पाकिस्तान के एक मेरे मित्र ने कहा कि यदि सावधानी न बरती जाए तो प्रसिद्धि के मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव बहुत गहरे हो सकते हैं। मुझे यह देखकर हैरत होती है कि प्रसिद्धि किस तरह लोगों को बर्बाद कर देती है और उन्हें किसी दैत्य जैसा बनाकर रख देती है। दरअसल वह मैच फिक्सिंग प्रकरण की बात कर रहे थे, जिसने इस समय पाकिस्तान में भूचाल ला दिया है। इस प्रकरण में 18 वर्षीय मोहम्मद आमेर, मोहम्मद आसिफ और कप्तान सलमान बट के साथ-साथ कुछ अन्य खिलाडि़यों पर भी मैच फिक्सिंग का संदेह जताया जा रहा है। मेरे मित्र ने कहा कि ये सभी युवा सामान्य घरों के हैं, जहां ईमानदारी को ही जीने की राह माना जाता है, लेकिन प्रसिद्धि ने उनके मन को दूषित कर दिया और इसीलिए उन्होंने पैसे के लिए अपने राष्ट्रीय सम्मान को बेच दिया। फिर उन्होंने मुझसे सवाल किया कि बॉलीवुड के लोग प्रसिद्धि को कैसे नियंत्रित करते हैं? उनके इस सवाल ने मुझे भारत के महानतम सपूतों में से एक दिलीप कुमार की याद दिला दी, जिन्होंने एक बार मुझसे कहा था कि मुझे अभिनय से बेइंता प्यार है, लेकिन स्टारडम से मैं नफरत करता हूं। फिल्म सितारों के बारे में लोग अक्सर यह सवाल पूछते रहते हैं कि वे अपने प्रशंसकों के बारे में क्या सोचते हैं? मीडिया की आलोचनाओं पर उनकी क्या राय है? क्या उनमें यह भावना भी होती है कि उनका जीवन अब उनका नहींरह गया है? मैंने हर तरह के फिल्म सितारों के साथ अपना लगभग पूरा जीवन बिताया है। इस आधार पर मैं कह सकता हूं कि कुछ लोगों के लिए प्रसिद्धि हासिल करना दिग्भ्रमित करने वाली स्थिति होती है। मैंने देखा है कि कुछ सितारे प्रसिद्धि चाहते हैं, वे इसके पीछे पड़ते हैं और खासतौर पर ऐसे काम करते हैं कि उन्हें प्रसिद्धि मिले। मेरी सोच यह है कि बॉलीवुड में कुछ लोग ऐसे हैं जो मनोवैज्ञानिक रूप से प्रसिद्धि के अनुकूल नहीं हैं। उनकी प्रतिभा प्रसिद्धि पाने लायक है, लेकिन उनका व्यक्तित्व साथ नहीं देता। अलग-अलग स्तर हो सकता है, लेकिन मुझे लगता है कि अजय देवगन और उनकी पत्नी काजोल कुछ अन्य लोगों के साथ उस श्रेणी में आते हैं जो चकाचौंध से बहुत असहज रहते हैं। मल्लिका शेरावत का मामला संभवत: सबसे ज्यादा मिला-जुला है। ऐसा लगता है कि वह प्रसिद्धि का आनंद उठा रही हैं। उन्होंने प्रसिद्धि की चाहत की, उसे पाने का प्रयास किया और सफल रहीं, लेकिन मूल रूप से वह एक शर्मीली, कमजोर मनोदशा वाली, असुरक्षित महसूस करने वाली अभिनेत्री हैं, जो अपने असफल वैवाहिक जीवन से बहुत परेशान थीं। मशहूर अदाकार संजीव कुमार की बात करें। वह अपने समय के महानतम अभिनेता थे। उनके प्रशंसकों की भारी भीड़ थी, लेकिन उनमें खुद को कमतर महसूस करने की भावना थी। उनमें शायद यह भावना गुजरात के एक गरीब परिवार से आने के कारण थी। वह अक्सर अपने छवि को लेकर अपना ही मजाक उड़ाया करते थे। अपनी इस भावना से उबरने के लिए उन्हें अक्सर शराब और महिलाओं का सहारा लेना पड़ता था। मुझे नहीं लगता कि संजीव कुमार ने प्रसिद्धि का आनंद उठाया। मैं अक्सर महसूस करता हूं कि वह लगभग पूरे समय प्रसिद्धि के साथ सही तरह जी नहीं सके। अब हालांकि बहुत सारे लोग प्रसिद्धि के साथ बहुत सही तरह जीना सीख गए हैं। वे आसानी से इसका प्रबंध कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें यह पसंद है। आप यह भी कह सकते हैं कि प्रसिद्धि को उनका साथ पसंद है। लिहाजा यह कहना सही नहीं होगा कि प्रसिद्धि लोगों को बर्बाद ही कर देती है। फिर भी यह आप पर कुछ न कुछ असर डालती ही है। इसकी मनोवैज्ञानिक कीमत बहुत ऊंची होती है। यह सही है कि अनेक ऐसे लोग हैं जो अभिनय अथवा गायन को इसलिए अपनाते हैं, क्योंकि उन्हें इस कला से प्यार है, लेकिन बड़ी जमात ऐसे लोगों की है जो प्रसिद्धि, पैसा और प्यार पाने के लिए इन क्षेत्रों में आते हैं। सफल सितारों पर जो अतिरिक्त ध्यान दिया जाता है वह ऐसा दबाव उत्पन्न करता है कि उनके लिए इससे निपटना मुश्किल हो जाता है। लोग उनकी एक झलक पाने के लिए घंटों लाइन लगाए रहते हैं। अब अगर आप किसी के अहं को 24 घंटे इस तरीके से तुष्ट करेंगे तो वह वास्तव में यह सोचना आरंभ कर देगा कि वह कोई सुपर हीरो है। कई सितारों के मन में यह धारणा भी होती है कि उन्हें जो सम्मान मिल रहा है वे वास्तव में उसके हकदार नहीं हैं। इस धारणा पर काबू पाने के लिए वे ऐसा व्यवहार करने लगते हैं कि जैसे वह एक शख्सियत भर नहीं हैं। निश्चित ही प्रसिद्धि वह बोझ है जिसे हर कोई नहीं उठा सकता। इससे सही तरह निपटने के लिए विवेक-समझदारी की जरूरत होती है। अगर प्रसिद्धि का दुरुपयोग किया जाए तो यह एटम बम की तरह आपको उड़ा देगी(दैनिक जागरण,17.9.2010)।
nice
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