बंधी बंधाई जिंदगी से इत्तेफाक नहीं रखने वाले अभिनेता रघुवीर यादव का कहना है कि 'पीपली लाइव' जैसी फिल्में सिनेमाई भाषा को बदल रही है। उनका मानना है कि किसी फिल्म की पटकथा ही उसकी असली हीरो होती है। पिछले दिनों अपनी फिल्म के प्रचार के सिलसिले में राजधानी आए रघुवीर यादव ने एक बातचीत में कहा कि भारतीय सिनेमा से पारसी थियेटर का प्रभाव पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। मगर पीपली लाइव जैसी फिल्में एक गांव की जिंदगी महात्वाकांक्षा और द्वंद्व को प्रभावी तरीके से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करती हैं। इस तरह की फिल्में सिनेमा की एक नई भाषा गढ़ती हैं।
उन्होंने कहा कि दरअसल किसी फिल्म की असली हीरो उसकी पटकथा होती है। हमारे यहां अभिनेता चरित्र नहीं निभाते है बल्कि हीरो की आभा में चरित्र विलुप्त हो जाता है। हर फिल्म में दर्शकों को किसी अभिनेता का अलग-अलग चरित्र होने के बावजूद भी एक ही व्यक्ति नजर आता है।
1985 में फिल्म 'मैसी साहब' के लिए दो अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पाने वाले अभिनेता ने कहा कि फिल्म उद्योग में भाई भतीजावाद हावी है। लेकिन इससे थियेटर से आने वाले कलाकारों को दिक्कत नहीं होती है। फिल्मी गांवों के बारे में यादव ने कहा कि गांव को दिखाने के लिए जरूरी है कि इसे अंदर से महसूस किया जाए। बुंदेलखंड के लोकगीत 'महंगाई डायन...' को कई लोग भोजपुरी का समक्ष लेते हैं। इसलिए इसकी लोक परंपरा की समीक्षा भी बेहद जरूरी है।
अपनी भविष्य की योजना के बारे में रघुवीर ने कहा कि जिंदगी इतनी छोटी है कि किसी मुद्दे या लाइन के बारे में सोच ही नहीं पाता हूं। मेरी इस साल के अंत तक दो फिल्में कुसर प्रसाद का 'भूत' और 'खुला आसमान' आने वाली हैं।
अभिनय को पेशा बनाने के बारे में उन्होंने कहा कि संगीत सीखने निकला था लेकिन एक्टिंग गले पड़ गई। अब लगता है कि इससे अच्छा कोई और पेशा नहीं हो सकता है, क्योंकि इसमें दूसरे की जिंदगी जीने का मौका मिलता है। किसी अनजान व्यक्ति की रूह से गुजरना और उसकी तकलीफ को महसूस करने का अलग ही मजा है।
फिल्म की सफलता के बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए निर्माता-निर्देशक की नीयत और ईमानदारी अधिक मायने रखती है। उन्होंने कहा कि बेइमानी वहां से शुरू होती है जब आप फिल्म को व्यावसायिक सफलता की दृष्टि से बनाना शुरू करते हैं।
फिल्म के गाने 'महंगाई डायन' को लेकर उठे विवाद के बारे में उन्होंने कहा कि आमिर खान सुलझी हुई तबीयत के व्यक्ति हैं। वे लोकप्रियता के लिए किसी तरह के हथकंडे अपनाने वाले नहीं हैं, बल्कि वो कहानी की ताकत पर यकीन करते हैं। आमिर के बारे में रघुवीर ने कहा कि वह पटकथा से लेकर अभिनय तक हर पहलू पर नजर रखते हैं। वो सहयोगी कलाकारों को सुनने वाले शख्स हैं। उन पर अपनी चीजें थोपने वाले नहीं हैं।
किस चरित्र से उनके अंदर के अभिनेता को संतुष्टि मिली?
इसका जवाब देते हुए रघुवीर यादव ने कहा कि मुझे अभी तक किसी किरदार से संतुष्टि नहीं मिली है और मेरी कामना है कि मुझे कभी संतुष्टि न मिले। मुझे हर किरदार को निभाने के बाद उसमें कमियां नजर आने लगती हैं।
वर्तमान समय के सबसे अच्छे अभिनेता के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि नसीरूद्दीन शाह और ओम पुरी का नाम लिया जा सकता है। लेकिन मुझे सही मायने में बच्चे ही बेहतर अभिनेता नजर आते हैं। जिनमें किसी तरह की कोई लाग लपेट नहीं होती है।
ऑस्कर तक भारतीय फिल्मों के नहीं पहुंच पाने के बारे में उन्होंने कहा कि इसका बड़ा कारण यह है कि हमारे यहां क्वालिटी फिल्मों का निर्माण नहीं होता है और इसका गणित ही एकदम अलग है। ...और कुछ बेहतरीन फिल्में बनती हैं, लेकिन वे वहां तक नहीं पहुंच पाती है(हिंदुस्तान,दिल्ली,18.8.2010)।
उन्होंने कहा कि दरअसल किसी फिल्म की असली हीरो उसकी पटकथा होती है। हमारे यहां अभिनेता चरित्र नहीं निभाते है बल्कि हीरो की आभा में चरित्र विलुप्त हो जाता है। हर फिल्म में दर्शकों को किसी अभिनेता का अलग-अलग चरित्र होने के बावजूद भी एक ही व्यक्ति नजर आता है।
1985 में फिल्म 'मैसी साहब' के लिए दो अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पाने वाले अभिनेता ने कहा कि फिल्म उद्योग में भाई भतीजावाद हावी है। लेकिन इससे थियेटर से आने वाले कलाकारों को दिक्कत नहीं होती है। फिल्मी गांवों के बारे में यादव ने कहा कि गांव को दिखाने के लिए जरूरी है कि इसे अंदर से महसूस किया जाए। बुंदेलखंड के लोकगीत 'महंगाई डायन...' को कई लोग भोजपुरी का समक्ष लेते हैं। इसलिए इसकी लोक परंपरा की समीक्षा भी बेहद जरूरी है।
अपनी भविष्य की योजना के बारे में रघुवीर ने कहा कि जिंदगी इतनी छोटी है कि किसी मुद्दे या लाइन के बारे में सोच ही नहीं पाता हूं। मेरी इस साल के अंत तक दो फिल्में कुसर प्रसाद का 'भूत' और 'खुला आसमान' आने वाली हैं।
अभिनय को पेशा बनाने के बारे में उन्होंने कहा कि संगीत सीखने निकला था लेकिन एक्टिंग गले पड़ गई। अब लगता है कि इससे अच्छा कोई और पेशा नहीं हो सकता है, क्योंकि इसमें दूसरे की जिंदगी जीने का मौका मिलता है। किसी अनजान व्यक्ति की रूह से गुजरना और उसकी तकलीफ को महसूस करने का अलग ही मजा है।
फिल्म की सफलता के बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए निर्माता-निर्देशक की नीयत और ईमानदारी अधिक मायने रखती है। उन्होंने कहा कि बेइमानी वहां से शुरू होती है जब आप फिल्म को व्यावसायिक सफलता की दृष्टि से बनाना शुरू करते हैं।
फिल्म के गाने 'महंगाई डायन' को लेकर उठे विवाद के बारे में उन्होंने कहा कि आमिर खान सुलझी हुई तबीयत के व्यक्ति हैं। वे लोकप्रियता के लिए किसी तरह के हथकंडे अपनाने वाले नहीं हैं, बल्कि वो कहानी की ताकत पर यकीन करते हैं। आमिर के बारे में रघुवीर ने कहा कि वह पटकथा से लेकर अभिनय तक हर पहलू पर नजर रखते हैं। वो सहयोगी कलाकारों को सुनने वाले शख्स हैं। उन पर अपनी चीजें थोपने वाले नहीं हैं।
किस चरित्र से उनके अंदर के अभिनेता को संतुष्टि मिली?
इसका जवाब देते हुए रघुवीर यादव ने कहा कि मुझे अभी तक किसी किरदार से संतुष्टि नहीं मिली है और मेरी कामना है कि मुझे कभी संतुष्टि न मिले। मुझे हर किरदार को निभाने के बाद उसमें कमियां नजर आने लगती हैं।
वर्तमान समय के सबसे अच्छे अभिनेता के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि नसीरूद्दीन शाह और ओम पुरी का नाम लिया जा सकता है। लेकिन मुझे सही मायने में बच्चे ही बेहतर अभिनेता नजर आते हैं। जिनमें किसी तरह की कोई लाग लपेट नहीं होती है।
ऑस्कर तक भारतीय फिल्मों के नहीं पहुंच पाने के बारे में उन्होंने कहा कि इसका बड़ा कारण यह है कि हमारे यहां क्वालिटी फिल्मों का निर्माण नहीं होता है और इसका गणित ही एकदम अलग है। ...और कुछ बेहतरीन फिल्में बनती हैं, लेकिन वे वहां तक नहीं पहुंच पाती है(हिंदुस्तान,दिल्ली,18.8.2010)।
sahi kaha aapne
ReplyDeletem fir se blog jagat me aa gya hun
'पीपली लाइव' कुछ समस्याओं को उठाती हुई एक सामाजिक फिल्म है,जिसे परिवार के साथ देखा जा सकता है . लेकिन प्रथम पंक्ति में बैठने वाले दर्शकों को लुभा पायेगी. इसमें संदेह है |
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