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Sunday, August 1, 2010

सिने जगत की रश्मियों के अंधेरे

लगभग दर्जन भर साहित्यिक और गैर-साहित्यिक पुस्तकों का लेखन व संपादन कर चुकीं सुपरिचित लेखिका कानन-झींगन की जीवनीपरक लेखों की नई कृति "सिने जगत की रश्मियां" हिंदी सिनेमा की महान अभिनेत्रियों के संघर्षपूर्ण और कटु जीवन की दास्तान है। हिंदी सिनेमा में अपनी अभिनय कला और सुंदरता के अलग-अलग प्रतिमान स्थापित कर चुकीं सुरैया, मधुबाला, नरगिस, मीनाकुमारी, वहीदा रहमान और रेखा अपने-अपने कालखंड की शीर्ष अभिनेत्रियां रही हैं। इन शीर्ष अभिनेत्रियों के व्यक्तिगत जीवन का जो चित्र लेखिका ने खींचा है, वह इन अभिनेत्रियों के दूसरे पक्ष को भी उजागर करता है । यहां लाइट, कैमरा, एक्शन और सिनेमा की रंगीनियों से दूर कलाकार का एक जीवन ऐसा भी है, जहां वह आम आदमी से भी अधिक मजबूर और निरीह हो सकता है। लेखिका ने अपने लेखों में जिन शीर्ष अभिनेत्रियों को लिया है, उनके जीवन की कठिनाइयों और उनके अथक संघर्ष में एक साम्य दिखाई देता है। रुपहले पर्दे पर अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली इन नायिकाओं ने न सिर्फ हिंदी सिनेमा को रोशन किया बल्कि अपने व्यक्तिगत जीवन में भी अपने से जुड़ी जिंदगियों को रोशन करती रहीं। इन लेखों में नायिकाओं के सिनेमाई सफर और उससे जुड़ी छिट-पुट घटनाओं का जिक्र तो हुआ ही है, साथ ही इनके व्यक्तिगत संबंधों को भी बहुत ही संजीदगी से पेश किया गया है।

लेखिका ने सुरैया को "लेडी ऑफ शैलॉट" का उपनाम दिया है जो किसी अंग्रेजी कवि की कल्पना में एक ऐसी राजकुमारी है जो एकाकी जीवन जीने को मजबूर है और जैसे ही वह अपने एकाकी जीवन के बंधन को तोड़ कर उन्मुक्त होना चाहती है, वह प्राणहीन हो जाती है। मधुबाला की खूबसूरती और अभिनय कला का सानी हिंदी सिनेमा में अब तक दूसरा नहीं हुआ है। मधुबाला का वैवाहिक जीवन कितना कष्टप्रद रहा, अपने जीवन के अंतिम दिनों में बीमारी से लड़ते हुए और अपनों की बेरुखी के बीच कैसे रुखसत हुईं, इसका आभास पाठकों को मिलता है। लेखिका ने लेखों में अभिनेत्रियों द्वारा कहे गए जिन संवादों को प्रमुखता से रेखांकित किया है वह उनके जीवन के सार को अभिव्यक्त करते हैं।

रुपहले पर्दे पर सुंदर जोड़ियां बनाने वाली ये नायिकाएं असल जिदंगी में कभी पूरा प्यार न पा सकीं - फिर चाहे वह सुरैया हो या रेखा, मधुबाला हो या नरगिस। इन अभिनेत्रियों के चर्चित प्रेम-संबंधों पर लेखिका ने विस्तार से चर्चा की है। इन सब नायिकाओं के अतिरिक्त भारतीय सिनेमा की सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर पर सबसे अधिक लिखा गया है। लेखिका का मन और कलम दोनों ही लता दीदी को लेकर रम गए हैं।

हालांकि कानन झींगन ने अपने लेखों में इन अभिनेत्रियों के फिल्मी सफर को अधिक बताया है। सूचनात्मक रूप से बताते हुए लेखिका नायिकाओं के चर्चित प्रेम-संबंधों को उनके व्यक्तिगत जीवन से जोड़ती हुई चलती हैं, इसी कारण कुछ अनछुए पहलुओं की चर्चा भी हो जाती है। मधुबाला और लता मंगेशकर जिनसे लेखिका के व्यक्तिगत संबंध है वहां पाठकों को फिर भी ऐसी बातों की जानकारी मिलती है जो संभवतः उनके पास पहले से न हो लेकिन बाकी के लेखों में पाठकों को वही सब कुछ ज्ञात होता है जो उन्हें पहले से अन्य माध्यमों से ज्ञात हो चुका होगा। इन लेखों में सूचनाएं तो बहुत हैं लेकिन उनका विश्लेषण कम है। फिर भी हिंदी सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्रियों के फिल्मी और व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी सूचनाओं के संग्रह के रूप में यह पुस्तक अवश्य महत्वपूर्ण साबित हो सकती है(शुचि पाण्डेय,नई दुनिया,दिल्ली,1.8.2010)।

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