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Friday, September 3, 2010

हीरो की सिगरेट

पब्लिक प्लेस पर स्मोकिंग के जुर्म में अभिनेता अजय देवगन पर साल में दूसरी बार सौ रुपये का जुर्माना लगाया गया है। इसका एक प्रतीकात्मक महत्व है। उम्मीद है कि सिलेब्रिटीज इससे सबक लेते हुए सार्वजनिक जगहों पर स्मोकिंग करने से यथासंभव बचने की कोशिश करेंगी।

हीरो-हीरोइनों की लाइफ स्टाइल, चाहे वह फिल्मी पर्दे पर दिखे या सार्वजनिक जीवन में, हर तरह से हमारे समाज पर असर डालती है। खास तौर से युवा पीढ़ी उनके तौर तरीकों की फौरन ही नकल करने लगती है। पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास ने 2008 में सार्वजनिक स्थानों पर स्मोकिंग को दंडनीय बनाते हुए यह बात कही थी कि 52 पर्सेंट युवा फिल्मों में स्मोकिंग के दृश्यों से प्रेरित होकर ही सिगरेट पकड़ते हैं। कई रिसर्चों में यह बात साबित हुई है कि कुछ लोग सिर्फ एक बार सिगरेट पीने पर भी स्मोकिंग की लत के शिकार हो जाते हैं।

इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने आज से चार साल पहले फिल्मों में स्मोकिंग के दृश्य दिखाने पर पाबंदी लगाई थी। लेकिन फिल्म इंडस्ट्री ने इस रोक को अपने कामकाज में बाधक माना। अभिव्यक्ति की आजादी और लाइफ की रियलिटी दिखाने की अनिवार्यता जैसे तर्कों के आगे यह पाबंदी टिक नहीं पाई। पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट ने यह बैन हटा दिया था। लेकिन आम लोगों को स्मोकिंग से दूर रखने का अकेला उपाय यही नहीं है कि हीरो-हीरोइन पदेर् पर या वास्तविक जीवन में स्मोकिंग करते न दिखाई दें। इसका एक जरूरी पहलू बीड़ी-सिगरेट के पैकेटों और गुटखे के पाउचों पर मुंह व फेफड़े के कैंसर, खराब दांत व मसूड़ों का चित्र देना भी है।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल इसके लिए बाकायदा निर्देश जारी किया था। लेकिन इस पर अमल के मामले में भी वैसी ही ढिलाई हो रही है जैसी सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करते लोगों को पकड़ने और उन्हें दंडित करने में हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक आज 84 फीसदी स्मोकर भारत जैसे विकासशील देशों में हैं। इस वजह से देश में कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या भी काफी तेजी से बढ़ रही है।

काश, समाज की हकीकत के नाम पर फिल्मों में सिगरेट और शराब के दृश्यों को जायज ठहराने और माचिस या लाइटर की बजाय जिगर से ही बीड़ी जला लेने का आग्रह करने वाली हमारी फिल्म इंडस्ट्री समाज की इस सचाई की तरफ भी नजर डाल पाती(संपादकीय,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,3.9.2010)।

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