ए आर रहमान पर सचमुच अल्लाह की सरपरस्ती है । शायद इसीलिए उनका पूरा नाम अल्लाह रक्खा रहमान है। अल्लाह की मेहरबानी ही है कि वे किसी चीज की पीछे भागे नहीं। जो चाहा, जैसे चाहा हासिल किया। ‘जय हो’ गाया तो पूरी दुनिया में देश की जय कर दी। अब बारी है उनके कॉमनवैल्थ गेम्स के थीम सांग ‘स्वागतम’ की- ओ यारो, इंडिया बुला रहा है की। वे इस गीत को बनाते वक्त पूरे आत्मविश्वास से भरे हैं । उन्होंने वायदा और दावा किया है कि फीफा का शकीरा द्वारा गाया गया थीम सांग ‘वाका वाका’ से भी ज्यादा प्रभावी उनका गीत होगा। वे इस थीम सांग को बनाने में छ: माह से इस कदर डूबे हैं कि उन्होंने अपने दस से ज्यादा कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया। रहमान ही इस गीत को उदघाटन समारोह में गाएंगे। संगीत तो उनका होगा ही। उन्होंने बताया कि वे इस गीत का संगीत तैयार कर अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। उनके अनुसार इस गीत में वेस्टर्न और इंडियन का फ्यूजन है। चेन्नई में 6 जनवरी 1966 को जन्मे रहमान जीते-जागते और चलते फिरते संगीत के विश्वविद्यालय हैं । संगीत उन्हें विरासत में मिली है । सरगम उनके रक्त में धड़कता है। उन्हें पिता आर के शेखर मलयाली फिल्मों के संगीत निर्माता थे। रहमान जब युवा थे तभी उनके पिता का निधन हो गया। घर का खर्चा चलाने के लिए रहमान म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट किराये पर देने लगे। 1989 तक रहमान का नाम दिलीप कुमार था। दिलीप से रहमान बनने की दास्तां भी कम रोचक नहीं है । बहन जब गंभीर रूप से बीमार पड़ी तो उन्होंने एक सूफी संत की मजार पर संकल्प लिया कि यदि वह ठीक हो जायेगी तो वह इस्लाम अपना लेंगे। बहन ठीक हो गई और रहमान दिलीप कुमार से अल्लाह रक्खा रहमान बन गये। 1992 में रहमान ने अपने घर के पीछे रिकार्डिंग और मिक्सिंग स्टूडियो को खोला, जो बाद में देश का सबसे आधुनिक स्टूडियो बन गया। इसी साल मशहूर फिल्म निदेशक मणिरत्नम ने अपनी तमिल फिल्म रोजा के लिए म्यूजिक कंपोज कराया। इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का अवार्ड मिला। इस पहले एवार्ड के बाद मान-सम्मान का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह पद्मश्री से होता हुआ आस्कर तक पहुंचा है । यह कहां थमेगा, इसका अभी तो फिलहाल कोई अंत नहीं दिख रहा है । इसकी वजह भी है कि जब वे गाते हैं और म्यूजिक कंपोज क रते हैं तो जहां सब खत्म हो रहा होता है , वे वहां से शुरू करते हैं और अंतहीनता के नए क्षितिज खुलते दिखते हैं। उनके संगीत में एक अलग तरह की रुमानियत हैं । विविधता ऐसी कि दोहराव उनमें दूर-दूर तक नहीं दिखता है । वंदेमातरम गाएं या जाज या पाप, उसमें रहमान की छाप अलग दिखती है । इसलिए निश्चय ही कहा जा सकता है कि ‘स्वागतम’ भी अलग होगा ही। रहमान मानते हैं कि यह गीत युवाओं को एडिक्ट बना देगा। लोग गाने को मजबूर हो जायेंगे। गीत का संदेश, मेहनत करो और कभी हिम्मत न हारो, भी युवाओं में एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास भर देगा(प्रदीप सौरभ,हिंदुस्तान,22.8.2010)।
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