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Saturday, September 25, 2010

शहरयार को ज्ञानपीठ

उर्दू के नामचीन शायर और जाने-माने गीतकार अखलाक मुहम्मद खान शहरयार को 44वां ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। उन्हें यह पुरस्कार वर्ष 2008 के लिए दिया जाएगा। जाने-माने लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता डॉ. सीताकांत महापात्र की अध्यक्षता में ज्ञानपीठ चयन समिति की बैठक में शहरयार को पुरस्कृत करने का निर्णय लिया गया। चयन समिति में प्रो. मैनेजर पांडे, डॉ. के. सच्चिदानंदन, प्रो. गोपीचंद नारंग, गुरदयाल सिंह, केशुभाई देसाई, दिनेश मिश्रा और रवींद्र कालिया शामिल थे। उर्दू के जाने-माने शायर शहरयार का जन्म 1936 में आंवला (बरेली, उत्तरप्रदेश) में हुआ। इस 74 वर्षीय शायर का पूरा नाम कुंवर अखलाक मुहम्मद खान है, लेकिन इन्हें इनके उपनाम शहरयार से ही ज्यादा पहचाना जाना जाता है। वर्ष 1961 में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1966 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के लेक्चरर के तौर पर काम शुरू किया। वह यहीं से उर्दू विभाग के अध्यक्ष के तौर पर सेवानिवृत्त भी हुए। बॉलीवुड की कई हिट हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखने वाले शहरयार को सबसे ज्यादा लोकप्रियता 1981 में आई उमराव जान से मिली। इस वक्त की उर्दू शायरी को गढ़ने में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फिराक सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया।
शहरयार के मायने होते हैं बादशाह। आज ज्ञानपीठ पुरस्कार पाकर शहरयार वाकई में अदब की दुनिया के ताजदार हो गए। उनके लिखे फिल्मी गीत तीन दशक से लोगों की जुबान पर हैं। जदीद गजल और नज्म की गुफ्तगू शहरयार के जिक्र के बगैर अधूरी मानी जाती है। उर्दू दुनिया के मकबूल नाम शहरयार ने फिल्मों के लिए लिखी गजलों में रोमानी खयालात को भी इतने सलीके से बयां कर दिया कि वह जिंदगी का खास और सुखनवर हिस्सा महसूस होता है। हालांकि उनकी शायरी का कैनवास इंसानी जिंदगी की अंदरूनी घुटन के साथ ही समाजी मसाइल और उलझनों की बेहतरीन अक्काशी है। आजकल ताजदारे गजल अपने लख्ते जिगर के पास दुबई में हैं। सो फोन पर लंबी बात तो हो नहीं सकी। दैनिक जागरण से मुखतसर सी गुफ्तगू के दौरान उन्होंने खुशी का इजहार करते हुए कहा कि मुल्क का सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ हासिल करना उनकी जिंदगी की अहम उपलब्धि है। उन्होंने ज्यूरी का शुक्रिया अदा करते हुए कहा बड़े फख्रकी बात है। मौजूदा शायरी को किस शक्ल में देखते हैं? ज्यादातर शायर और साहित्यकार मौकापरस्त हो गए हैं। मंचों पर सांप्रदायिक शायरी कर लोगों के जज्बातों को कुरेदा जा रहा है। बस वक्ती तौर पर तालियां बटोरना मकसद रह गया है इनका। इस आबोहवा में समाज का हर फिरका भी मौकापरस्त हो गया है। हालात इस कदर बदतर हो गए है कि पूरी तस्वीर ही बदलने की जरूरत है। स्याह रात नहीं लेती नाम ढलने का। यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का।। कहीं न सबको समंदर बहाके ले जाए। ये खेल खत्म करो कश्तियां बदलने का।। आप शुरुआत कीजिए सुधार की? मुझसे अकेले कुछ नहीं होगा। हालात इतने बदतर हैं कि पूरे समाज को इसकी पहल करनी पड़ेगी। अब रात की दीवार को ढहाना जरूरी है। ये काम मगर मुझसे अकेले नहीं होगा।। समझौता कोई ख्वाब बदले नहीं होगा। जो चाहती है दुनिया मुझसे अकेले नहीं होगा।।(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण/अलीगढ़,25.9.2010)।

3 comments:

  1. गीतकार अखलाक मुहम्मद खान शहरयार जी को हार्दिक शुभकामनाये और बधाई
    regards

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  2. शहरयार को बधाई। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    साहित्यकार-बाबा नागार्जुन, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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  3. गीतकार शहरयार जी को हार्दिक शुभकामनाये और बधाई

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