हेमा मालिनी इश्तहारों में कुछ समय पहले जिस बैंक को बहुत बढ़िया बता रही थीं, उसका बहुत खराब हाल निकला और देश के सबसे बड़े प्राइवेट बैंक आईसीआईसीआई में उसका विलय करना पड़ा। हेमाजी संदेश दे रही थीं कि इस बैंक के साथ कारोबार करना चाहिए। यह बहुत विश्वसनीय बैंक है । हेमा मालिनी की विशेषज्ञता का क्षेत्र निश्चय ही बैंकिंग नहीं है , पर वे बड़े आराम से बैंकिंग के बारे में बात कर रही थीं। जितने आराम के साथ वह एक वाटर प्यूरीफायर को श्रेष्ठ बताती हैं , उतनी ही सहजता से वह इस बैंक को श्रेष्ठ बता रही थीं। अब यह बैंक नहीं है , इसके प्रबंधन के अकुशल होने की जिम्मेदारी तो किन्ही और पर है । पर क्या हेमा मालिनी पर यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह पब्लिक से माफी मांगें और कहें कि उस बैंक के बारे में उनके जो विचार थे, वह या तो गलत थे या वे सुनी-सुनायी बातों पर आधारित थे। बहुत पहले एक कंपनी होम ट्रेड के कई बड़े खिलाड़ी माडलिंग करते थे और इस कंपनी की तारीफ के पुल बांधा करते थे। सचिन तेंदुलकर भी इनमें से एक है । कंपनी बैठ गयी, पर सचिन चुप नहीं बैठे , वह किसी और कंपनी को बेहतर बता रहे हैं। अमिताभ बच्चन का स्वास्थ्य खराब रहता है और वह कुछ दिनों पहले तक एक च्यवनप्राश के बारे में बताते थे कि उसे खाने से सेहत दुरुस्त रहती है , जबकि अमिताभ की अपनी सेहत दुरुस्त नहीं रहती। वे च्यवनप्राश के अलावा तमाम तरह के तेलों और क्रीमों के बारे में बताते हुए पाये जाते हैं । इस संबंध में अब एक आचार संहिता की जरु रत है । सेलिब्रिटीज को कुछ जिम्मेदारी के साथ काम करना चाहिए। जो पब्लिक उन्हे सेलिब्रिटी बनाती है , उसके प्रति कुछ जिममेदारी का भाव उनमें होना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक प्रोडक्ट के चौपट निकलने के बाद सेलिब्रिटी दूसरे प्रोडक्ट के बारे में विस्तार से बताती रहे । अभी तो ऐसा ही हो रहा है, खासतौर पर टीवी इश्तिहारों में। टीवी इश्तिहारों का असर अखबार वगैरह के विज्ञापनों के मुकाबले ज्यादा होता है । सामान्यत: कम पढ़े लिखे या न पढ़े लिखे लोगों तक भी टीवी पहुंचता है । कई टॉप क्रिकेटर इन दिनों बिल्डर्स के लिए विज्ञापन करते हैं और बताते हैं कि फलां कंपनी के फ्लैट सबसे जोरदार हैं । यह निश्चय ही क्रिकेटरों की विशेषज्ञता के क्षेत्र नहीं हैं । नामी पुलिस अफसर किरण बेदी इन दिनों एक वाशिंग पाऊडर के बारे में सच बताती हैं कि वह बेहतरीन पाऊडर है । पुलिसिंग के क्षेत्र में नाम करने वाली किरण बेदी एकाएक धुलाई विशेषज्ञ हो गयी हैं । एक क्षेत्र में काम करके हासिल की गयी विशेषज्ञता इतनी बहुआयामी नहीं हो सकती कि वह किसी भी क्षेत्र के बारे में कमेंट करने के लिए प्रेरित करे । अपने को बेहतरीन नेता मानने वाले शत्रुघ्न सिन्हा कुछ समय पहले तक अमिताभ बच्चन की इश्तिहार वृत्ति का मजाक उड़ाया क रते थे। पर अब वह खुद पाइप से लेकर टीवी वगैरह के विज्ञापन में आ रहे हैं । तो क्या अमिताभ से उनकी खुंदक सिर्फ इतनी थी कि अमिताभ को एड मिलते हैं और उन्हें नहीं मिलते। कुछ समय पहले तक वे अमिताभ के बारे में बोलते थे कि उन्हें सच बोलना चाहिए और उपभोक्ताओं को गुमराह नहीं करना चाहिए। इधर कई अविज्ञापन विज्ञापनों की शक्ल में आ रहे हैं । कुछ समय पहले अमिताभ बच्चन एक चाकलेट के एड में कहते थे, वह चाकलेट का इश्तिहार नहीं करने वाले थे। फिर उन्होंने चाकलेट प्लांट का दौरा किया और उसकी उत्पादन प्रक्रिया देखी और वह आश्वस्त हो गये कि चाकलेट एकदम ठीक है । शिल्पा शेट्टी आजकल एक सौंदर्य उत्पाद के बारे में विज्ञापन में बताती हैं कि वह पहले तो उस सौंदर्य उत्पाद का विज्ञापन करने को तैयार नहीं थीं, पर जब उन्होंने खुद उसका इस्तेमाल किया, तो उनकी राय बदल गयी। वे सेलिब्रिटी की विश्वसनीयता का फायदा अपने आइटमों के लिए उठाना चाहते हैं। इसलिए ऐसी आचार संहिता जरूरी है जिसमें उत्पाद या सेवाएं बाद में खराब निकलने पर सेलिब्रिटीज से ऐसी माफी का प्रावधान हो कि उन्होंने वह विज्ञापन गलतफहमी में किया था और इसके लिए उन्हें दुख है । अभी तो दुख और संकोच के इजहार के बगैर वे दूसरे आइटम को श्रेष्ठ बताने में लग जाते हैं । किसी एनजीओ को तमाम इश्तिहारों के सोशल ऑडिट का काम भी क रना चाहिए और बताना चाहिए कि किस सितारे ने किस उत्पाद के बारे में क्या बताया और बाद में हकीकत क्या निकली। (आलोक पुराणिक,हिंदुस्तान,15.8.2010)
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