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Friday, September 10, 2010

थीम सांग के घमासान में दलेर मेहंदी भी कूदे

राष्ट्रमंडल खेलों के थीम सांग को लेकर मचे घमासान में दलेर मेहंदी भी मैदान में कूद पड़े हैं। ऑस्कर पुरस्कार विजेता एआर रहमान द्वारा गाए गीत- "ओ यारो इंडिया बुला लिया" के मुकाबले में दलेर मेहंदी ने अपनी बल्ले-बल्ले स्टाइल में एक खास गाना तैयार किया है-"खेल ले"। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की मौजूदगी में दिल्ली सचिवालय के खचाखच भरे सभागार में दलेर ने जब पंजाबी भांगड़ा का तड़का लगा हुआ खेलों को समर्पित अपना गीत गाया, तो पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया। खुद शीला भी दलेर एंड पार्टी की धुनों पर झूमीं।

गुड़गांव में थीम सांग के लांच के मौके पर रहमान ने कहा था कि उनके लिए खेलों के महाकुंभ के लिए थीम सांग तैयार करना बड़ा मुश्किल काम था और पूरे छह महीने की मशक्कत के बाद वह यह गीत तैयार कर पाए। दिलचस्प बात यह हुई कि इतनी मेहनत के बाद कम्पोज किए गए उनके गीत को लेकर पहले ही दिन से विवाद शुरू हो गया। प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा सरीखे कई लोगों ने खुलेआम यह कहकर अपना विरोध दर्ज कराया कि यह गीत खेलों के थीम सांग होने के लायक नहीं है। तुर्रा यह भी, खेल आयोजन समिति ने इस गाने को बनाने के लिए रहमान को पांच करोड़ रुपए भी दिए।

दिल्ली सरकार के आला अधिकारी इस बात से साफ इनकार कर रहे हैं कि उनकी ओर से दलेर को थीम सांग बनाने के लिए कहा गया था। लेकिन अपना गाना पेश करने से पहले खुद दलेर ने कहा कि उन्हें महज तीन दिन पहले गाना तैयार करने के लिए कहा गया और उन्होंने पूरी कोशिश की है कि इसे बढ़िया से बढ़िया तरीके से पेश किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि उन्हें थोड़ा सा और वक्त मिलता तो वह और बेहतर करके दिखलाते।

दलेर मेंहदी ने चौंकाने वाली खास टिप्पणी यह की कि वह अपना यह गीत बिल्कुल मुफ्त में अपने प्यारे मुल्क हिन्दुस्तान को समर्पित कर रहे हैं। रहमान द्वारा अपने गीत के लिए करोड़ों की रकम लेना और दूसरी ओर दलेर का यह कहना कि उन्होंने बिल्कुल मुफ्त में यह गाना तैयार किया है, लाजिमी तौर पर इशारा करता है कि इस मामले में गीत-संगीत की दुनिया में किस कदर बवाल मचा हुआ है। दलेर के गीत में बल्ले-बल्ले तो है ही, पार्श्व में सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा जैसे लोकप्रिय गीत की धुन भी चलती रहती है। जाहिर तौर पर ऐसा करके उन्होंने अपने गीत को हिन्दुस्तानियत के रंग में रंगने की पूरी कोशिश की है(अजय पांडेय,नई दुनिया,दिल्ली,10.9.2010)।

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