सितंबर के पहले सप्ताह में ऋषि कपूर, राकेश रोशन और आशा भोंसले के जन्मदिन मनाए गए तो आखिरी सप्ताह में देव आनंद, यश चोपड़ा, लताजी और रणबीर कपूर के जन्मदिन रहे। रणबीर कपूर के पिता ऋषि कपूर के जन्म के भी पहले देव आनंद लोकप्रिय सितारा बन चुके थे।
दशकों से समकालीन प्रतिभा त्रिवेणी दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद सुर्खियों में रहे हैं और अपने जमाने में वर्तमान की खान त्रिवेणी से भी ज्यादा लोकप्रिय रहे हैं, परंतु उस दौर में मीडिया आज की तरह छाया हुआ नहीं था। भारत तब भी कृषिप्रधान देश ही था जबकि यह दौर किसानों की आत्महत्या का है। बदलता हुआ भारत सितारों के व्यवहार में भी झलकता है।
रणबीर कपूर राज कपूर के पोते हैं, परंतु शायद महानगरीय युवा भूमिकाओं के कारण देव आनंद की झलक भी उनमें मौजूद है। आज देव आनंद तीन कम नब्बे के हैं और रणबीर दो कम तीस के, परंतु क्या वह देव आनंद की उम्र तक उतने ही सक्रिय रह पाएंगे। आज उम्र को थामे रखने के लिए विज्ञान ने अनेक साधन जुटा लिए हैं, परंतु देव आनंद ने जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही योग विधा का नियमित अभ्यास शुरू कर दिया था। उन दिनों योग को लोकप्रिय बनाने या व्यवसाय में तब्दील करने वाले कोई बाबा नहीं थे।
यह कितने आश्चर्य की बात है कि बीसवीं सदी के तीसरे दशक में वकील पिशोरीमल आनंद इतने सजग और आधुनिक थे कि उन्होंने अपने बेटे चेतन आनंद, देव आनंद और विजय आनंद को उच्च शिक्षा दिलाई। चेतन आनंद तो कॉलेज में पढ़ाने का काम करने के बाद मुंबई आए और उनकी पहली फिल्म ‘नीचा नगर’ ही अंतरराष्ट्रीय समारोह में सराही गई। उन्होंने अपने तीनों पुत्रों को उच्च शिक्षा के साथ-साथ योगाभ्यास में प्रवीण किया। आनंद बंधु लेखक और फिल्मकार होते हुए निरंतर पढ़ते भी रहे, जिस कारण आर.के.नारायण की ‘गाइड’ पर उन्हें फिल्म बनाने की सूझी।
देव आनंद ने महानगरीय युवा की भूमिकाएं अभिनीत कीं और उनके द्वारा निर्मित की गई फिल्मों में आधुनिकता का बोध रहा। सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने अनेक युवाओं को अवसर दिए। पुणो में अपनी पहली फिल्म करते समय देव आनंद की मित्रता उसी फिल्म के युवा सहायक गुरुदत्त से हुई और उनसे किए वादे को उन्होंने निभाया। गुरुदत्त, राज खोसला, विजय आनंद को अपनी जवानी में ही निर्देशन का अवसर देव आनंद ने दिया। आज के सफल फिल्मकार मिलन लूथरिया, संजय गुप्ता इत्यादि आनंद स्कूल के ही फिल्मकार हैं।
आज वित्तीय प्रबंधन और पूंजी निवेश के विशेषज्ञों का दौर है और अनेक शिक्षा संस्थान इस विधा के लिए बने हैं, परंतु देव आनंद ने इस विधा के उभरने के पहले ही अपनी पूंजी और कंपनी की अर्थव्यवस्था ऐसे ढांचे पर खड़ी की है कि विगत तीस वर्षो में दर्जनों असफल फिल्मों के बाद भी कंपनी चल रही है और किसी पर कोई कर्ज नहीं है। उन्होंने सदियों पुराना तरीका अपनाया है कि जमीन में पूंजी निवेश करो।
सस्ते भाव में खरीदी जमीनें आज भी देव आनंद को मनचाही फिल्में बनाने और अपनी मर्जी का जीवन जीने की सहूलियत दे रही हैं। आज देव आनंद पाली हिल, मुंबई में एक भव्य बहुमंजिला के मालिक हैं(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,29.9.2010)।
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