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Monday, September 6, 2010

बॉलीवुड में अब बंद हुआ होंठ हिलाना

बॉलीवुड में अब सुर में सुर मिलाने के दिन खत्म हो गए। पीछे गाना बचता रहता है और हीरो-हिरोइन सिचुएशन के हिसाब से एक्टिंग करते हैं । ये नया ट्रेंड इन दिनों तक रीबन सभी हिन्दी फिल्मों में देखने को मिल रहा है। प्रकाश झा की ‘राजनीति’ देखें या करण जौहर की ‘माइ नेम इज खान’, ‘कुरबान’ या ‘रॉकेट सिंह’ या शाहिद क पूर की ‘पाठशाला’या फिर विशाल भारद्वाज जैसे संगीतकार और फिल्मकार की ‘कमीने’ या उन्हीं की प्रोडक्शन की ‘इश्किया’ जैसी फिल्में। इनमें हीरो या हीरोइनों पर गाने तो खूब फिल्माए गए हैं , लेकिन सब बैक ग्राउंड में बजते हैं । बुदबुदाना करीब-करीब बंद हो गया है। भारतीय फिल्मों के पार्श्वगायन में तेजी से आ रहे इस बदलाव की शुरुआत वैसे तो क्षेत्रीय फिल्मों में हो गई थी, लेकिन इसे अब बॉलीवुड तेजी से अपना रहा है। प्रकाश झा जैसे फिल्मकारों का भी मानना है कि हीरो या हीरोइन के चरित्र का परंपरागत दृष्टिकोण बदल गया है। ऐसे में संगीत के पुराने मानदंडों में भी बदलाव तय है। एक तर्क यह है कि हिन्दी सिनेमा के नाच-गाने को पश्चिमी दर्शकों ने कभी खास स्वीकार नहीं किया। ऐसे में जबकि बॉलीवुड पूरी दुनिया को लुभाने की कोशिश में है, यह खुद में बदलाव ला रहा है। एक तर्क यह भी है कि वास्तविकता की ओर झुक रहे बॉलीवुड के हीरो को अगर गाना नहीं आता है तो उसे अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए बैकग्राउंड में गाना तो देना ही पड़ेगा। नया ट्रेंड राजनीति, कुरबान, इश्किया, कमीने जैसी फिल्मों में कुछ गाने बिना लिप्सिंग के फिल्माए गए (अमिताभ पाराशर,हिंदुस्तान,दिल्ली,6.9.2010)।

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