स्वागत

Wednesday, June 30, 2010

अलग रूप में रावणःडा. गौरीशंकर राजहंस

जब से मणिरत्नम की फिल्म रावण रिलीज हुई है, मीडिया में बहस छिड़ गई है कि क्या रावण सचमुच इतना बुरा था जितना उसे दर्शाया जाता है। इस संदर्भ में मुझे बरबस 1996 में कंबोडिया की रामलीला की याद आ गई। थाईलैंड, लाओस, म्यांमार, वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया और सिंगापुर सहित पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में हर वर्ष किसी न किसी रूप में रामलीला का मंचन होता है। 1996 में जब मैं कंबोडिया में भारत का राजदूत था तो कंबोडिया की सरकार ने संसार के सबसे बड़े हिंदू मंदिर अंकोरवाट के पास विभिन्न देशों से आई हुई रामलीला मंडलियों द्वारा रामायण के मंचन का आयोजन किया था। भारत से भी एक रामलीला मंडली सरकार ने भेजी थी। दक्षिण-पूर्व एशिया के अलावा मॉरीशस, सूरीनाम, गयाना आदि देशों से भी जहां भारतीय मूल के लोग बड़ी संख्या में रह रहे हैं, रामलीला मंडलियां वहां आई थीं। कंबोडिया के महाराज और प्रधानमंत्री भी रामलीलाओं को चाव से देख रहे थे। हर मंडली को रामायण के किसी एक दृश्य का मंचन करना था। हर मंडली को रामायण के दृश्य के मंचन के बाद संक्षेप में कोई टिप्पणी करनी होती थी। सिंगापुर की एक 20-22 वर्ष की लड़की ने सीता का रोल किया था और नाटक के अंत में उसने अत्यंत दृढ़ शब्दों में कहा था, कब तक महिलाएं अग्नि में प्रवेश कर अपने सतीत्व की परीक्षा देती रहेंगी और इसके बावजूद कब तक उन्हें बनवास मिलता रहेगा? जो मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं, क्या उन्होंने स्त्री जाति का घोर अपमान नहीं किया? उसकी इस टिप्पणी से सभी सन्न रह गए। रामलीला के अंत में कंबोडिया के प्रधानमंत्री और दूसरे मेहमानों ने यही कहा कि सिंगापुर की लड़की ने जो कुछ कहा वह शत-प्रतिशत सही है। रामलीला के अंत में मैंने कंबोडिया के प्रधानमंत्री से पूछा कि ज्यादातर रामलीला मंडलियों ने रावण द्वारा धोखे से सीता के हरण का दृश्य क्यों दिखाया? इस पर उनका जवाब था कि महापंडित होने के बावजूद रावण में राक्षसी प्रवृति थी, जिसके कारण वह धोखे से सीता को हर ले गया। संस्कृत के प्रकांड विद्वान डॉ. जनार्दन मिश्र ने एक पुस्तक लिखी है-भारतीय संस्कृति में प्रतीकवाद। उनका कहना है कि देवी-देवताओं के बारे में जो कथाएं प्रचलित हैं उनका सत्य यह है कि वे मात्र प्रतीक हैं। दुर्गा को अष्टभुजा वाली इसलिए कहा जाता है कि वह एक ऐसी शक्ति थीं जो आठ हाथों से दानवों का या दुष्ट लोगों का नरसंहार करती थी। लक्ष्मी की चार भुजाएं इसलिए दर्शाई जाती हैं कि जिस पर उनकी कृपा होती है उस पर वह खुले हाथों से धन वर्षा करती हैं। इसी प्रकार रावण के बारे में कहा जाता है कि उसके दस मुख थे। सही अर्थ में उसके कोई दस मुख नहीं थे। महापंडित होने के बावजूद वह महाधूर्त था और दस लोगों से दस तरह की बातें करता था। सत्ता के मद में उसने अपने हितैषियों को यहां तक कि अपने भाई विभीषण को भी घर से निकाल दिया था। उनके कहने का अर्थ है कि महापंडित होने के बावजदू सत्ता के मद में लोग इतने चूर हो जाते है कि उन्हें अपने-पराये और अच्छे-बुरे का ज्ञान ही नहीं रहता। यह बात आज से पांच हजार वर्ष पहले भी सच थी और आज भी सच है। बात जब रावण की आती है तो भारतीय राजनीति रावणों से ही भरी दिखाई पड़ती है। अनेक राजनेता शराफत का मुखौटा ओढ़े रहते हैं और उसके पीछे वे सारे कृत्य करते हैं जो कभी रावण किया करता था। सही सलाह देने वालों को वे अपमानित कर अपनी पार्टी से निकाल देते हैं। सज्जन लोगों को तरह-तरह से प्रताडि़त करते हैं। ये विकास के सारे पैसे हड़प लेते हैं। ऐसे राजनेता प्राय: सभी पार्टियों में हैं और बड़े मजे से आज भी रावण राज चला रहे हैं। स्थिति अत्यंत निराशाजनक है। चाहे जितने कानून बना लिए जाएं, चाहे मीडिया में जितनी भ‌र्त्सना की जाए, सच तो यह है कि आधुनिक रावण आज भी फल-फूल रहे हैं। दुखी और निराश जनता आर्तनाद कर उठती है और बार-बार सोचती है कि उसे आज के इन रावणों से मुक्ति कब और कैसे मिलेगी?(दैनिक जागरण,30.6.2010)

2 comments:

  1. मुश्किल है बहुत मुश्किल है इन दानवी प्रवृत्तियों से पार पाना आज के दौर में .... कल की बात और है इसलिए कहा सकता है 'इस रात की भी सुबह होगी' (भले ही कुछ दशक बाद ही सही) ..उम्मीद तो रखनी ही चाहिये.. क्यों मान लिया जाए कि मेरे उत्तराधिकारी भी मुझ से ही नालायक ही होंगे ...

    डा. गौरीशंकर राजहंस के नाम से उनका उपन्यास 'तुम फिर आना' याद आया जिसे बाद में नाट्यांतरित कर प्रस्तृत किया गया था

    ReplyDelete

न मॉडरेशन की आशंका, न ब्लॉग स्वामी की स्वीकृति का इंतज़ार। लिखिए और तुरंत छपा देखिएः