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Friday, February 12, 2010

शिवसेना के सामने शाहरुख-महेश भट्ट

एक बार एक बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा था कि जो एकमात्र नई चीज आप देखना चाहते हैं वह इतिहास के उन अध्यायों में है जो आपने नहीं पढ़े हैं। इस अमूल्य विचार में मैं तब डूबता चला गया जब मैंने एक टेलीविजन चैनल की ब्रेकिंग न्यूज में देखा कि शिवसेना के गुंडे दक्षिण मुंबई के शानदार मेट्रो मल्टीप्लेक्स में घुसने में कामयाब हो गए और न केवल माई नेम इज खान की एडवांस बुकिंग में बाधा पहुंचाई, बल्कि इस मल्टीप्लेक्स की महंगी स्क्रीन को भी फाड़ डाला। यह घटना राहुल गांधी की मुंबई की विजय यात्रा कहे जाने वाले दौरे के बाद हुई। इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी शिवसेना के गढ़ में अपनी चमक बिखेरने में कामयाब रहे। मुंबई में शिवसेना के किले में राहुल ने लोकल ट्रेन की सवारी की और इसके बाद बड़ी आसानी से सेना के हाथ से बाजी छीन ले गए। उन्होंने देश को संदेश दिया कि अब सेना में दमखम नहीं रह गया है और यह दंतहीन बूढ़ा शेर मात्र है, जो गुर्रा तो सकता है, लेकिन शिकार नहीं कर सकता। सेना ने बड़ी चतुराई से देश को यह जताने की कोशिश की कि अब वह टकराव के अपने पुराने रवैये से पीछे हट रही है और माई नेम इज खान की रिलीज में कोई बाधा खड़ी नहीं करेगी, किंतु अब यह साफ हो गया है कि यह उसकी रणनीति थी। इसके सुप्रीमो फिर से हमला करने से पहले कुछ समय चाहते थे। मैं इस तरह का षड्यंत्र दो दशक पहले भी देख चुका हूं। तब रणनीति यही थी, बस लक्ष्य अलग था। 1990 की बात है। पाकिस्तान के क्रिकेटर से अभिनेता बने मोहसिन खान अभिनीत मेरी फिल्म साथी मुंबई में 15वें सप्ताह में भी हाउसफुल चल रही थी। तभी अपने मजबूत गढ़ दादर में शिवसैनिकों ने थियेटर पर हल्ला बोल दिया और कहा कि पाकिस्तानी अभिनेता होने के कारण फिल्म का प्रसारण तुरंत बंद किया जाए। बहुत से लोगों को यह नहीं पता कि पाकिस्तान से घृणा शिवसेना का तुरुप का इक्का है। जब भी उसकी राजनीतिक नैया मझधार में फंसती है वह इसे चल देती है और कुछ कारणवश यह हमेशा कारगर भी रहा है। चाहे यह स्वीकार करने के लिए लोग मुझसे कितनी भी घृणा करें, किंतु सच्चाई यही है कि बाल ठाकरे जो साफ-साफ कहते हैं वही इस देश के बहुत से लोगों की भी भावना है। मोहसिन खान के खिलाफ प्रदर्शन के बाद सिगार का धुआं उड़ाते और बीयर की चुस्कियां लेते शिवसेना प्रमुख हमारे मामले पर गौर फरमाने को तैयार हो गए। काफी जद्दोजहद के बाद लगा कि मोहसिन खान सेना सुप्रीमो को इस बात के लिए राजी करने में सफल हो गए हैं कि एक पाकिस्तानी नागरिक होने के बावजूद वह भारत में रहकर काम कर सकते हैं। बाल ठाकरे ने वायदा किया कि वह निर्माताओं के संग प्रेस कांफ्रेंस में हिस्सा लेंगे, जिसमें विरोध प्रदर्शन बंद करने का ऐलान किया जाएगा। उस दिन मोहसिन बहुत खुश थे। उन्होंने सच में विश्वास कर लिया था कि बालीवुड में एक अभिनेता के तौर पर उनके कैरियर में अब शिवसेना कोई बाधा खड़ी नहीं करेगी, किंतु वह कितने गलत थे! प्रेस कांफ्रेंस हुई, किंतु शिवसेना की तरफ से कोई भी भाग लेने नहीं आया। मुझे किसी गड़बड़ी की गंध आने लगी। करीब 14 घंटे बाद मोहसिन खान जब चेंबूर में आरके स्टूडियो से बाहर आ रहे थे तो कुछ शिवसैनिकों ने उनकी कार पर हमला कर उसके शीशे तोड़ दिए। उनकी आंख में टूटे कांच की किरचें घुस गईं और वह अंधा होने से बचे। मैं पूरी रात मातोश्री में बाल ठाकरे से संपर्क स्थापित करने की कोशिश करता रहा ताकि उन्हें बता सकूं कि क्या हुआ है, लेकिन मुझे बताया गया कि वह घर पर नहीं हैं। कुछ दिनों बाद मोहसिन खान ने मायूस होकर भारत छोड़ दिया और इस तरह शिवसेना की जीत हुई। जब मैं यह सब लिख रहा हूं तब शिवसैनिकों की ओर से शाहरुख खान को नए सिरे से धमकियों दी जा रही हैं। जब मैंने शाहरुख को मोहसिन वाली घटना के बारे में फोन पर बताया तो उन्होंने कहा, लेकिन आज हालात अलग हैं। महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार उनके साथ मजबूती से खड़ी है। देश-दुनिया के लोगों और मीडिया का जैसा सहयोग मुझे मिल रहा है उससे मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि मुझे शिवसेना से माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं। मैं, करन जौहर और काजोल को उसके लिए माफी मांगने की जरूरत भी नहीं जो मैंने कहा है। अगर वे कानून एवं व्यवस्था के लिए संकट खड़ा करते हैं और मेरी फिल्म का प्रदर्शन रोकते हैं तो इससे मुझे अच्छा-खासा नुकसान होगा, लेकिन ऐसा होता है तो देखा जाएगा। मैं झुकूंगा नहीं, क्योंकि यदि मैं ऐसा करता हूं तो अपने बच्चों को क्या मुंह दिखाऊंगा? मेरे पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और ये लोग मुझे गद्दार कह रहे हैं। मैं राष्ट्र की पूंजी हूं और यह मानता हूं कि मैंने देश को गौरव के क्षण प्रदान किए हैं। मैं खुद को उनके सामने दीनहीन नहीं साबित करूंगा। मैं बाल ठाकरे से मिलकर उनके साथ बात करने को तैयार हूं, लेकिन मैं अपनी राजनीतिक विचारधारा पर बहस नहीं करुंगा। वे अपनी विचारधारा पर अडिग रहें, मैं अपनी पर रहूंगा। कहावत है कि जब दो हाथी लड़ते हैं तो घास ही कुचली जाती है। शिवसेना और कांग्रेस की लड़ाई में जिसे सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है वह फिल्म इंडस्ट्री है और जैसा कि हमेशा होता है, बालीवुड में मौन की राजनीति हो रही है। सबसे अधिक पीड़ादायक जुल्म करने वाले के बोल नहीं, बल्कि अपने लोगों की चुप्पी है। मैं चाहता हूं कि शाहरुख खान जैसे और ऐसे साहसी लोग सामने आएं जो खुद पर यकीन करते हैं।
(दैनिक जागरण,12.2.10 में यथाप्रकाशित)

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