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Wednesday, August 11, 2010

वाकई अलग हैं जूलिया राबर्ट्स

यूनिसेफ के लिए हर साल करोड़ों रुपये दान करने वाली जूलिया राबर्ट्स एक दम अलग अभिनेत्री हैं । जीवन में सब कु छ हासिल करने वाली जूलिया को आध्यात्मिकता सुकून देती है । भारत और भारतीय खाना उन्हें पसंद है । वह जब भी भारत आती हैं तो अलग एक दृष्टि लेकर लौटती हैं । आखिर कैसी है जूलिया राबर्टा्स की दुनिया? रत्ना श्रीवास्तव की एक रिपोर्टः

जूलिया राबर्ट्स अलग हैं । हॉलीवुड की सुपरस्टार्स से एकदम अलग। यूनिसेफ के लिए हर साल करोड़ों रुपये दान करने वालीं। बढ़ती उम्र के साथ चेह रे पर आई झुर्रियों के साथ जीने की चाह रखने वाली। उन्हें शांति की तलाश है। आध्यात्मिक ता उन्हें सुकून देती है । भारत और भारतीय खाना उन्हें पसंद है । वह जब भी भारत आती हैं तो अलग एक दृष्टि लेकर लौटती हैं । कोई अठारह साल पहले जब वह यहां आई थीं तो कोलकाता में मदर टेरेसा के मिशन के साथ दो हफ्ते बिताये थे। तब उन्हें महसूस हु आ था कि असली यथार्थ और असली जमीन होती क्या है । अभी थोड़े समय पहले वह फिर से भारत आईं, हॉलीवुड की एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में, जिसकी नायिका जीवन को तलाश रही है और इसलिए वह आध्यात्मिकता की शरण में इस देश में आती है । यहां वह मंदिरों में गईं। योग को जाना। धर्मगुरु ओं से मिलीं। हिन्दू दर्शन ने उन पर खासा असर डाला। बस फिर वह मन से इस धर्म की ही हो गईं। अब उन्हें पति डेनियल मोडर और तीनों बच्चों के साथ नियमित रूप से लॉस एंजिल्स के हिन्दू मंदिर में देखा जाता है । उनके बच्चे हे जल, फिनस और हेनरी रोज श्लोक पढ़ते हैं , हाथ जोड़ते हैं , टीका लगाते हैं , भगवान की पूजा करते हैं । हाल में जूलिया ने एक अमेरिकी पत्रिका को दिये इंटरव्यू में स्वीकार कि या कि वह अब हिन्दू हैं । उनका कहना है कि जिंदगी में दोस्तों और परिवार से मिले जख्मों से वह न जाने कितने समय से अशांत थीं, जब वह पटौदी स्थित हरि आश्रम में आध्यात्मिक गुरु स्वामी श्री धरम के पास आईं तो एक नया अनुभव था, एक अलग-सी शांति उन्हें यहां मिली। सनातन धर्म की मान्यताओं, परंपराओं और दर्शन ने उनकी बैचेनी को खत्म कर दिया। मन, दिमाग और कर्म से भी उन्होंने धर्म की शिक्षाओं का अंगीकार किया तो आत्मिक सुख की लहरें पूरे वजूद में महसूस होने लगीं। जूलिया सही मायनों में मर्लिन मुनरो के बाद हॉलीवुड की ऐसी सुपर स्टार हैं , जिनका जादू पूरी दुनिया में चला है । नब्बे के दशक के शुरू में जब ‘प्रिटी वूमन’ मूवी थिएटर में आई तो पूरी दुनिया उनकी दीवानी बन गई। वह उसी दौरान सबसे ज्यादा पैसा वसूल करने वाली अभिनेत्री बन गईं। हालांकि उस समय उनकी उम्र थी महज बीस साल। जब उन्होंने ‘एरिन ब्रोकोविच’ फिल्म की, उसके लिए उन्हें दो करोड़ अमेरिकी डॉलर का मेहनताना मिला। इस फिल्म ने ऑस्कर जीता और साथ में दुनियाभर के सारे ही प्रतिष्ठित अवॉर्ड । हालांकि इससे पहले भी दो बार उनका नाम ऑस्कर के लिए नोमिनेट हुआ था, लेकि न वह ऑस्कर की जादुई प्रतिमा को चूम नहीं पाई थीं। एक-एक रोचक वाक या, जो उनके ऑस्क र जीतने से ही संबंधित है । ये करीब-क रीब तय था कि साल 2000 का ऑस्क र जूलिया को फि ल्म ‘एरिन ब्रोकोविच’ के लिए मिलना है । इसके बाद दुनिया की दिग्गज फैशन डिजाइनिंग कंपनियों में होड़ लग गई कि जूलिया जब ऑस्कर के मंच पर पहुंचे तो उन्हीं की पोशाक पहनी हो। उसके लिए उन्हें मोटी राशि ऑफर की जाने लगी। इसी बीच उनकी एक सहेली बाजार से उनके लिए काले रंग की मखमली फ्रॉक खरीद कर लाई, जो वाकई बहुत अच्छी थी, जूलिया ने फिर इसी को पहना। इसी के साथ वह दुनियाभर के 25 करोड़ लोगों से टीवी पर रू -ब-रू हु ईं। अगर यह कहा जाता है कि जूलिया अलग हैं तो सचमुच हैं -वो साधारण भी हैं और असाधारण भी। एक साथ दोनों। मूडी वो हमेशा की रही हैं , लेकिन स्टारडम के नकचढ़ेपन से दूर । अभिनय ही नहीं, समझ के मामले में भी समकालीन अभिनेत्रियों से कोसों आगे हैं , कोई भी कि रदार निभाने की समझ कोई उनसे सीखे। लेकिन यह भी ताज्जुब है कि एक जमाने में उनके अभिनय से ज्यादा चर्चाएं उनके निजी जीवन को लेकर होती थीं। वैसे जीवन भी अभावों, अभिभावकों की क लह और टूटते-बिखरते परिवार के बीच बीता। मां-पिता दोनों थिएटर के नामचीन कलाकार थे। लेकि न पैसे से फक्क ड़ । 28 अक्टू बर 1967 को जब तीसरी संतान के रू प में जूलिया का जन्म हु आ तो पिता के पास अस्पताल का बिल भरने लायक पैसे भी नहीं थे। पिता जमकर काम करते थे कि घर की आर्थिक हालत को पटरी पर ला पाएं, लेकिन जब वैसा नहीं हो पाया तो घर में कलह होने लगी। मां-बाप में तलाक हो गया। पिता जल्दी गुजर गये। चूंकि मां-बाप मंझे हुए कलाकार थे, लिहाजा अभिनय का प्रवाह तो जूलिया को बचपन से ही घुट्टी में मिल गया था। उनके सपने में हॉलीवुड बसता था, शायद इसलिए भी क्योंकि भाई एरिक राबट् र्स पहले ही वहां पहुं चकर अपने को स्थापित कर चुका था। 18 साल की उम्र में जब जूलिया हॉलीवुड में किस्मत आजमाने पहुं ची तो खासे पापड़ बेलने पड़े । ‘फायरहाउस’ नाम की एक सस्ती-सी पिक्चर में उन्हें जो पहला रोल मिला, वह 15 सेकेंड का था, कोई डायलॉग नहीं। आगे का रास्ता भी कोई आसान नहीं था। ‘सेटिस्फैक्शन’ और ‘मिस्टिक पिज्जा’ जैसी पिक्चरों ने उन्हें पहचान दी। फिर ‘स्टील मैग्नोलिया’ जैसी बड़े बजट की पिक्चर ने उन्हें जाना-पहचाना नाम बनाया। एक ओर पहचान मिली तो दूसरी ओर जूलिया के अफ साने शुरू हो गये। पहले उन्हें लियाम नीसन से प्यार हुआ। जल्दी ही डायलन मैक डरमोट को दिल दे बैठीं। इसी कड़ी में कीफर सदरलैंड , लिले लावेट , मैथ्यू पैरी और बेंजामिन ब्रैट का नाम भी जुड़ा। सदरलैंड के साथ तो उनकी सगाई भी हो चुकी थी, लेकिन यह रिश्ता परवान नहीं चढ़ा। 1993 में उन्होंने स्टार गायक लिले लावेट से शादी रचाई, करीब डेढ़ साल बाद दोनों अलग भी हो गये। एक बार फिर उनके इश्क के चर्चे शुरू हो गये। साल 2000 में मैक्सिकन फिल्म की शूटिंग के दौरान उनकी आंखें सहायक कै मरामैन डैनी माडर पर अटकीं, जो पहले से ही शादीशुदा था। जूलिया मायूस हो गईं। लेकिन दोनों की ही आंखें एक दूसरे से कुछ ज्यादा ही टकराने लगीं। कु छ लोग क हते हैं कि जूलिया के ही चलते डैनी ने अपनी बीवी को तलाक दे दिया, क्योंकि जब दोनों ने 2001 में शादी की तो उन्हें डैनी के परिवारवालों ने पानी पी-पीक र कोसा। सबको उम्मीद थी कि ये शादी जल्दी ही टूट जायेगी। हालांकि इस शादी के लिए जूलिया ने भी काफी समझौते किये। अपनी लक्जरी लाइफ छोड़ क र वह एक साधारण से फ्लैट में डैनी के साथ रहने चली गईं। जमीन पर सोईं। लेकिन इस शादी ने जूलिया को बदला। वह जिम्मेदार हो गईं। अब लोग इस परिवार की तारीफ करते हैं , एक मां और पत्नी के रूप में जूलिया की। कु छ उम्र और जिम्मेदारियों तथा लोगों से मिले धोखों व बाहरी दुनिया से मिले घावों ने उसे आध्यात्मिकता की ओर मोड़ा। शांति की तलाश में वह भारत आईं। हिन्दू धर्म का अंगीकार किया। उनका मानना है कि वो शायद युगों-युगों से हिन्दू हैं, शायद पिछले जन्म में वो हिन्दू ही रही होंगी(हिंदुस्तान,दिल्ली,11.8.2010)।

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