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Wednesday, July 21, 2010

आए तुम याद मुझे

'जिंदगी कैसी है पहेली' (आनंद), 'रजनीगंधा फूल तुम्हारे' (रजनीगंधा) 'आए तुम याद मुझे' (मिली) और 'रिमझिम गिरे सावन' (मंजिल) जैसे क्लासिक गीतों के रचयिता योगेश को पिछले दिनों फालके अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया। फिल्मी गीतों के जरिए हिंदी का परचम बुलंद करने वाले वरिष्ठ गीतकार योगेश इस अवार्ड के साथ यहां नए-पुराने गीतों के बारे में विशिष्ट बातें शेयर कर रहे हैं।
फालके अकादमी अवार्ड मिलने पर
जब मेरा नाम अवार्ड के लिए नॉमिनेट हुआ, मुझे बडी हैरानी हुई। दर्शक मुझे पहचानते हैं, लेकिन मैं लो प्रोफाइल में रहता हूं। इंडस्ट्री के कई लोगों ने अपनी सफलता के बाद मुझे तवज्जो नहीं दी, लेकिन मेरा अपना फ्रैंड्स सर्किल था। जब मुझे अवार्ड मिला, मैं वाकई हैरान रह गया। आश्चर्य हुआ जानकर कि आज की इंडस्ट्री में भी मेरे गीत सुने जाते हैं।
फिल्मों के लिए बहुत कम लिखने के सवाल पर
मैं जानता हूं, लोग मेरे गीतों को पसंद करते हैं, लेकिन इन दिनों और भी लेखक हैं, जो बहुत ही संजीदा और दार्शनिक गीत लिख रहे हैं। दूसरी बात यह है कि 'आनंद' के बाद मैंने आर. डी. बर्मन, एस. डी. बर्मन, कल्याणजी-आनंदजी, उषा खन्ना जैसे संगीतकारों के साथ काम किया है, पर मैं किसी के पास काम मांगने नहीं गया। तीसरी वजह यह है कि मेरी अब उम्र हो चुकी है और मेरे जमाने के लोग या तो रिटायर हो चुके हैं या इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। और फिर आज तो सिफारिश का जमाना है। इस पर कौन ध्यान देता है कि कौन अच्छा लिख रहा है और कौन नहीं।
क्या इन दिनों फिल्मों के लिए गीत लिख रहे हैं?
हां, लेकिन बडी फिल्मों के लिए नहीं। छोटी-छोटी तीन-चार फिल्में कर रहा हूं। शंकर (महादेवन) ने भी मुझे दो गीत लिखने को कहा है।
आज के गीतों के बारे में आपका नजरिया?
जो गीत इन दिनों चल रहे हैं, उनमें कुछ गीतकारों के कुछ गीत अच्छे हैं। पुराने दौर में किसी फिल्म में यदि दस गाने होते थे, तो दसों अच्छे होते थे। मिसाल के लिए राज कपूर की कोई भी फिल्म ले लें। आज सिर्फ एक या दो ही अच्छे मिलेंगे।
आप मानते हैं कि आज के गीतों में गहराई कम है?
जब हमने गीतकार बनना तय किया, तब जमकर साहित्य पढते थे। गालिब, महादेवी वर्मा, बच्चनजी, नीरजजी की रचनाएं पढते थे। हर लेखक की या तो साहित्य में गति थी या फिर वे काफी मैच्योर होते थे। आज के गीतों में गहराई नहीं है, क्योंकि फिल्म की कहानियों में ही दम नहीं है। फिर भी इंडस्ट्री में जावेद साहब या गुलजार जैसे उम्दा गीतकार हैं। वे बहुत ही खूबसूरत गीत लिख रहे हैं। कुछ अर्सा पहले 'आनंद' जैसी ही एक फिल्म आई 'कल हो ना हो'। इसका टाइटल सॉन्ग जावेद साहब ने बहुत ही अच्छा लिखा है। हालांकि आज की फिल्में पहले जैसी नहीं बनतीं। बेसिर-पैर की, सिर्फ टाइमपास एंटरटेनमेंट है। और जो लोगों को खाने को मिलेगा, वे वही खाएंगे, क्या करेंगेक्
क्या आपको अपने हिसाब से गीत लिखने की पूरी आजादी थी?
बिलकुल। मैंने शुरूआत में संगीतकार सलिल चौधरी के लिए गीत लिखे। उस समय जब उर्दू लफ्जों के इस्तेमाल का चलन था, मैंने 'रजनीगंधा फूल तुम्हारे' गीत में 'अनुरागी' और 'कई बार यूं ही देखा है' में 'सीमा रेखा' जैसे शब्दों का उपयोग किया। सलिल चौधरी ने कभी नहीं कहा कि 'कौन समझेगा 'सीमा रेखा'क्' पंचम'दा के साथ काम करते समय भी ऎसी ही छूट थी। कहीं भी किसी ने मुझे टोका नहीं।

आपने जाने-माने संगीतकार सलिल चौधरी के साथ लगातार काम किया है। आप उन्हें अब मिस करते होंगे?
बहुत ज्यादा मिस करता हूं। मैं गीतकार तो बना, पर मैच्योरिटी तभी आती है जब सलिल दादा जैसी शख्सियत का सान्निध्य मिलता है। वे मेरे गुरू और मार्गदर्शक दोनों थे। दादा खुद बहुत ही अच्छी बंगाली कविताएं लिखते थे। उनके सामने तो मैं कुछ भी नहीं हूं। जब मैंने शुरूआत की थी, तब मुझ पर दादा की अक्सर फटकार पडती थी। वे मुझे बार-बार याद दिलाते कि मैं गीत फिल्म के लिए लिख रहा हूं। उन्होंने समझाया भी कि फिल्म के लिए गीत लिखना एक बात है और कविता लिखना एक बात। दोनों में काफी अंतर है।

क्या गीतकारों को पूरा महत्व मिलता है?
लोगों को गीत याद रहते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि गीत किसने लिखा है। आज भी जब मेरा परिचय करवाया जाता है, तो लोगों को लगता है कि मेरा नाम कुछ सुना-सुना-सा है, पर वे पहचान नहीं पाते। और जब किसी को अचानक याद आ जाता है, तो बोल पडते हैं: 'ओह! योगेशजी...गीतकार!' और फिर वे मेरे पैर छूते हैं।

आज के गीतों में आपका कोई पसंदीदा गीत
इन दिनों तो ऎसा कोई गीत नहीं सुना। पर हां, मुझे 'कलयुग' का 'तुझे देख देख' और 'मैट्रो' का 'है तुझे भी इजाजत' बेशक अच्छे लगे।
(कृतिका बेहरावाला,राजस्थान पत्रिका,17 जुलाई,2010)

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