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Saturday, August 21, 2010

आंख और कान का रिश्ता

आदित्य चोपड़ा के लिए प्रदीप सरकार ने नील नितिन मुकेश और दीपिका पादुकोण के साथ फिल्म ‘लफंगे परिंदे’ बनाई है। इसमें नील स्ट्रीट फाइटर हैं और आंख पर पट्टी बांधकर लड़ते हैं। दीपिका अंधी लड़की बनी हैं, जिसे नील ध्वनि के आधार पर निशाना लगाना सिखाते हैं। महाभारत में कथा है कि एकलव्य ने कुत्ते का भौंकना बंद करने के लिए अनेक तीर मारकर उसका मुंह बंद कर दिया। तीर इस ढंग से छोड़े गए थे कि कुत्ते का भौंकना बंद हो गया, परंतु तीरों ने उसे जख्मी नहीं किया। विधु विनोद चोपड़ा की ‘एकलव्य’ का नायक भी ध्वनि पर निशाना लगाना जानता है।


कहते हैं कि मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को अंधा कर दिया था। कवि चंद बरदाई की दोहा से दूरी का अंदाजा लगाकर पृथ्वीराज ने गजनी पर वार किया था। संगीतकार जयकिशन पाश्र्व संगीत ध्वनिबद्ध करने के लिए दृश्य देखते समय उसकी अवधि नोट नहीं करते थे वरन अपने मन में गूंजते संगीत की बीट गिनते थे और उनके द्वारा रची ध्वनि हमेशा दृश्य की अवधि पर फिट बैठती थी। एक अमेरिकी फिल्म में कैदी बिना घड़ी देखे सही समय बताता था और उसकी इसी योग्यता के सहारे जेल से भागने में कैदी सफल होते हैं।


बांग्ला उपन्यास ‘रात के मेहमान’ में चोरी का प्रशिक्षण देते समय अंधेरे में सांस की ध्वनि सुनकर कमरे में सोने वालों की संख्या का अनुमान लगाने का विवरण है। आरके नैयर की फिल्म ‘कत्ल’ में अंधा नायक (संजीव कुमार) अपनी बेवफा पत्नी का कत्ल करता है। पत्नी अपने पति के ध्वनि पर निशाना लगाने की कला जानती है, परंतु दरवाजे के निकट पहुंचकर सुकून की सांस लेती है और मारी जाती है। नायक ने उसे अभिनय प्रशिक्षण के दौरान हमेशा संवाद अदायगी के समय श्वास पर नियंत्रण सिखाने की असफल कोशिश की थी। इस फिल्म को खाकसार ने लिखा था।


बहरहाल ध्वनि पर निशाना साधने के विवरण महाभारत से लेकर आज तक मिलते हैं। शायद एक कमतरी के एवज में कुदरत दूसरी शक्ति को विकसित करती है। प्राय: अंधे बेहतर सुन सकते हैं या उनकी सूंघने की शक्ति अधिक होती है। सूरदास ने कृष्ण लीला का ऐसा वर्णन किया है कि लगता है सब उनके सामने घटित हुआ था। मनुष्य की पांचों इंद्रियां भीतर से जुड़ी हैं और उनमें कमाल का तालमेल है। यह कहा जाता है कि सुने पर यकीन नहीं करें, परंतु शैलेंद्र ‘जागते रहो’ के गीत में लिखते हैं-‘मत रहना अंखियों के भरोसे, जागो मोहन प्यारे..।’ अकिरा कुरोसावा की ‘रोशोमन’ में चार लोग एक ही घटना के चश्मदीद गवाह हैं, परंतु उनके विवरण अलग-अलग हैं। हमारे विवरण और निर्णय पांचों इंद्रियों के परे अवचेतन द्वारा शासित होते हैं।


बहरहाल ‘लफंगे परिंदे’ में अंधी नायिका खिलंदड़ लगती है, जिसके पास जीने की उमंग है। सिनेमाघर में आंख वाला नायक फिल्म की कहानी सुनाना चाहता है तो वह कहती है कि फिल्म देखने नहीं आई है। संकेत स्पष्ट है कि अंधत्व ने उसके आनंद को प्रभावित नहीं किया है। नायक नील का स्ट्रीट फाइटर होना अजीब लगता है, क्यांेकि भारत में इस तरह का व्यवसाय नहीं होता है।


प्रदीप सरकार विज्ञापन जगत से निर्देशन में आए हैं और उनकी पहली फिल्म ‘परिणीता’ सफल रही थी, जबकि शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास के निकट बिमल राय की अशोक कुमार-मीना कुमारी अभिनीत फिल्म ‘परिणीता’ थी। प्रदीप सरकार का दूसरा प्रयास ‘लागा चुनरी में दाग’ असफल रही थी। इसे देखते हुए यह उनके लिए निर्णायक फिल्म है(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,19.8.2010)।

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