‘मैंने कई फाकापरस्ती के दिन भी देखे हैं, ऐसी भी हालत आई जब मैं तीन दिन तक भूखा रहा। मुझे याद है इसी हालात में दादर खुदादाद पर खडा था। भूख के मारे मुझे चक्कर से आने लगे ऐसा लगा कि अभी मैं गिर ही पडूंगा। करीब की एक होटल में दाखिल हुआ। बढिया खाना खाकर और लस्सी पीकर बाहर जाने लगा तो मुझे पकड लिया गया। मैनेजर को अपनी मजबूरी बता दी और 16 रुपयों का बिल फिर कभी देने का वादा किया। मैनेजर को तरस आ गया वह मान गया। एक दिन जयंत देसाई ने मुझे काम पर रख लिया और 5,000 रुपये दिए। मैंने इतनी बडी रकम पहली बार देखी थीं। सबसे पहले होटल वाले का बिल चुकाया था और 100 पैकेट सिगरेट के खरीद लिए।’
आगे चलकर, इन्हीं ओमप्रकाश ने लगभग 350 फिल्मों में काम किया। उनकी प्रमुख फिल्मों में पडोसन, जूली, दस लाख, चुफ-चुफ, बैराग, शराबी, नमक हलाल, प्याक किए जा, खानदान, चौकीदार,लावारिस, आंधी,लोफर, जंजीर आदि शामिल हैं। उनकी अंतिम फिल्म नौकर बीवी का थीं। अमिताभ बच्चन की फिल्मों में वे खासे सराहे गए थे। नमकहलाल का दद्दू और शराबी के मुंशीलाल को भला कौन भूल सकता है?
प्रारंभिक दौर
ओमप्रकाश का पूरा नाम ओमप्रकाश बक्शी था। उनकी शिक्षा-दीक्षा लाहौर में हुई थीं। उनमें कला के प्रति रुचि शुरू से थी। लगभग 12 वर्ष की आयु में उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। 1937 में ओमप्रकाश ने ऑल इंडिया रेडियो सीलोन में 25 रुपये वेतन में नौकरी की थी। रेडियो पर उनका फतेहदीन कार्यक्रम बहुत पसंद किया गया।
सिर्फ 80 रुपये वेतन
हिन्दी फिल्म जगत में ओमप्रकाश का प्रवेश बडे फिल्मी अंदाज में हुआ। वे अपने एक मित्र के यहां शादी में गए हुए थे, जहां दलसुख पंचोली ने उन्हें देखा। फिर पंचौली ने तार भेजकर उन्हें लाहौर बुलवाया और फिल्म ‘दासी’(1950) के लिए 80 रुपये वेतन पर अनुबंधित कर लिया। यह ओमप्रकाश की पहली बोलती फिल्म थीं। संगीतकार सी. रामचंद्र से ओमप्रकाश की अच्छी पटती थीं। इन दोनों ने मिलकर ‘दुनिया गोल है’, ‘झंकार’, ‘लकीरे’ का निर्माण किया। उसके बाद ओमप्रकाश ने खुद की फिल्म कंपनी बनाई और ‘भैयाजी’, ‘गेटवे आफ इंडिया’, ‘चाचा जिदांबाद’, ‘संजोग’ आदि फिल्मों का निर्माण किया।
खास बात
बहुत कम लोग जानते हैं कि ओमप्रकाश ने ‘कन्हैया’फिल्म का निर्माण भी किया था,जिसमें राज कपूर और नूतन की मुख्य भूमिका थी।
कई रंगारंग व्यक्ति उनके जीवन में आए। इनमें चार्ली चैपलिन, पर्ल एस.बक, सामरसेट मॉम,फ्रेंक काप्रा,जवाहरलाल नेहरू जी भी शामिल हैं।
जिदंगी जब उन पर मेहरबान रही है, तब दूसरा विश्व युद्ध खत्म ही हुआ था। उन दिनों हिंदी फिल्मों में बहुत बडे सितारे मोतीलाल, अशोककुमार, और पृथ्वीराज हुआ करते थे। अपने समय में लोग उन्हें ‘डायनेमो’ कहा करते थे(राज एक्सप्रेस,29.8.2010)।
omprakash,sachmuch ke ek dainemo kalakaar thhe,wo kshati kabhi naa puri hogi
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