक झकझोरते ही हैं, देश की मौजूदा नौकरशाही के लिए भी आंखे खोल देने वाले हैं।

देश की सेवा के लिए संविधान की रक्षा की शपथ लेने वाले एक नौजवान आईपीएस अफसर को अगर नौकरी के पहले ही दिन उसका भ्रष्ट वरिष्ठ अधिकारी जलील करे। उसकी ईमानदारी से की गई जांच की जद में अगर किसी राज्य का मुख्य सचिव से लेकर गृहमंत्री तक आ जाए तो क्या होता है, योगेश प्रताप इस सबका लेखा जोखा जनता के सामने एक फीचर फिल्म के जरिए जल्द पेश करने जा रहे हैं। योगेश प्रताप ने करीब पांच साल पहले महाराष्ट्र की नौकरशाही से तंग आकर भारतीय पुलिस सेवा की नौकरी छोड़ दी थी। नौकरी के दौरान ही उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से एलएलएम की पढ़ाई की और पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप करते हुए गोल्ड मेडल हासिल किया। इन दिनों वह बंबई हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं और आम नागरिकों के हित के लिए लगातार जनहित याचिकाएं दाखिल करते रहते हैं। उनकी याचिकाओं पर हुए फैसलों के चलते कई बार महाराष्ट्र सरकार को अपने फैसले बदलने पड़े हैं, जिनमें मुंबई के उपनगरों में बिल्डर्स को फायदा पहुंचाने के लिए बढ़ाई गई एफएसआई के फैसले का इसी महीने उच्च न्यायालय में खारिज हो जाना भी शामिल है।

अपने बहुचर्चित उपन्यास कार्नेज बाइ एंजेल्स पर फिल्म बना रहे योगेश प्रताप ने इस फिल्म की पटकथा खुद लिखी है और निर्देशन की जिम्मेदारी भी खुद निभाई है। उपनगर के एक स्टूडियो में चल रहे फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान "नईदुनिया" को इसके काफी अंश देखने को मिले। फिल्म में जहां एक दृश्य में एक नए आईपीएस अफसर को एक हवलदार की ईमानदारी से प्रेरित होकर पूरी उम्र रिश्वत न लेने की कसम खाते दिखाया गया है, वहीं एक दृश्य ऐसा भी है जिसमें राज्य के एक दक्षिण भारतीय मुख्य सचिव को गृहमंत्री के पैरों पर गिरकर अपने खिलाफ एफआईआर दर्ज न होने देने के लिए गिड़गिड़ाते दिखाया गया है। एक दूसरे दृश्य में मुंबई के एक पुलिस कमिश्नर को अपना कार्यकाल बढ़वाने के लिए अशोक की लाट लगी आईपीएस कैप गृहमंत्री के आगे निछावर करते दिखाया गया है। सूत्रों के मुताबिक ये दोनों दृश्य योगेश प्रताप ने अपने कार्यकाल के दौरान हुए अनुभवों से उठाए हैं।

फिल्म में राज्य के एक शक्तिशाली नेता के काम करने के तरीकों को बारीकी से दिखाया गया है, जो मौजूदा अशोक चव्हाण सरकार में भी काफी अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। फिल्म में उनके भतीजे और मुंबई के एक बहुचर्चित होटल मालिक का वह गठजोड़ भी दिखाया गया है, जिसके बारे में राज्य में मंत्रालय से लेकर कॉरपोरेट जगत का हर आदमीजानता है(पंकज शुक्ल,Nai Dunia,Delhi,28.6.2010) ।

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