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Tuesday, September 14, 2010

आम आदमी की बात आम जबान में कहते थे साहिर

"साहिर लुधियानवी मूलतः एक रोमांटिक कवि थे। प्रेम में बार-बार मिली असफलता ने उनके व्यक्तित्व पर कुछ ऐसे निशान छोड़े जिसके नीचे उनके जीवन के अन्य दुख दब कर रह गए। अपनी प्रेमिका की झुकी आखों के सामने बैठ साहिर उससे मासूम सवाल कर बैठते हैं-"प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी, तू बता दे कि तुझे प्यार करूं या न करूं।" यह कहना था कथाकार एवं कथा यू.के. के अध्यक्ष तेजेन्द्र शर्मा का। अवसर था लंदन के नेहरू सेन्टर में एशियन कम्युनिटी आर्ट्स एवं कथा यू.के. द्वारा आयोजित "साहिर लुधियानवी एक रोमांटिक क्रांतिकारी" कार्यक्रम का।

तेजेंद्र शर्मा ने चित्रकार मकबुल फिदा हुसैन, फिल्मकार मुजफ्फर अली एवं संसद सदस्य वीरेन्द्र शर्मा की उपस्थिति में अपने पॉवर-पाइंट प्रेजेंटेशन की शुरूआत फिल्म हम दोनों के भजन अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम से करते हुए कहा कि आज ईद और गणेश चतुर्थी के त्यौहार हैं, तो चलिए हम अपना कार्यक्रम एक नास्तिक द्वारा लिखे गए एक भजन से करते हैं।

एशियन कम्युनिटी आर्ट्स की अध्यक्ष काउंसलर जकीया जुबैरी ने ईद के कारण कार्यक्रम में शामिल न होने पर खेद प्रकट करते हुए श्रोताओं के लिए संदेश भेजा कि जो श्रोता आज ईद मना रहे हैं उनको गणेश चतुर्थी की बधाई और जो गणेश चतुर्थी मना रहे हैं उन्हें ईद की मुबारकबाद। इस तरह जकीया जी ने कार्यक्रम की शुरूआत में ही एक सेक्युलर भावना से दर्शकों के दिलों को सराबोर कर दिया।

तेजेन्द्र शर्मा ने कहा कि साहिर ने फिल्मों में जो भी लिखा वो अन्य फिल्मी गीतकारों के लिए एक चुनौती बन कर खड़ा हो गया। उनका लिखा हर गीत जैसे मानक बन गए। उन्होंने फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ कव्वाली न तो कारवां की तलाश है (बरसात की रात), सर्वश्रेष्ठ हास्य गीत सर जो तेरा चकराए (प्यासा), सर्वश्रेष्ठ देशप्रेम गीत ये देश है वीर जवानों का (नया दौर), सूफी गीत लागा चुनरी में दाग छिपाऊं कैसे (दिल ही तो है) लिखा। यहां तक कि शम्मी कपूर को नई छवि देने में भी साहिर का ही हाथ था जब उन्होंने तुमसा नहीं देखा के लिए गीत लिखा यूं तो हमने लाख हसीं देखे हैं.. लिखा।

शर्मा ने साहिर के प्रेम प्रसंगों का भी जिक्र किया। जाहिर तौर पर उसमें सुधा मल्होत्रा और अमृता प्रीतम के नाम शामिल थे। अमृता और साहिर दोनों मॉस्को गए थे जहां साहिर को सोवियतलैण्ड पुरस्कार मिलना था। वहां एक अफसर की गलती से दोनों के नाम के बिल्ले बदल गए। साहिर ने अमृता से बिल्ले वापिस बदलने के लिए कहा। मगर अमृता ने कहा कि वह बिल्ला वापिस नहीं करेगी, इस तरह साहिर अमृता के दिल के करीब रहेगा। भारत वापिस आने पर साहिर की चन्द ही दिनों में मृत्यु हो गई। अमृता ये सोचकर रोती रही कि दरअसल मौत उसकी अपनी आई थी, मगर उसके नाम का बिल्ला साहिर के सीने पर था। इसलिए मौत गलती से साहिर को ले गई।

साहिर की भाषा पर टिप्पणी करते हुए तेजेन्द्र का कहना था कि किसी भी बड़े कवि या शायर की लिखी वही शायरी जिंदा रही है जो आम आदमी तक प्रेषित हो पाई है। संप्रेषण किसी भी साहित्य की मुख्य विशिष्टता है। साहिर ने भी अपनी साहित्यिक रचनाओं की भाषा को फिल्मों के लिए सरल और संप्रेषणीय बनाया। इसीलिए उसकी वो रचनाएं अमर हो पाईं(नई दुनिया,दिल्ली,13.9.2010)।

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