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Monday, August 16, 2010

केरल में हिंदी फिल्मों को बनाया राष्ट्रीय एकता का हथियार

आखिर आत्मप्रेरणा भी तो कोई चीज होती है। बेशक, होती है और अगर आप भी अपने देश के लिए कुछ सकारात्मक करने का जज्बा रखते हैं तो वसिष्ट एमसी की कोशिशें तारीफ के काबिल हैं। केरल के मालाबार क्रिश्चियन कॉलेज में लेक्चरर वसिष्ट हिंदी फिल्मों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता को रेखांकित करने और इसके प्रचार-प्रसार के लिए अपने दम पर अलग तरह का काम कर रहे हैं। इन्होंने अपने कॉलेज में एक फिल्म क्लब बनाया है, जिसमें हिंदी की क्लासिक और लोकप्रिय फिल्मों की ३०० से ज्यादा सीडी रखी हैं। हिंदी फिल्मों की इस लायब्रेरी में वी शांताराम, राज कपूर, श्याम बेनेगल, मृणाल सेन, गोविंद निहलानी, यश चोपड़ा और संजय लीला भंसाली जैसे फिल्मकारों की हिट फिल्में शामिल की गई हैं। वसिष्ट मानते हैं,"देश की अखंडता को बरकरार रखने में हिंदी बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है।" राष्ट्रीय एकता के प्रचार के लिए वसिष्ट ने फिल्मों के अलावा खेलों को भी माध्यम बनाया है।

"नईदुनिया" से बातचीत में मालाबार क्रिश्चियन कॉलेज फिल्म क्लब के संयोजक और हिंदी फिल्मों के प्रशंसक वसिष्ट कहते हैं, "आजादी के संघर्ष से लेकर अब तक हिंदी फिल्मों ने राष्ट्रीय एकता कायम करने में असरदार भूमिका निभाई है। देश और समाज की जटिल चुनौतियों और विषम माहौल के बीच जब-जब राष्ट्रीय एकता के ताने-बाने पर चोट हुई तब-तब इसकी जरूरत ज्यादा महसूस हुई है। हालांकि सामान्य हालात में भी एकता और अखंडता की लगातार कोशिशें होती रहनी चाहिए। अपनी इन्हीं कोशिशों के तहत मैंने जनवरी २०१० फिल्म क्लब की स्थापना की। इसमें कॉलेज के साथियों और विद्यार्थियों ने उत्साह से साथ दिया।"

वसिष्ट बताते हैं कि फिल्म क्लब में हर सप्ताह हिंदी की कोई लोकप्रिय या क्लासिक दर्जे की फिल्म दिखाई जाती है। छात्रों को बिना शुल्क फिल्मों की सीडी और वीसीडी दी जाती हैं। जनवरी में हमने श्याम बेनेगल फिल्म महोत्सव का आयोजन किया और मार्च २०१० में राज कपूर की चर्चित फिल्मों का उत्सव मनाया गया। जून-जुलाई में आामिर खान की फिल्में दिखाई गईं। फिल्मों के प्रदर्शन के साथ-साथ हम उनके निर्देशकों और फिल्म के संदेश और अनछुए पहलुओं पर छात्रों के साथ चर्चा करते हैं ताकि छात्र भारतीय हिंदी भाषी समाज और उसकी चुनौतियों के पुराने और नए दौर से रूबरू हो सकें। वसिष्ट का ध्येय राष्ट्रीय एकता का प्रचार है। इसके लिए उन्होंने इस क्लब को बनाने से पहले खेलों पर ३ अलबम तैयार किए थे।

प्राइड ऑफ इंडिया नाम के एक अलबम में उन्होंने उन खिलाड़ियों की सफलता को संगीत के माध्यम से उत्सवित किया है जिन्होंने ओलंपिक खेलों में पदक जीते। विक्ट्रीज ऑफ इंडिया में हॉकी विश्व कप और क्रिकेट विश्व कप में भारत की जीत से जुड़े यादगार पलों को संजोया है। नाइट वाचमैन अलबम भी क्रिकेट पर आधारित रहा है। इन अलबम के साथ उन्होंने पुस्तिकाएं भी प्रकाशित की हैं। वसिष्ट के मुताबिक, "खेलों का मामला सीधे-सीधे राष्ट्रीयता से जुड़ा है। क्रिकेट में हमारे देश के लोगों की आत्मा बसती है इसलिए गर्व के क्षणों को देखकर लोग रोमांचित तो होते ही हैं उनमें राष्ट्रीयता की भावनाएं भी हिलोरें मारने लगती हैं।" खेल, फिल्म और हिंदी पूरे देश को एक सूत्र में बांधती हैं और डा. वसिष्ट का एकाकी प्रयास इसी सूत्र को मजबूत बना रहा है(दुष्यंत शर्मा, नई दुनिया,दिल्ली,16.8.2010)।

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