लता मंगेशकर का जिक्र चले और करिश्मों की बात न आए हो नहीं सकता। संगीतकार आनंद जी जहां अब भी फिल्म सरस्वतीचंद्र के अपने गाने "फूल तुम्हें भेजा है खत में" की शुरुआत में आने वाले फ अक्षर और इसे गाने में होने वाली मुश्किलों के लता के निकाले तोड़ का बखान करते नहीं थकते। मन्ना डे बताते हैं कि कैसे बरसों पहले लता उन्हें बॉम्बे टाकीज में अनिल बिस्वास के एक गाने की रिहर्सल के दौरान मिली थीं। नई पीढ़ी के शमीर टंडन जिनके लिए लता अब तक गाती रही हैं, उन्हें कायनात को मिला सबसे खूबसूरत तोहफा मानते हैं।
बढ़ती लता को जैसे कभी नापा नहीं जाता वैसे ही लता मंगेशकर को भी अपने जन्मदिन पर खास धूम धमाका करने की आदत नहीं रही है। लता ने मंगलवार को अपना ८१वां जन्मदिन अपने अजीजों के साथ मनाया और लोगों के भेजे मुबारकबाद के संदेशों में खोई रहीं। और, ऐसी ही यादों में खोया रहा पूरा हिंदी सिनेमा। संगीतकार जोड़ी कल्याण जी आनंद जी के आनंद जी ने लता मंगेशकर के साथ तमाम गाने रिकॉर्ड किए हैं, लेकिन अगर उनसे पूछा जाए किसी मुश्किल गीत के बारे में तो वह फिल्म सरस्वतीचंद्र का गाना - फूल तुम्हें भेजा है खत में - का नाम लेते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प वर्ग यानी वर्णमाला के प फ ब भ म पांचों अक्षरों में होंठ चिपकते हैं, लेकिन फ बोलते समय जिस तरह से होंठ अलग होते हैं, उसके चलते माइक में आवाज फट जाती है। आनंद जी बताते हैं, जब यह गाना हम रिकॉर्ड करने पहुंचे और फ अक्षर को लेकर मैंने उनसे बात की तो वह बोलीं, मैं कर लूंगी। इसके बाद गाना रिकॉर्ड हुआ और अगर आप ये गाना फिर से सुनें तो पाएंगे कि कितनी खूबसूरती से उन्होंने फूल को सीधे गाने के बजाय फू से ल तक आने के बीच गजब की मुरकियां लीं हैं। यही उनके गायन की खूबसूरती है और इसी के लिए वह महान मानी जाती हैं।
अदाकारी के शहंशाह माने जाने वाले दिलीप कुमार अपने करियर के जब सबसे ऊंचे मुकाम पर थे तो उनकी बस एक ही तमन्ना थी और वह यह कि किसी तरह उन्हें लता मंगेशकर के साथ गाने का मौका मिल जाए। इसका वह अक्सर अपने संगीत निर्देशक मित्रों से जिक्र भी करते। दिलीप कुमार की यह तमन्ना पूरी हुई थी फिल्म मुसाफिर में जिसमें उन्होंने लता के साथ-लागी छूटे ना-गाना गाया था। दिलीप कुमार उन्हें खुदाई नेमत की खिताब देते हैं। मन्ना डे तो लता मंगेशकर का जिक्र करते ही उन दिनों की यादों में खो जाते हैं, जब वह बॉम्बे टाकीज में उनसे पहली बार मिले थे। वह कहते हैं, तब वह लता नहीं थी। वह वहां एक बेंच पर बैठी थी और अनिल बिस्वास ने मुझसे इस लड़की का गाना सुनने को कहा। लता ने गाना शुरू किया तो मुझे तो ऐसे लगा कि मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई है। इतना शुद्ध और इतना पवित्र गायन मैंने इससे पहले कभी नहीं सुना था। तब लता पैदल ही स्टूडियो से स्टूडियो आती जाती थीं। उनके संघर्ष और उनकी लगन ने उन्हें आज यहां तक पहुंचाया है। नई पीढ़ी में संगीतकार समीर टंडन के लिए लता मंगेशकर के घर के दरवाजे हमेशा खुले रखते हैं। लता का अब तक का आखिरी फिल्मी गाना समीर की फिल्म "जेल" के लिए ही रहा है। समीर कहते हैं, लता जी हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत रही हैं। अब वह भजन ही ज्यादा गाती हैं और वह भी तब जब यह उनके मन को छू जाए। लता जी के मेरे पसंदीदा गीतों की बात करें तो मुझे उनके गाए दो गाने-तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं और तेरे बिना जिया जाए ना..बेहद पसंद हैं। फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर का कहना है कि लता मंगेशकर के गाने के बिना उनकी कोई फिल्म पूरी नहीं लगती और उनका सबसे पसंदीदा लता मंगेशकर का गाया गाना है- कांटों से खींचके ये आंचल, तोड़ के बंधन बांधे पायल(पंकज शुक्ल,नई दुनिया,दिल्ली,29.9.2010)।
बढ़ती लता को जैसे कभी नापा नहीं जाता वैसे ही लता मंगेशकर को भी अपने जन्मदिन पर खास धूम धमाका करने की आदत नहीं रही है। लता ने मंगलवार को अपना ८१वां जन्मदिन अपने अजीजों के साथ मनाया और लोगों के भेजे मुबारकबाद के संदेशों में खोई रहीं। और, ऐसी ही यादों में खोया रहा पूरा हिंदी सिनेमा। संगीतकार जोड़ी कल्याण जी आनंद जी के आनंद जी ने लता मंगेशकर के साथ तमाम गाने रिकॉर्ड किए हैं, लेकिन अगर उनसे पूछा जाए किसी मुश्किल गीत के बारे में तो वह फिल्म सरस्वतीचंद्र का गाना - फूल तुम्हें भेजा है खत में - का नाम लेते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प वर्ग यानी वर्णमाला के प फ ब भ म पांचों अक्षरों में होंठ चिपकते हैं, लेकिन फ बोलते समय जिस तरह से होंठ अलग होते हैं, उसके चलते माइक में आवाज फट जाती है। आनंद जी बताते हैं, जब यह गाना हम रिकॉर्ड करने पहुंचे और फ अक्षर को लेकर मैंने उनसे बात की तो वह बोलीं, मैं कर लूंगी। इसके बाद गाना रिकॉर्ड हुआ और अगर आप ये गाना फिर से सुनें तो पाएंगे कि कितनी खूबसूरती से उन्होंने फूल को सीधे गाने के बजाय फू से ल तक आने के बीच गजब की मुरकियां लीं हैं। यही उनके गायन की खूबसूरती है और इसी के लिए वह महान मानी जाती हैं।
अदाकारी के शहंशाह माने जाने वाले दिलीप कुमार अपने करियर के जब सबसे ऊंचे मुकाम पर थे तो उनकी बस एक ही तमन्ना थी और वह यह कि किसी तरह उन्हें लता मंगेशकर के साथ गाने का मौका मिल जाए। इसका वह अक्सर अपने संगीत निर्देशक मित्रों से जिक्र भी करते। दिलीप कुमार की यह तमन्ना पूरी हुई थी फिल्म मुसाफिर में जिसमें उन्होंने लता के साथ-लागी छूटे ना-गाना गाया था। दिलीप कुमार उन्हें खुदाई नेमत की खिताब देते हैं। मन्ना डे तो लता मंगेशकर का जिक्र करते ही उन दिनों की यादों में खो जाते हैं, जब वह बॉम्बे टाकीज में उनसे पहली बार मिले थे। वह कहते हैं, तब वह लता नहीं थी। वह वहां एक बेंच पर बैठी थी और अनिल बिस्वास ने मुझसे इस लड़की का गाना सुनने को कहा। लता ने गाना शुरू किया तो मुझे तो ऐसे लगा कि मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई है। इतना शुद्ध और इतना पवित्र गायन मैंने इससे पहले कभी नहीं सुना था। तब लता पैदल ही स्टूडियो से स्टूडियो आती जाती थीं। उनके संघर्ष और उनकी लगन ने उन्हें आज यहां तक पहुंचाया है। नई पीढ़ी में संगीतकार समीर टंडन के लिए लता मंगेशकर के घर के दरवाजे हमेशा खुले रखते हैं। लता का अब तक का आखिरी फिल्मी गाना समीर की फिल्म "जेल" के लिए ही रहा है। समीर कहते हैं, लता जी हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत रही हैं। अब वह भजन ही ज्यादा गाती हैं और वह भी तब जब यह उनके मन को छू जाए। लता जी के मेरे पसंदीदा गीतों की बात करें तो मुझे उनके गाए दो गाने-तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं और तेरे बिना जिया जाए ना..बेहद पसंद हैं। फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर का कहना है कि लता मंगेशकर के गाने के बिना उनकी कोई फिल्म पूरी नहीं लगती और उनका सबसे पसंदीदा लता मंगेशकर का गाया गाना है- कांटों से खींचके ये आंचल, तोड़ के बंधन बांधे पायल(पंकज शुक्ल,नई दुनिया,दिल्ली,29.9.2010)।