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Saturday, July 31, 2010

...और खोद दी गईं रफी, नौशाद व मधुबाला की कब्रें

तेजी से बढ़ती आबादी और आवास की विकराल समस्या के मद्देनजर मुंबई के जुहू स्थित एक कब्रिस्तान की जगह पर इमारत बनाने का फैसला कि या गया और इसके लिए खोदी गई कब्रों में एक कब्र महान पार्श्व गायक मोहम्मद रफी की भी थी। मुंबई के इंटीरियर डिजाइनर रूपेश ने बताया, ‘मुंबई में आवास की विकराल समस्या है। इसीलिए जूहू स्थित कब्रिस्तान की जगह पर एक इमारत बनाने का फैसला किया गया। इसके लिए वहां कब्रें खोदी गईं जिनमें रफी, नौशाद, मधुबाला आदि की कब्रें भी थीं।’ इस इमारत की अंदरूनी सज्जा के लिए आवेदन करने वालों में रू पेश भी थे लेकिन यह काम उन्हें नहीं मिला। लोग उनकी कब्र की जगह नहीं भूले हैं। रफी फैन क्लब चलाने वाले बीनू नायर कहते हैं, ‘अब हम रफी की कब्र के समीप खड़े नारियल के एक पेड़ के समीप एकत्र होकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।’ 31 जुलाई 1980 को दिल का दौरा पड़ने से इस दुनिया को विदा कहने वाले रफी ने हिन्दी फिल्मों के लगभग हर बड़े सितारे को अपनी आवाज दी थी। उन्हें 1965 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था(हिंदुस्तान,दिल्ली,31.7.2010)।

इसी विषय पर दैनिक जागरण की रिपोर्ट कहती है कि 24 दिसंबर 1924 को जन्मे रफी ने उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, उस्ताद वाहिद खान, पंडित जीवनलाल मट्टू और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत सीखा। मंच पर रफी ने पहली प्रस्तुति 13 साल की उम्र में दी। पंजाबी फिल्म गुल बलूच (1941) के लिए उन्होंने पहली बार पा‌र्श्वगायन किया। उसी साल आकाशवाणी लाहौर ने उन्हें अपने लिए गाने का न्योता दिया। लाहौर से 1944 में रफी मुंबई आए और नौशाद के साथ गायन और दोस्ती का अटूट रिश्ता शुरू हुआ। इस जोड़ी ने 149 गीत दिए। इनमें 81 सोलो गीत रफी के थे। 1950- 60 तक रफी ओपी नैयर, शंकर जयकिशन और एस.डी. बर्मन जैसे संगीतकारों के पसंदीदा गायक बने रहे। 1948 में रफी ने राजेंदर कृष्ण का लिखा गीत सुनो सुनो ए दुनिया वालो बापू की ये अमर कहानी गाया। यह गीत सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने रफी को आमंत्रित किया।

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